Kanpur: गर्भावस्था के दौरान बढ़ रही अस्थमा की समस्या; चेस्ट हास्पिटल में आने वाली गर्भवती महिलाओं में इतने प्रतिशत अस्थमा से पीड़ित
कानपुर, अमृत विचार। गर्भावस्था के दौरान यदि किसी महिला की सांस अधिक फूल रही है तो यह अस्थमा का भी संकेत हो सकता है। गर्भावस्था के समय प्रतिरोधक क्षमता काफी कमजोर हो जाती है। ऐसे में सांस फूलने की समस्या को आम तकलीफ मानकर इलाज नहीं कराने पर समय से पहले प्रसव, बच्चे के विकास पर असर और उसका वजन कम होना जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मुरारी लाल चेस्ट अस्पताल की ओपीडी में प्रतिमाह 25 से 30 ऐसी गर्भवती महिलाएं इलाज के लिए आती हैं, जिनको सांस लेने में तकलीफ, बेचैनी और थोड़ी दूर चलने पर हांफने जैसी समस्या होती है। जांच कराए जाने पर इनमें 80 प्रतिशत महिलाएं अस्थमा से पीड़ित मिलती हैं। चेस्ट अस्पताल के विभागाध्यक्ष डॉ.संजय कुमार वर्मा ने बताया कि अस्थमा, वायुमार्ग और फेफड़ों को प्रभावित करने वाली समस्या है।
अस्थमा की समस्या होने पर फेफड़ों से हवा अंदर और बाहर ले जाने वाली नलिकाएं प्रभावित हो जाती हैं। श्वासनली में सूजन और संकुचन के कारण दर्द होने और सांस छोड़ते समय आवाज आने जैसी समस्या हो सकती है। जो महिलाएं कम टहलती हैं, उन्हें यह समस्या अधिक हो सकती है। हालांकि गर्भावस्था में एक तिहाई से ज्यादा महिलाओं में अस्थमा के लक्षण ठीक हो जाते हैं।
प्रदूषण और एलर्जी से बढ़ती समस्या
सिर्फ प्रदूषण से अस्थमा नहीं होता है, लेकिन यह शरीर में मौजूद अस्थमा के कारणों को बढ़ाने में मदद जरूर करता है। प्रदूषण और एलर्जी कारक तत्व जब श्वांस नलिकाओं व फेफड़े में पहुंचते हैं तो रिएक्शन होता है। साइटोकाइन और ल्यूकोट्राइन केमिकल निकलते हैं, जिससे श्वांस नलिकाओं में सूजन, आंख में जलन, आंखें लाल होने, पानी आने, नाक में सूजन व पानी आने तथा छींक की शिकायत बढ़ जाती है। सूजन से श्वांस नली संकरी होने पर सांस लेने में दिक्कत होती है। सांस लेने में जोर लगाना पड़ता है। यही स्थिति आगे चलकर दमा का रूप ले लेती है।
अस्थमा के यह प्रमुख कारण
फूलों और फसलों के परागकण, धूल और धुआं, सॉफ्ट ट्वॉय की धूल, घर की मिट्टी (डस्ट माइट), घरों के पर्दों पर जमी धूल, फर्नीचर की पॉलिश, पालतू जानवर (कुत्ता, बिल्ली और खरगोश) के बालों की एलर्जी।