फर्जी विवाह प्रमाण पत्र जारी करने वाले गिरोह पर अंकुश लगाने की आवश्यकता: हाई कोर्ट

फर्जी विवाह प्रमाण पत्र जारी करने वाले गिरोह पर अंकुश लगाने की आवश्यकता: हाई कोर्ट

प्रयागराज,अमृत विचार। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आर्य समाज मंदिरों, सोसायटियों, ट्रस्टों और संस्थाओं द्वारा विवाह के फर्जी प्रमाण पत्र जारी करने वाले दलालों के उभरते एक संगठन पर चिंता जताते हुए कहा कि जिला न्यायालयों के आसपास धार्मिक ट्रस्टों के नाम पर दलालों और एजेंटों का एक संगठित गिरोह उभरा है, जिसमें पुरोहितों और दलालों के अलावा योग्य कानूनी पेशेवर भी शामिल हैं। न्यायालय ने आगे कहा कि स्थानीय पुलिस भी ऐसे अराजक तत्वों को बचाती है और वे फर्जी विवाह प्रमाण-पत्रों और अन्य दस्तावेजों के स्रोत का पता लगाने में भी विफल रहती है, जिसके कारण भगोड़े जोड़े ऐसे जाली दस्तावेजों के आधार पर न्यायालयों से सुरक्षा आदेश प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं।

 इस वर्ष अगस्त माह में ऐसे ही एक मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचियों द्वारा प्रस्तुत किए गए आर्य समाज विवाह दस्तावेजों पर संदेह जताया और स्थानीय पुलिस को भागे हुए जोड़ों द्वारा दाखिल याचिकाओं के साथ संलग्न दस्तावेजों की वैधता और विश्वसनीयता के बारे में एक सत्यापन रिपोर्ट पेश करने के लिए कहा। रिपोर्ट का अवलोकन करने पर कोर्ट ने पाया कि कई मामलों में याचिका के साथ संलग्न दस्तावेज, जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड या मार्कशीट, जाली हैं तथा ट्रस्ट या सोसायटी द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र फर्जी हैं। कोर्ट ने यह भी देखा कि कई मामलों में लड़कियां 12-15 वर्ष की आयु के बीच की होती हैं और प्रायः अपनी उम्र से दुगुने वयस्क पुरुषों से विवाह कर लेती हैं।

दलाल और एजेंट भागे हुए जोड़ों को न्यायालय से संरक्षण आदेश प्राप्त करने के लिए फर्जी दस्तावेज उपलब्ध कराते हैं, जबकि वास्तव में कोई विवाह हुआ ही नहीं होता। ऐसे ट्रस्ट या सोसायटी द्वारा बनाए गए रजिस्टर में अपेक्षित विवरण जैसे गवाहों की जानकारी, उनके मोबाइल नंबर, पहचान दस्तावेज और सोसायटी के पुरोहित, अध्यक्ष और सचिव के नाम का अभाव  होता है। अंत में कोर्ट ने गाजियाबाद के पुलिस आयुक्त को ऐसे संगठनों और गिरोहों की जांच करने का निर्देश दिया। उक्त आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की एकल पीठ ने एक भगोड़े जोड़े द्वारा दाखिल संरक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। कोर्ट ने ऐसे मामलों के लिए अपनी विशिष्ट टिप्पणी में कहा कि इस तरह की शादियाँ मानव तस्करी, यौन शोषण और जबरन श्रम को बढ़ावा देती हैं। बच्चे सामाजिक अस्थिरता, शोषण, जबरदस्ती, हेरफेर और उनकी शिक्षा में व्यवधान के कारण भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक आघात सहते हैं। इसके अतिरिक्त ये मुद्दे अदालतों पर एक अतिरिक्त बोझ डालते हैं, इसलिए दस्तावेज़ सत्यापन और ट्रस्टों और समाजों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत प्रणाली विकसित करने की आवश्यकता है । मामले की अगली सुनवाई आगामी 18 नवंबर को सुनिश्चित की गई है।

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