बाराबंकी: सड़क सुरक्षा पर बैठक के बाद बैठक, नतीजा सिफर 

सड़क सुरक्षा समिति में शामिल विभाग कर रहे रस्म अदायगी 

बाराबंकी: सड़क सुरक्षा पर बैठक के बाद बैठक, नतीजा सिफर 

योगेश शर्मा/बाराबंकी, अमृत विचार। तारीख पर तारीख वाली दशा जिला स्तरीय सड़क सुरक्षा समिति की होने वाली बैठकों की भी है। बैठक के बाद बैठक होती चली जा रही, पर सुझावों व उपायों पर अमल न के बराबर है। सड़क सुरक्षा से जुड़े विभागों की उदासीनता आमजन की जिन्दगी पर भारी साबित हो रही है। नतीजा यह कि आए दिन होने वाले हादसों में सांसें थमती जा रही हैं, केवल सड़क है और उस पर दौड़ने वाले तेज गति के वाहन। माना जाता है कि यातायात के लिए बने नियमों का ही सही ढंग से पालन करा दिया जाए तो भी हादसों की बढ़ती संख्या में कमी आ सकती है, लेकिन हो रहा ठीक उल्टा। यातायात विभाग हादसों को रोकने में कम दूसरे कामों पर ज्यादा ध्यान दे रहा है। 

जिले में सड़क हादसों को कम करने, सुरक्षा उपायों को अमल में लाने व इन पर संयुक्त रूप से काम करने के लिए ही जिला स्तरीय सड़क सुरक्षा समिति बनी हुई है। इस समिति में शामिल लोक निर्माण विभाग, पुलिस विभाग, स्वास्थ्य, नगर पालिका, एआरएम रोडवेज, एआरटीओ, एनएचएआई जैसे भारी भरकम विभागों का एक ही काम है, मार्गों पर होने वाले हादसों पर रोक लगाने व सुरक्षा उपायों पर न सिर्फ अपनी राय देना बल्कि इन्हें समय रहते अमल में लाना, ताकि असमय काल के गाल में समा रहे लोगों के जीवन को सुरक्षित किया जा सके। इसमें कोई संदेह नहीं कि इन विभागों के पास अपनी जिम्मेदारियां भी हैं पर यह भी सच है कि इनके पास संसाधन, मानव बल व उपायों को अमल में लाने की कुव्वत भी है। कहने का मतलब यह कि समिति की बैठकों में उभरने वाले विचारों सुझावों व उपाय अगर समय रहते अमल में आ जाएं तो रोका भले न जा सके पर हादसों की तादाद में कमी जरुर लाई जा सकती है। 

अब बात करते हैं जिला स्तरीय समिति के हालात पर तो इस समिति की अब तक 11 बैठकें हो चुकी हैं, कार्ययोजना भी तैयार है पर देरी बस इन्हे अमल में लाए जाने की है और यही काम टलता चला जा रहा। कहा जाए कि सड़क हादसों से होने वाली असमय मौत को रोकने के तमाम प्रयास कागजी साबित हो रहे हैं तो यह गलत न होगा। इसके चलते ही सड़क हादसों से हर 21 घंटे में एक इंसान को अपनी जान गंवानी पड़ रही है। साल भर में जान गंवाने वालों की यह संख्या तीन सौ के पार तक पहुंच जाती है। 

बड़े बड़े महकमे शामिल पर नतीजा सिफर 
गौरतलब है कि पांच हाईवे लखनऊ-अयोध्या, लखनऊ-सुल्तानपुर, बाराबंकी-बहराइच, किसान पथ व पूर्वांचल एक्सप्रेस वे व अन्य प्रमुख सड़कों से रोजाना करीब एक लाख से अधिक वाहन गुजरते हैं। इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी एनएचएआई, एआरटीओ, एआरएम, नगर पालिका, स्वास्थ्य, पुलिस विभाग, लोक निर्माण विभाग के अफसरों पर है पर इनकी कार्यशैली से नहीं लगता कि यह जिम्मेदारी निभाई जा सकेगी। एसी कार्यालयों में बैठकर फाइलें निपटाने वाले अधिकारी सड़क हादसोें में खोती जिन्दगियों की कीमत और आंसू बहाते परिजनों का दर्द इनसे समझा न जाएगा। शायद यही वजह है कि सड़क हादसे बढ़ते जा रहे और हादसों के लिए बदनाम खूनी मार्ग अपनी उम्र बढ़ाते जा रहे। 

आला अफसर फिक्रमंद, यातायात विभाग को नहीं फर्क 
निदेशक यातायात एवं सड़क सुरक्षा के सत्यनारायण की गंभीरता जरूर काबिले तारीफ कही जाएगी। वह समय समय पर चलने वाले सड़क सुरक्षा अभियानों की सराहना तो करते हैं पर यह भी इशारा करते हैं कि ड्रंकेन व ओवर स्पीड वाहनों के खिलाफ अभियान चलना चाहिए। उन्ही के निर्देश पर हर जिले में अभियान चलाया गया पर बिना किसी उपकरण के, जैसे कि बाराबंकी में यातायात विभाग के पास स्पीड रडार, ब्रीथ एनालाइजर व ध्वनि मापक यंत्र मौजूद हैं पर इनका प्रयोग नहीं हुआ। यह धूल फांकते ही रह गए। पूरे जिले में यातायात विभाग की जड़ें हैं पर यह हादसे रोकने में कम दूसरे कामों को करने में ज्यादा तल्लीन हैं। निदेशक की चिंता से इन्हे रत्ती भर लेना देना नही है। 

क्या बोले जिम्मेदार
मुख्य चिकित्साधिकारी डा. अवधेश कुमार यादव ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग का काम समय से एंबुलेंस घटनास्थल पर भिजवाना है। जिसमें कोई कोताही नहीं की जा रही है। बाकी अन्य विभागों से सामन्जस्य बैठाकर इस दिशा में काम किया जा रहा है

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