जन-जन की आवाज सरकार तक पहुंचाता है अमृत विचार : ब्रजेश पाठक

पहली बार किसी अखबार ने चिकित्सकों के बारे में सोचा : डॉ. नीरज बोरा

जन-जन की आवाज सरकार तक पहुंचाता है अमृत विचार : ब्रजेश पाठक

उदासी से घिरे मरीजों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरने वाले चिकित्सकों का अमृत विचार ने किया सम्मान

लखनऊ, अमृत विचार। उदासी से घिरे मरीजों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरने वाले चिकित्सकों को हिन्दी दैनिक ''अमृत विचार'' ने ''यूपी आईकॉन अवार्ड'' से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के हिन्दी पाठकों के बीच तेजी से जगह बनाते अमृत विचार ने चिकित्सकों के सम्मान का फैसला किया तो समाज के विभिन्न तबकों ने इस फैसले की खुले दिल से तारीफ की। चिकित्सक सम्मान का यह आयोजन गोमती नगर स्थित होटल सागर सोना में किया गया। मौका था उन ख्यातिलब्ध चिकित्सकों को सम्मानित करने का जो मरीजों की सेवा में हमेशा तत्पर रहते हैं।

सम्मानित

धन कमाने का नहीं समाज सेवा का जरिया है पत्रकारिता: ब्रजेश पाठक

चिकित्सकों को सम्मानित करने आये प्रदेश के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा कि अमृत विचार शुरू से ही जन-जन की आवाज सरकार तक पहुंचाने के काम में अपनी अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। एक तरफ यह समाचार पत्र जनता की समस्याएं सरकार तक पहुंचाता है तो दूसरी तरफ यह सरकार की नीतियों को भी आमजन तक पहुंचाने का काम शिद्दत के साथ कर रहा है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता धन कमाने का नहीं समाजसेवा का माध्यम है। अमृत विचार पत्रकारिता को मिशन के अंदाज में करता दिखाई दे रहा है।

डिप्टी सीएम
''यूपी आईकॉन अवार्ड'' कार्यक्रम में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक और ''अमृत विचार'' के समूह संपादक शंभू दयाल वाजपेयी

 

बेड न हो तो स्ट्रेचर पर ही प्राण बचानें में जुट जाता है चिकित्सक : डॉ. नीरज बोरा

विधायक नीरज बोरा

लखनऊ उत्तर के विधायक डॉ. नीरज बोरा ने इस मौके पर कहा कि 25 करोड़ की जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश की राजधानी के अस्पतालों में जितने मरीज आते हैं उतने बेड अस्पतालों के पास नहीं हैं। इसी वजह से अक्सर स्ट्रेचर पर ही मरीजों का उपचार होता दिखाई देता है। अक्सर अखबारों में देखने को मिलता है कि मरीज को बेड नहीं मिला। मरीज को स्ट्रेचर पर ही अपना इलाज कराना पड़ा, जबकि इस बात को इस अंदाज में भी लिया जा सकता है कि बेड नहीं था तो भी चिकित्सक ने उसके इलाज में देरी नहीं की। मरीज के अस्पताल पहुंचते ही उसे इलाज मिल गया।

हिन्दी अखबारों पर ध्यान दे सरकार तो नए सोपान गढ़ेगी पत्रकारिता: शंभू दयाल वाजपेयी 

समूह संपादक शंभू दयाल वाजपेयी ने अमृत विचार की यात्रा पर चर्चा करते हुए कहा कि पांच साल पहले बरेली से अमृत विचार ने अपना सफ़र शुरू किया था लेकिन कोरोना काल में जब दूसरे अखबारों में छंटनी चल रही थी, उस दौर में हम अच्छे लोगों को अपने साथ जोड़ रहे थे। अखबार ने तेजी से रफ़्तार पकड़ी। आज उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हमारे 6 एडीशन हैं और दोनों प्रदेशों में यह समाचारपत्र तेजी से आगे बढ़ते हुए अपने सकारात्मक विचारों को जनता तक पहुंचा रहा है। उन्होंने कहा कि सामाजिक सरोकार पर हमारा विशेष फोकस रहता है लेकिन सच यह भी है कि अखबार रोजगार भी देता है। इसलिए आज मैं उनसे यह भी कहना चाहता हूं कि अगर सरकार हिन्दी अखबारों की स्थितियों पर ध्यान दे दे तो हिन्दी पत्रकारिता निश्चित तौर पर नए सोपान गढ़ेगी और समाचार पत्रों का बहुत भला होगा। उन्होंने उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक की व्यस्ततम दिनचर्या से सभी को सीख लेने की सलाह भी दी। 

