Sawan 2024: सावन में अब नहीं दिखते पेड़ों पर झूलों में पेंग मारते बच्चे...विलुप्त होती जा रही है झूला झूलने की परंपरा
पहले झूलों पर बहन-बेटियां गाती थी सावन के गीत
उन्नाव, (दीपक मिश्रा)। सोशल मीडिया और आधुनिकता की बदलती दुनिया में पुरानी परंपराएं विलुप्त होती जा रही हैं। यहीं हाल रहा तो आने वाले समय में सावन में झूले डालने व उन्हें झूलने की परंपरा भी समाप्त हो जाएगी।
एक समय था जब झूला झूलना सिर्फ रिवाज नहीं माना जाता था बल्कि इसे भारतीय संस्कृति की प्राचीन परंपरा भी कहा गया। लेकिन, अब सावन में पेड़ों पर झूले पड़े नहीं दिखते।
बहन-बेटियां व युवा अब झूलों पर पेंग मारते नहीं दिखते हैं। हालांकि, घर के बुजुर्गों को अभी भी वह पुराने दिन याद आते हैं।
सावन का महीना चल रहा है। जिसमें पहले के दौर में पेड़ों पर झूले दिखाई देने लगते थे। गांव-मोहल्लों से सावन के गीत कानों में खूब गूंजते थे। विवाहित महिलाएं व बेटियां सावन के महीने में हाथों में मेंहदी लगा मायके आ जाती थीं।
बागों व मोहल्लों में एक पेड़ ऐसा चुना जाता था जहां दिन में गांव की बहुयें, बेटियां व बच्चे झूला झूलने जा सकें। शाम होते ही वहां मोहल्ले की बहन-बेटियां व महिलाएं सावन के गीत गाते हुए झूला झूलती थीं।
लेकिन, धीरे-धीरे समय परिवर्तन के साथ यह झूले अब गायब हो चुके हैं। दशकों पहले सावन की बारिश में भीगते हुए बागों में आम के पेड़ों में झूला झूलना, बारिश के पानी में कागज की नाव बना कर चलाना जैसी खुशियां अब नहीं दिखाई देती हैं।
फ्रेम वाले झूलों ने ले ली पेड़ों के झूलों की जगह
सावन में पेड़ों पर पड़ने वाले झूलों की जगह अब घरों की छतों व आंगन में रेडीमेड फ्रेम वाले झूले, लोहे के छल्ले व बांस के झूलों ने ले ली है। इससे आज के बच्चों को झूलों में पेंग मारने का आनंद सिर्फ बुजुर्गों से सुनने को ही मिलता है।
झूले पर होते थे सावन के गीत
सावन के झूलों ने मुझको बुलाया, सावन के झूले पड़े तुम चले आओ, सावन का महीना पवन करे शोर जैसे गीत आज भी सावन में झूला झूलने की परंपरा याद दिलाते हैं। इस समय सावन माह तो चल रहा है लेकिन, अब पेड़ों पर झूले नहीं दिख रहे हैं।
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