Kanpur: सरसौल सीएचसी में खुला पहला मातृ एनीमिया प्रबंधन कार्नर, मरीजों को होगी आराम, कॉर्नर में मिलेंगी ये सेवाएं...

Kanpur: सरसौल सीएचसी में खुला पहला मातृ एनीमिया प्रबंधन कार्नर, मरीजों को होगी आराम, कॉर्नर में मिलेंगी ये सेवाएं...

कानपुर, अमृत विचार। ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताओं को कम करने और खून की कमी को पूरा करने के उद्देश्य से सरसौल ब्लाक की सीएचसी में पहले मातृ एनीमिया प्रबंधन कॉर्नर की शुरूआत की गई है। एनीमिया प्रबंधन के लिए यहां पर प्रसव पूर्व जांचें की जाएगी। एनीमिया ग्रस्त गर्भवती में हीमोग्लोबिन की मात्रा में सुधार लाने का काम किया जाएगा। ऐसे कॉर्नर जिले के अन्य केंद्रों पर भी खोले जाएंगे।

सरसौल ब्लॉक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जिले के पहले मातृ एनीमिया प्रबंधन कार्नर की जानकारी देते हुए परिवार कल्याण कार्यक्रम के नोडल व एसीएमओ डॉ. रमित रस्तोगी ने बताया कि एनीमिया की पहचान हीमोग्लोबीन जांच से की जाती है। इसे तीन भागों में बांटा गया है। पहला हीमोग्लोबीन लेवल 11 ग्राम से ज्यादा है तो इसी सामान्य मानकर दवाइयां दी जाती हैं। 

हीमोग्लोबीन सात ग्राम से 11 ग्राम होता है तो उसे मॉडरेट कहते हैं। यदि हिमोग्लोबीन सात ग्राम से नीचे है तो उसे सीवियर एनीमिया माना जाता है। हीमोग्लोबीन सात ग्राम से 10 ग्राम के बीच रहता है तो दूसरी या तीसरी तिमाही में उस महिला को मातृ एनीमिया प्रबंधन कार्नर में आयरन सूक्रोज का इंजेक्शन दिया जाएगा। ताकि प्रसव के समय खून से संबंधित कोई जटिलताएं ना हो सके। 

वर्तमान में ग्राम स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं पोषण दिवस और प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान में प्रसव पूर्व जांच के माध्यम से एनेमिया ग्रस्त गर्भवतियों की जांच की जा रही है। जटिल प्रसव के कुशल प्रबंधन के लिए खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। इसी उद्देश्य से ग्रामीण स्तर पर पहला मातृ एनीमिया प्रबंधन कार्नर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सरसौल में स्थापित किया गया है। जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर भी मातृ एनीमिया प्रबंधन कार्नर स्थापित करने की तैयारियां चल रही हैं। जल्द ही सभी केंद्रों में गर्भवतियों और महिलाओं को सेवाएं मिलेगी।

बच्चे का विकास प्रभावित होने का रहता खतरा 

यूपीटीएसयू की जिले की स्पेशलिस्ट कम्युनिटी आउटरीच कुसुम सिंकू के मुताबिक हीमोग्लोबीन की कमी एनीमिया की मुख्य वजह है। गर्भावस्था के दौरान 80 फीसदी महिलाओं को एनीमिया से ग्रसित होने का खतरा रहता है। एनीमिया की वजह से प्रसव संबंधी जटिलता बढ़ने के साथ गर्भस्थ शिशु का शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होने का खतरा रहता है। 

यहीं नहीं एनीमिया मातृ-शिशु मृत्यु के प्रमुख कारणों में से भी एक है। वहीं, सामान्य महिलाओं के एनीमिक होने से माहवारी के दौरान रक्तस्त्राव व तकलीफ बढ़ जाती है। ऐसे में बालों का झड़ना, डिप्रेशन, ब्लड प्रेशर व शारीरिक दुर्बलता होना आम हो जाता है। 

पोषक तत्वों की भूमिका होती अहम 

चिकित्सा अधीक्षक डॉ प्रणब के मुताबिक फोलिक एसिड गर्भस्थ शिशु में मस्तिष्क और रीढ़ के विकास में सहायक होता है। बच्चों को जन्मजात दोषों से बचाया जा सकता है। आयरन के सेवन से रक्त संचार में वृद्धि होती है, जिससे गर्भवती और गर्भस्थ शिशु तक ऑक्सीजन की आपूर्ति बेहतर होती है।

कैल्शियम गर्भ में पल रहे शिशु की हड्डियों के निर्माण और गर्भवती के रक्तचाप को नियंत्रित रखने व हड्डियों को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सही मात्रा में कैल्शियम का सेवन करने से मांसपेशियां और तंत्रिका तंत्र मजबूत होते हैं। गर्भवास्था में खाद्य पदार्थों मे कार्बोहाइड्रेट, वसा, आयोडीन, ओमेगा-3, प्रोटीन और विटामिन जैसे अन्य पोषक तत्वों  को जरूर शामिल करना चाहिए। 

इन लक्षणों को न करे नजरअंदाज 

-गर्भावस्था के दौरान रक्तस्राव होना,
-खून की कमी यानि कमजोरी या थकान महसूस होना
-बुखार आना, पेडू में दर्द या बदबूदार पानी आना,
- उच्च रक्तचाप यानि अत्यधिक सिरदर्द
- झटके आना या दौरे पड़ना 
-गर्भ में शिशु का कम घूमना 

कॉर्नर में मिलेंगी यह सेवाएं 

-एनीमिया की जांच के लिए लैब की सुविधा 
- आयरन फोलिक एसिड दवा  
-कृमिनाशक दवाएं
- आयरन सुक्रोज इंजेक्शन व इलाज
- पोषण संबंधित परामर्श सेवाएं 
-  ब्लड ट्रांसफ्यूजन

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