सम्मान का क्रम शुरू हुआ तो अमृत विचार के समूह सम्पादक शंभू दयाल वाजपेयी ने उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक को राम मंदिर का मॉडल भेंट किया। उन्होंने मॉडल को माथे लगाया और ऐसे आयोजन में बुलाए जाने पर संस्थान का आभार जताया। 

राम दरबार

श्रद्धा

सरस्वती वंदना

इस मौके पर डॉ. विभोर महेन्द्रू, डॉ. सुभाष सिंह, डॉ. धर्मेन्द्र सिंह, डॉ. अभिषेक शुक्ला, डॉ. वीरेन्द्र यादव, डॉ. ब्रज भूषण वर्मा, डॉ. आर एन वर्मा, डॉ. अहिताश्मुल राशिद, डॉ. सुनील रावत, डॉ. सुनील वर्मा, डॉ. अजमत अली, डॉ. हिमाली झा, डॉ. जाहिद खान, डॉ. गौरव, डॉ. सुशील यादव,, डॉ. शालिनी सिंह, डॉ. गंगा राम यादव, डॉ. विक्रांत सिंह, डॉ. सुमित सामंत, डॉ. अनुराग दीक्षित, डॉ. संजीव अवस्थी, डॉ. सैय्यद नाजिम अली, समता बाफिला, डॉ. अजय कुमार सिंह, रोहित मेहरोत्रा, पंकज श्रीवास्तव, शरद सिंह, रिषभ श्रीवास्तव, अटल प्रताप सिंह, रिजवान अली, अमित श्रीवास्तव, वीर विक्रम चौहान, सचिन यादव, अमन गुप्ता, मुकेश शुक्ला और हर्षित श्रीवास्तव को प्रतीक चिन्ह और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। इस मौके पर लखनऊ के कार्यकारी संपादक अनिल त्रिगुणायत, महाप्रबंधक त्रिनाथ शुक्ला के अलावा अमृत विचार परिवार के अजय दयाल, डीपी शुक्ला, धीरेंद्र सिंह, पदमाकर पांडेय, नीरज मिश्र, विकास तिवारी, आरपी सिंह आदि मौजूद रहे।

 

समाज से जुड़ाव की चाहत ने बनाया चिकित्सक

समाज से जुड़ने का महज एक ही तरीका है कि असहाय और गरीबों की सेवा की जाये, बस यही चाहत चिकित्सा के क्षेत्र में ले आई। पिता इंजीनियर थे, मेरे दो भाई भी इंजीनियर हैं,लेकिन मुझे लगता था कि इंजीनियर बनकर लोगों की सेवा नहीं कर पाऊंगा। पिता की भी इच्छा थी कि समाज के लिए कुछ करूं। यही सोच आज मुझे सम्मान दिला रही है। आज का दिन इसलिए भी खास है कि आज ही मेरी बेटी का एमबीबीएस में दाखिला हुआ है। डॉ. सुनील वर्मा, निदेशक, इंटरनल मेडिसिन, मैक्स हॉस्पिटल, लखनऊ


बड़े भाई की बीमारी ने बना दिया डॉक्टर

मेरा जन्म जौनपुर के एक किसान परिवार में हुआ था। शुरुआती शिक्षा गांव में ही हुई, हाईस्कूल में था कि तभी बड़े भाई बीमार पड़ गये। उनकी हालत गंभीर होती जा रही थी। इलाज के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा था। इसी बीच बड़े भाई ने कह दिया कि काश हमारे घर में भी कोई डॉक्टर होता, बस यही बात दिल में घर कर गई और वहीं से विचार बदला और शुरू हुआ डॉक्टर बनने का सफर। बड़े भाई के इस बात से जीवन को नई दिशा मिली। डॉ. वीरेंद्र यादव, हैरिटेज हॉस्पिटल

कैंसर पीड़ित मरीजों को गुणवत्तापूर्ण जीवन देना पहली प्राथमिकता

चिकित्सा का क्षेत्र मेरी पहली पसंद है। शुरुआत से ही इसी क्षेत्र में मेरी रुचि थी, जो बाद में शौक बन गई। लोगों का जीवन तभी अच्छा होता है जब उनका स्वास्थ्य अच्छा हो। यही वजह है कि लखनऊ में करीब 12 साल से कैंसर पीड़ित मरीजों को बेहतर इलाज देने का काम कर रहा हूं। जिससे उनके जीवन की गुणवत्ता बनी रहे।- डॉ. विभोर महेंद्रू, कैंसर रोग विशेषज्ञ, लखनऊ

