भारत की बढ़ती मान्यता

भारत की बढ़ती मान्यता

इटली के अपुलीया में आयोजित तीन दिवसीय ग्रुप ऑफ सेवन (जी-7) औद्योगिक देशों का शिखर सम्मेलन राष्ट्रों के समूह के रूप में पश्चिमी देशों के राजनीतिक विकास में एक निर्णायक क्षण साबित होने वाला है। सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है जब रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे वर्ष में प्रवेश कर रहा है। 

इजराइल व फिलस्तीन के संघर्ष से मानवीय संकट खड़ा हो गया है। जी-7 में शामिल अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और कनाडा में चुनाव होने हैं। जबकि जापान में सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव होना है। ऐसे में जी-7 के फैसलों का नतीजा महत्वपूर्ण होगा। शिखर सम्मेलन ग्लोबल साउथ के लिए अहम मुद्दों पर विचार विमर्श का अनूठा अवसर है। नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनते ही जी-7 शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे हैं।

उन्होंने कहा कि वे बेहतर भविष्य के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहते हैं। गौरतलब है कि सात देशों के इस समूह का भारत हिस्सा नहीं है मगर इटली की तरफ से बुलावा आने के बाद प्रधानमंत्री ने आउटरीच देश के रूप में जी-7 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। भारत अभी तक 10 बार जी-7 शिखर सम्मेलन में शामिल हो चुका है। 

भारत की नियमित भागीदारी स्पष्ट रूप से भारत की बढ़ती मान्यता और उन प्रयासों के योगदान की ओर संकेत करती है,  जो भारत शांति, सुरक्षा, विकास और संरक्षण सहित वैश्विक चुनौतियों को हल करने की कोशिश में लगातार कर रहा है। भारत के लिए, जी-7 शिखर सम्मेलन अमेरिका और यूरोप के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी के वैश्विक आयाम को विस्तार देने का एक अवसर है। 

यानी सम्मेलन भारत और पश्चिम के बीच नए वैश्विक समझौते की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में उभर सकता है। कुछ महीने पहले जी-20 की अध्यक्षता के दौरान भारत ने कई विवादास्पद मुद्दों पर दुनिया के अन्य सदस्य देशों के साथ सहमति बनाने में शानदार भूमिका निभाई। हमेशा भारत का उद्देश्य ग्लोबल साउथ के हितों और चिंताओं को दुनिया के सामने लाना रहा है। 

भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है। भारत, एशिया और वैश्विक दक्षिण में अपनी साझेदारी को मजबूत करना जारी रखे हुए है, पश्चिम के साथ अधिक उत्पादक साझेदारी भारत के राष्ट्रीय हितों की बढ़ती श्रृंखला को सुरक्षित करने में मदद करती है और भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक नई गहराई जोड़ती है। 

भारत के अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और जापान के साथ जहां मजबूत रिश्ते हैं, वहीं चीन भारत की वैश्विक आकांक्षाओं के लिए सबसे बड़ी बाधा है। ऐसे में एक पश्चिमी धुरी जिसमें अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ के साथ-साथ क्वाड के साथ मजबूत द्विपक्षीय रणनीतिक सहयोग शामिल है, भारत को चीन का मुकाबला करने में मदद कर सकता है।

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