बाराबंकी: मेंथा तेल के दाम में गिरावट, किसानों की लागत भी डूबी

पिपरमिंट की फसल से किसानों का हो रहा मोह भंग

बाराबंकी: मेंथा तेल के दाम में गिरावट, किसानों की लागत भी डूबी

सतरिख/ बाराबंकी,अमृत विचार |  इस बार पड़ी भीषण गर्मी के चलते हरख क्षेत्र में हरा सोना यानी पिपरमिंट (मेंथा) का उत्पादन काफी कम हुआ। हीटवेव और रिकॉर्ड तोड़ तापमान के चलते फसल में पौधे पनप ही नहीं पाए, ज्यादा टहनियां और पत्ते नहीं हुए तो तेल भी कम निकल रहा है। इसके अलावा बाजार में मेंथा तेल के मूल्य में आई भारी गिरावट के चलते किसानों की कमर टूट गई है।  किसान इस बार लागत तक डूबने की बात कह रहे हैं।यही वजह है कि क्षेत्र के किसानों का अब इस खेती से अब मोह भंग होने लगा है।

मंदी के कारण इलाके में किसान मेंथा की जगह अपने खेतों को खाली छोड़ना बेहतर समझ रहे हैं। पिपरमिंट का उत्पादन जिले में पहले जो करीब एक लाख हेक्टेअर में होता था, उसका रकबा तकरीबन बीस फीसदी तक घट गया है। नतीजा यह है कि मई-जून के महीने में मेंथा की खुशबू से गुलजार रहने वाले खेत-खलिहान इस बार उजाड़ और सुगंधहीन नजर आ रहे हैं।

हरख क्षेत्र ने पिछले एक दशक से औषधीय पौधों की खेती में काफी उन्नत की थी। खासकर मेंथा उत्पादन में यह क्षेत्र पूरे पूर्वांचल में अपनी अलग पहचान बना चुका था। मेंथा उत्पादन के उज्ज्वल भविष्य को देखते हुए ही यहां के लोग बड़े स्तर पर इसकी खेती करने लगे थे। यहां के किसानों ने दूसरी नकदी फसलों की जगह मेंथा के उत्पादन को बढ़ा दिया। जिससे यहां प्रतिवर्ष मेंथा का उत्पादन अधिक हो गया। अभी तक मेंथा तेल की कीमत अमूमन हजार रुपये प्रति किलो के आसपास रहती थी।

जिससे किसानों को संतोषजनक मुनाफा मिल जाता था। लेकिन इस वर्ष तेल की कीमत गिरकर आठ सौ अस्सी रुपये प्रति किलो के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई। जिससे किसानों को अपनी लागत मूल्य भी प्राप्त नहीं हो सकी। यही कारण है कि इसकी खेती से किसानों का मोह भंग हो रहा है। 

क्या बोले किसान

मेंथा उत्पादक किसान रामखेलावन चौधरी ने बताया कि एक दशक पूर्व जब मेंथा की खेती की शुरुआत की थी। उस समय मेंथा तेल की कीमत अच्छी थी। लेकिन इधर कई वर्षों से तेल की कीमतों में लगातार गिरावट होने से किसानों की कमर टूट गई है। अब मेंथा की खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है।

मेंथा उत्पादक ऋषि कुमार अन्ना ने बताया कि मेंथा की खेती के लिए बीज तैयार करने, रोपाई, सिंचाई, निराई, कटाई और पेराई पर प्रति बीघा करीब 25 से 30 हजार रुपये का खर्च आता है, लेकिन मूल्य कम रहने के कारण हर वर्ष उन्हें आर्थिक क्षति उठानी पड़ रही है।

मेंथा उत्पादक रामपाल यादव ने कहा कि पहले वह कई बीघा में मेंथा की खेती करते थे, लेकिन अब इस खेती में अधिक मेहनत लगती है और दाम भी ठीक नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने किसानों के मेंथा की खेती छोड़ने के लिए सरकार की नीतियों को भी जिम्मेदार बताया।

मेंथा उत्पादक बिंद्रा प्रसाद रावत ने कहा कि फसल को तैयार करना अब बहुत मुश्किल हो गया है। नहरों का साधन खेतो तक नहीं है, जिस कारण पंपिंग सेट और समरसेबल से मेंथा फसल की सिचाई करनी पड़ रही है, लेकिन मेंथा तेल की कीमत सही नहीं मिल पा रही। जिसके चलते लंबा नुकसान उठाना पड़ रहा है।

60-70 फीसदी तक तेल कम

किसान राजू ने बताया कि मेंथा की खेती के लिए अनुकूल तापमान 20 से 40 डिग्री सेल्सियस होता है। क्योंकि मेंथा का तेल उसकी पत्तियों में होता है, इसलिए पौधे में ज्यादा कल्ले और पत्तियां जरूरी होती हैं। लेकिन इस बार तापमान मेंथा के लिए अनुकूल नहीं रहा। हीट वेव के कहर से इस बार मेंथा में 60-70 फीसदी तक तेल कम निकल रहा है।

नहीं मिल पाया कृषि का दर्जा

किसान प्रदीप ने बताया कि मेंथा की खेती को कृषि का दर्जा नहीं मिल पाया है। जिसके चलते न तो इस फसल का बीमा हो पाता है और न ही इस फसल को लेकर कोई कृषि अनुदान ही मिलता है। हालांकि पिछले कई वर्षों से इसे कृषि का दर्जा देने की मांग करते आ रहे हैं। बीमा न हो पाने से फसल बर्बाद होने पर किसानों को सीधा नुकसान होता है।

निर्यात कम होने का असर

मेंथा व्यापारी बृजेश यादव के मुताबिक प्रदेश में बाराबंकी मेंथा उत्पादन में बड़ी हिस्सेदारी रखता है। यहां का तेल आगरा, दिल्ली, लखनऊ, कानपुर, मुंबई भी भेजा जाता है और विदेश में चीन इसका सबसे बड़ा हब है। इसके अलावा अफ्रीका, ब्राजील और अमेरिका मेें भी इसका निर्यात अधिक होता है। लेकिन इस समय चीन व अन्य जगहों पर निर्यात न होने से रेट पर सीधा असर पड़ा है। जिसकी वजह से बहुत से किसान अब मेंथा ऑयल को डंप कर भाव बढ़ने का इंतजार भी कर रहे हैं। 

कहां होता है इस्तेमाल

मेंथा ऑयल का इस्तेमाल मिंट और फ्रेशनेस वाले प्रोडक्ट में किया जाता है। फार्मा और एफएमसीजी इंडस्ट्री में मेंथा ऑयल इस्तेमाल होता है। दवाइयों के अलावा सिगरेट, तंबाकू, मेंथा साबुन, सेनेटाइजर, टूथपेस्ट. ठंडा तेल और कफ सीरप आदि बनाने में इस्तेमाल होता है। पान मसाला उद्योग में भी मेंथा तेल का काफी इस्तेमाल किया जाता है।

मेंथा के अलावा किसान अब और भी दूसरी मुनाफे वाली खेती करने लगे हैं। जिसमें उन्हें कम समय में ज्यादा मुनाफा मिल जाता है। इस वजह से मेंथा के रकबे में कुछ कमी हो सकती है। जिले में अभी भी मेंथा की अच्छी पेदावार हो रही है।-महेश कुमार श्रीवास्तव, जिला उद्यान अधिकारी।

 

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