दिव्यांगता ने बना दिया डॉक्टर

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आज मैं एक अस्पताल चलाता हूं। जिसमें कई डॉक्टर मेरे साथ काम करते हैं और हमारा एक ही उद्देश्य है कि जो भी मरीज गरीब और परेशान हो उनका तत्काल और बेहतर इलाज हो और चिकित्सा सुविधा मिले। यह सोच मेरे अंदर दिव्यांगता होने के कारण आई। लोग जुड़ते हैं। डॉ. सर्वेश त्रिपाठी, हनुमंत पॉली क्लीनिक,लखनऊ

अपनी मिट्टी से नहीं छूटा मोह, लौट आये स्वदेश

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रायबरेली जिले के गुरुबख्शगंज में शुरुआती पढ़ाई हुई। टाट पट्टी पर बैठकर तख्ती पर लिखा करते थे। पिता शिक्षक रहे। इसलिए पढ़ाई लिखाई का साथ नहीं छूटा। पिता को देखकर ही सामाजिक सेवा का भाव मन में आया और इसी बीच इण्टर की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी। उसके बाद मेडिकल की तैयारी शुरू कर दी। मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिल गया। बाद में फ्लोशिप पर विदेश चला गया। साल 2019 में लखनऊ मेदांता आ गया। इसके पीछे की वजह अपनी मिट्टी का मोह ही था। यहां आने के बाद अपने जिले में हर सप्ताह जाना होता है। वहां पर हर शनिवार को अपने लोगों के स्वास्थ्य देखभाल का मौका भी मिलता है। डॉ. धमेंद्र सिंह, आर्थोपेडिक एंड ज्वाइंट रिप्लेसमेंट, मेदांता हॉस्पिटल, लखनऊ

मानव स्वभाव को समझने की चाहत ने बना दिया साइकेट्रिस्ट

करीब 65 प्रतिशत लोग मनोरोग से पीड़ित होते हैं। इनमें से करीब 3 प्रतिशत लोग गंभीर मानसिक बीमारी का शिकार होते हैं। आज एक साइकेट्रिस्ट होने के नाते मैं इन समस्याओं को समझता हूं, लेकिन इसकी शुरुआत साल 1988 से पहले ही हो गई थी। मैं एमबीबीएस करने केजीएमसी पहुंचा था, वहां पर डॉक्टरों को मरीजों से बात करते देखता तो वह मुझे बहुत पसंद आता। जिसके बाद लोगों से बातचीत करना और उनके स्वभाव व व्यवहार को समझना अच्छा लगने लगा। मौजूदा दौर में तनाव और अन्य कारणों के चलते लोग मानसिक बीमारियों का शिकार होते हैं, जो बाद में गंभीर स्वरूप ले लेती हैं। डॉ. आरके. ठकराल, न्यूरो साइकेट्रिस्ट, लखनऊ

मरीजों को सस्ता इलाज देने की चाहत

युनानी

मौजूदा दौर में इलाज कराना हर किसी के बस की बात नहीं है। इसके पीछे की वजह इलाज का महंगा होना है। मेरी कोशिश रहती है कि इलाज के रास्ते में गरीबी बाधा न बने। इसी के चलते मैं डॉक्टर बना। आज के समय में मैं लोगों को सस्ता और सुरक्षित इलाज मुहैया करा रहा हूं। डॉ.सैय्यद नाजिम अली, लखनऊ

डॉक्टर बनने की राह में आर्थिक हालात न बनें बाधा

भारत में बहुत से युवा चिकित्सक बनना चाहते हैं, लेकिन कई बार उनकी आर्थिक स्थित इस बात की इजाजत नहीं देती है। इसी समस्या का देखते हुये स्टूडेंट की काउंसलिंग का काम शुरू किया। जो भारत में चिकित्सा की पढ़ाई नहीं कर पाते, उन्हें उचित सलाह देकर विदेश से चिकित्सा के क्षेत्र में कॉरियर बनाने की मदद की जाती है। डॉ.अटल प्रताप सिंह, एमडी, ग्लोबल एजुकेशनल

पिता की इच्छा थी समाजसेवा से जुड़े

मेरे पिता डॉ. शमीम आयुर्वेद रत्न से सम्मानित रहे। उनकी वर्ष 2016 में मृत्यु हो चुकी है। पिता की इच्छा थी कि हम उनकी विरासत को आगे बढ़ाएं। सीतापुर में आसरा हॉस्पिटल का संचालन कर रहा हूं। मेरे दोनों भाई भी सहयोग करते हैं। आज अमृत विचार की ओर से सम्मानित होने पर गौरव की अनुभूति हो रही है। - डॉ. एहतशामुल, आसरा अस्पताल, सीतापुर

