विलुप्त प्रजातियां रंग-बिरंगे फलों जैसे कवकों और वनों के लिए बनीं ‘आफत’, 30 साल पुरानी पहेली सुलझाई 

(जैमी वुड, एडिलेड विश्वविद्यालय; एमी मार्टिन और एनी गैसकेट, ऑकलैंड विश्वविद्यालय) 

विलुप्त प्रजातियां रंग-बिरंगे फलों जैसे कवकों और वनों के लिए बनीं ‘आफत’, 30 साल पुरानी पहेली सुलझाई 

ऑकलैंड। अधिकतर कवकों (फंगल) को अपने बीजाणु का प्रसार करने के लिए केवल हवा और पानी की ही जरूरत होती है, लेकिन ‘ट्रफल’ (कुकुरमुत्ता) समेत कुछ कवकों को अपने बीजाणु के प्रसार के लिए जानवरों की आवश्यकता होती है। आमतौर पर, ‘ट्रफल्स’ और ‘ट्रफल’ जैसे कवक (जो ट्रफल वंश से संबंधित नहीं हैं, लेकिन अन्यथा समान हैं) फीके रंग के होते हैं और जमीन के नीचे उगते हैं। वे स्तनधारियों को आकर्षित करने के लिए गंध का उपयोग करते हैं, जो उन्हें खाते हैं और उनके गोबर में बीजाणुओं को पूरे परिदृश्य में फैलाते हैं।

यह प्राचीन ‘ट्रफल-स्तनधारी’ संबंध ही है जिसके कारण सूअर और कुत्ते (और कई मनुष्य) इन कवकों को खाना पसंद करते हैं। लेकिन एओटेरोआ न्यूज़ीलैंड में ‘ट्रफल्स’ के बीजाणुओं को प्रसारित करने के लिए कोई मूल स्थलीय स्तनधारी नहीं था। हमारा नया अध्ययन 30 साल पुराने रहस्य को सुलझाता है कि क्या फल खाने वाले पक्षियों ने यह भूमिका निभाई होगी? 

न्यूजीलैंड के असामान्य रूप से रंगीन ‘ट्रफल’ अधिकांश पारिस्थितिकी प्रणालियों में छोटे स्तनधारियों, विशेष रूप से कुतरने वाले जानवरों द्वारा खाया जाता है, जो कवक के बीजाणुओं को प्रसारित करने और वन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। कवक विज्ञानी रॉस बीवर ने 1990 के दशक में न्यूजीलैंड में उगने वाले ट्रफल जैसे कवकों में कुछ अजीब बात देखी। उनमें से कई के फल चमकीले रंग के थे जो जंगल की सतह से ऊपर उभरे हुए थे, जो मूल रूप से गिरे हुए फलों की नकल थे।

न्यूजीलैंड में स्तनधारियों की कमी (चमगादड़ों के अपवाद के साथ) के कारण, बीवर ने परिकल्पना की कि ये विशेषताएं पक्षियों को बीजाणु फैलाने वालों के रूप में आकर्षित करने के लिए विकसित हुई थीं क्योंकि वे भोजन खोजने के लिए गंध की तुलना में दृष्टि पर अधिक निर्भर करते हैं। बीवर और उनकी सहयोगी टेरेसा लेबेल ने 2014 में इस परिकल्पना का विस्तार से वर्णन किया था, लेकिन तीन दशकों तक इसका परीक्षण नहीं हो सका। 

ध्यान आकर्षित करने के लिए रंग का इस्तेमाल हमारे अनुसंधान के दौरान हमने पूछा कि क्या न्यूजीलैंड में वास्तव में ज्यादा चमकीले रंग के ‘ट्रफल’ जैसे कवक हैं या फिर हम सिर्फ उन पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और फीके कवकों को कम महत्व दे रहे हैं। हमने जांच की कि क्या उनके वितरण और फल खाने वाले पक्षियों के बीच कोई संबंध है। सबसे पहले, हमने दुनिया भर से 479 ट्रफल जैसी फंगस प्रजातियों के रंग और स्वभाव (जमीन के ऊपर या नीचे) के बारे में जानकारी एकत्र की। फिर हमने ‘ग्लोबल बायोडायवर्सिटी इन्फॉर्मेशन फैसिलिटी डेटाबेस’ से इन प्रजातियों के लिए 24,000 से ज्यादा स्थान प्राप्त किए। 

