Bareilly News: आपातकाल में गिरफ्तार कर प्लायर्स से खींचे गए थे नाखून

Bareilly News: आपातकाल में गिरफ्तार कर प्लायर्स से खींचे गए थे नाखून

बरेली, अमृत विचार। भारतीय लोकतंत्र रक्षक सेनानी समिति के प्रदेश महामंत्री वीरेंद्र कुमार अटल ने सोमवार को आपातकाल से जुड़े संस्मरण साझा किए और बताया कि किस तरह के जुल्म किए गए। उन्होंने बताया कि आपातकाल में गिरफ्तार कर प्लायस से उनके हाथों के नाखून खींचे गए थे। यह मंजर देखकर उनके साथी घबरा गए थे, लेकिन उन्होंने मुंह नहीं खोला।

उन्होंने बताया कि 25-26 जून, 1975 की आधी रात में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता पर काबिज रहने के कारण आपातकाल की घोषणा कर दी। इसी के साथ नागरिक अधिकार, असहमति के विरोध का अधिकार, मुख्य लेखन के साथ ही अखबारों पर सेंसरशिप लालू कर दी गई।

26 जून, 1975 की सुबह तानाशाही अमावस्या की काली अंधेरी रात की तरह छा चुकी थी। लगभग सभी प्रमुख कांग्रेस विरोधी नेताओं को जेल में कैद कर लिया गया था। आपातकाल का विरोध करने वाली मीडिया पर भी दमन का चाबुक बेरहमी के साथ चलाया गया था। उस दौरान न्याय पालिका सत्ताधारी दल को नाखुश करने में संकोच करती दिखाई दी।

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के रायबरेली से निर्वाचित हुई सांसद की सदस्यता को खारिज कर दिया गया। अगले 6 साल तक किसी भी चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गयी। इससे पूर्व लोकनायक जयप्रकाश नारायण संपूर्ण क्रांति के आंदोलन में देश के युवा, छात्र, मजदूर, किसान और पत्रकार भी पूरे उत्साह के साथ शामिल हो गए थे, क्योंकि उनकी ओर से शुरू किया गया संघर्ष भ्रष्टाचार के खिलाफ था।

आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधी नेताओं और कार्यकर्ताओं को बंदी बनाया गया। वहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से इस तानाशाही के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत कर दी गई। उस समय का माहौल भयावह था।

उन्होंने बताया कि 27 अक्टूबर 1975 को जिलाधिकारी और पुलिस के सभी अधिकारियों के निवास, कार्यालय और शहर के थानों के मुख्य द्वार पर तानाशाही के खिलाफ और लोकतंत्र की बहाली के लिए पोस्टर चिपकाए गए थे। इसकी भनक लगते ही एक साथी की मुखबरी के कारण उन्हें 28 अक्टूबर 1975 को पुराना शहर के सहसवानी टोला स्थित मकान से कोतवाली इंस्पेक्टर हाकिम राय ने गिरफ्तार कर लिया। कोतवाली में लाकर उन्हें साथियों के नाम और पते न बताने पर टार्चर करना शुरू कर दिया।

रात्रि में जमीन पर गिराकर पैरों में रस्सी बांधकर उन्हें उल्टा लटका दिया गया और पैरों के तलवों पर डंडे बरसाना शुरू कर लिए लेकिन इसके बाद भी उन्होंने साथियों के विषय में कोई जानकारी नहीं दी। 29 अक्टूबर 1975 की सुबह सीओ के कमरे में तत्कालीन डीएम माता प्रसाद के सामने हाथों में हथकड़ी लगाकर पेश किया गया। इंस्पेक्टर को उनका इशारा मिलते ही प्लायर्स मंगवाया गया। एक-एक कर उनके हाथों के नाखून खींच लिए गए। यह सब देखकर उनके साथी घबरा गए और अखिल विद्यार्थी परिषद के संगठन मंत्री श्रीनिवास का पता सुभाष नगर बता दिया।

वीरेंद्र कुमार अटल ने बताया कि आननफानन में उन्हें और एक साथी को पेट्रोल कार नंबर 1 से सुभाष नगर ले जाया गया। उस दौरान उनके हाथों से खून बह रहा था। इशारों में उन्होंने साथी से कहा कि वह मकान का पता बताएंगे। 

इस दौरान उन्होंने बूझकर खपरैल नुमा मकान की तरफ इशारा किया और इंस्पेक्टर हाकिम राय उस घर में घुस गए। तलाशी लेने के बावजूद श्रीनिवास वहां नहीं मिले, क्योंकि इस मकान में वह रह ही नहीं रहे थे। उन्हें दोबारा कोतवाली लाया गया। यहां पुलिस के कांस्टेबलों ने धमकाकर कहा गया कि उन्हें किसी वाहन से कचहरी नहीं ले जाओगे। वह पैदल ही कचहरी पहुंचे। हाथों में बहता खून देखकर लगभग 200 वकीलों को जमावड़ा उनके पास लग गया। सभी वकीलों ने बिना किसी शुल्क के उनका मुकदमा लड़ने की बात कही।

स्व. प्रेम बहादुर सक्सेना एडवोकेट ने उनका मुकदमा लड़ा और लगभग 9 महीने बाद उन्हें बइज्जत बरी करवाया। इंटेलीजेंस के लोगों को गच्चा देकर वह किसी तरीके से कचहरी से निकल आए। तीन दिन बाद उनपर मीसा लगा दी गई, लेकिन 1977 में लोकसभा के चुनाव तक पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी। इतना जरूर हुआ कि मीसा लगने के आठ दिन बाद उनके घर की कुर्की हो गई थी।

ये भी पढे़ं- बरेली: ओपीडी में पहुंचे 12 सौ से ज्यादा मरीज, इलाज से पहले घंटों लाइन में खाए धक्के