पिता दवा व्यवसायी थे तो मिला प्रोत्साहन

मेरे पिता दवा व्यवसायी रहे। इससे मेरी भी शुरू से ही डॉक्टरी पेशे में रुचि रही। वर्तमान में गोमतीनगर में पेन फ्री क्लीनिक के नाम से क्लीनिक संचालित कर रहा हूं। इसमें मेरी पत्नी सुमित सावंत (पीडियाट्रिक) भी सहयोग करती हैं। ऐसे कार्यक्रमों से प्रोत्साहन मिलता है। -डॉ. विक्रांत, संचालन पेन फ्री क्लीनिक, गोमतीनगर


बच्चों को दे रही हूं मुस्कान

मैं पति के साथ मिलकर क्लीनिक का संचालन करती हैं। बाल चिकित्सा आर्थोपेडिक विधा की डॉक्टर होने के नाते हम पीड़ित बच्चों की मुस्कान लौटने का काम करती हूं। बच्चों की मुस्कान सुकून देती है। डॉक्टरों को सम्मानित करने की अमृत विचार की पहल सराहनीय है।
- डॉ. सुमित सामंत,संचालन पेन फ्री क्लीनिक, गोमतीनगर

देश की नींव होते हैं शिक्षक

हिमालयन

शिक्षा वो हथियार होता है जिसे कोई छीन नहीं सकता। एक शिक्षक देश की नींव की तरह होता है। हमारा इंस्टिट्यूट इसी उद्देश्य से बच्चों को शिक्षित कर रहा है। उन्हें रोजगार मुहैया कराता है। आज उपमुख्यमंत्री से सम्मानित होकर अच्छा लग रहा है। अमृत विचार का यह आयोजन सराहनीय है। - समता बाफिला, चेयरपर्सन हिमालयन ग्रुप ऑफ इंस्ट्यूशन

परिवार के पहले डॉक्टर, पिता से मिली प्रेरणा

मूल रूप से बलिया का रहना वाला हूं। मेरा परिवार खेती-किसानी से जुड़ा रहा है। परिवार का में पहला डॉक्टर हूं। पिता निजी विद्यालय में शिक्षक रहे। हमारे क्षेत्र में चिकित्सा सुविधा बेहतर नहीं थी। पिता की इच्छा थी कि हम डॉक्टर बने। वर्तमान में गोमतीनगर क्षेत्र में वर्णिका चाइल्ड थेरेपी सेंटर के नाम से क्लीनिक का संचालन कर रहा हूं। आज उपमुख्यमंत्री के हाथों सम्मानित होकर होकर गौरव महसूस कर रहा हूं। -डॉ. अजय कुमार सिंह, संचालक, वर्णिका चाइल्ड थेरेपी सेंटर,गोमतीनगर

किसान परिवार से हूं, लोगों की सेवा करना अच्छा लगता

मूलरूप से सीतापुर जिले का रहने वाला हूं। पिता किसानी करते हैं। करीब 7 साल से जानकीपुरम के सेक्टर जी में नॉन सर्जिकल हेयर ट्रांसप्लांट का क्लीनिक संचालित कर रहा हूं। पीड़ितों की सेवा करना अच्छा लगता है। काफी उत्साहित हूं। -डॉ. रिजवान अली, संचालक नॉन सर्जिकल हेयर ट्रांसप्लांट क्लीनिक, जानकीपुरम

बुजुर्गों की कर रहे सेवा

हमें बुजुर्गों की सेवा करना अच्छा लगता है। महानगर में आस्था अस्पताल का संचालन इसी उद्देश्य से किया जा रहा। यहां कई निराश्रित बुजुर्गों का भी इलाज किया जा रहा। डॉक्टर बनने की प्रेरणा हमें अपने परिवार से मिली। आज का कार्यक्रम सराहनीय है। ऐसे कार्यक्रमों से चिकित्सकों का मनोबल बढ़ता है।-डॉ. अभिषेक शुक्ला, आस्था अस्पताल

जरूरतमंद बच्चों को दे रहे मुफ्त शिक्षा

सांई

शिक्षा जीवन का आधार है, इसके बिना बेहतर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।यही वजह है कि जरूरतमंद बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का हमारी संस्थान काम कर रही है।
इसके अलावा सरकारी योजनाओं को लेकर लोग जागरूक रहें और उसका लाभ ले सकें इसके लिए भी लगातार काम किया जा रहा है। अमित शर्मा, सांई धाम मंदिर फाउंडेशन ट्रस्ट, लखनऊ

फोटो: प्रमोद शर्मा

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