इन आंकड़ों का विश्लेषण पर्यावरणीय कारकों (जैसे वर्षा और तापमान) और जैविक पहलुओं (जैसे वन आवरण और फल खाने वाले पक्षियों की उपस्थिति) के साथ किया गया, जो किसी भी स्थानिक परिपाटी को समझाने में मदद कर सकते हैं। वैसे तो रंगीन ‘ट्रफल’ जैसी कवक दक्षिण और मध्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी पाए जाते हैं, लेकिन अनुसंधान के हमारे नतीजों से पता चला है कि न्यूजीलैंड में इनका अनुपात दूसरे भूभागों की तुलना में कहीं ज्यादा है। यह बात लाल और नीले रंग की प्रजातियों के लिए खास तौर पर सत्य है। हमने यह भी पाया कि दुनिया भर में जिन क्षेत्रों में फल खाने वाले पक्षी अधिक थे, वहां रंगीन ‘ट्रफल’ जैसे कवक भी अधिक थे। 

पक्षी, ट्रफल जैसे कवक और वृक्ष
हाल तक यह माना जाता था कि ‘ट्रफल’ जैसे कवकों के बीजाणुओं को प्रसारित करने में पक्षियों की भूमिका सीमित होती है। लेकिन यह धारणा 2021 में तब बदल गयी, जब पैटागोनिया के दो फल खाने वाले पक्षी प्रजातियों (चुकाओ तापकुलो और ब्लैक-थ्रोटेड ह्यूट-ह्यूट) के मल के नमूनों के अध्ययन में ट्रफल जैसी कवक सहित कई प्रकार के कवक के डीएनए और बीजाणु पाए गए। अनुसंधान दल ने दोनों पक्षी प्रजातियों को जंगल की सतह पर ट्रफल्स (कवक) तोड़ते हुए भी देखा, जिससे यह पता चला कि कवक के फैलाव में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। ‘ पैटागोनियन’ अध्ययन का एक और निष्कर्ष यह था कि मल के नमूनों में पाए गए कई ‘ट्रफल’ जैसे कवक, कवक-पौधे जड़ अंतःक्रिया के भूमिगत नेटवर्क का हिस्सा हैं, जिसे ‘माइकोराइजा’ के रूप में जाना जाता है। 

विलुप्ति की विरासत
हमारे अनुसंधान के नतीजे इस विचार का समर्थन करते हैं कि रंगीन ‘ट्रफल’ जैसे कवक पक्षियों के फैलाव के लिए अनुकूल हैं, और वे दुनिया के अन्य स्थानों की तुलना में न्यूजीलैंड में अधिक आम हैं। फिर भी, विडंबना यह है कि स्थानीय पक्षियों द्वारा ‘ट्रफल’ जैसे कवक खाने के मामलों की संख्या सीमित हो गई है। ऐसा क्यों है? इसका उत्तर न्यूजीलैंड की विलुप्ति की विरासत में छिपा हो सकता है। न्यूजीलैंड में 13वीं शताब्दी में मानव की पहली बसावट के बाद से मुख्य भूमि और अपतटीय द्वीपों पर सभी पक्षी प्रजातियों में से लगभग एक तिहाई विलुप्त हो चुकी हैं। कई और प्रजातियों की आबादी विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है। इनमें कई बड़े पक्षी हैं जो फल खाते थे, जिनमें ‘मोआ’ और ‘काकापो’ की नौ प्रजातियां शामिल हैं। 

मोआ और काकापो के प्राचीन मल से 2018 में डीएनए निकाल कर किए गए अध्ययन से इस बात के प्रमाण मिले कि ये पक्षी कभी ‘माइकोरिजल ट्रफल’ जैसे कवक खाते थे। न्यूजीलैंड के जंगलों से ऐसे पक्षियों का गायब होना कवक के साथ लाखों सालों के सह-विकास का अंत दर्शाता है। हमारे वन और वृक्ष इन पक्षी-कवकों के बीच के संपर्कों की क्षति से कैसे निपटेंगे, जो मृदा में पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं? क्या बाहर से आने वाली पशु प्रजातियां देसी कवकों के लिए ‘सरोगेट’ प्रसारक के तौर पर कार्य कर सकती हैं? प्रजातियों की विलुप्ति से जंगलों पर असर अब भी अज्ञात है। हालांकि, निरंतर अनुसंधान और संरक्षण प्रयासों के साथ, हम अपने वन पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं और उसका समर्थन कर सकते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि न्यूजीलैंड के जंगलों की समृद्ध और अनूठी जैव विविधता आने वाली पीढ़ियों के लिए बनी रहे।

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