बरेली: सादगी से अदा की गई आला हजरत के कुल की रस्म

बरेली: सादगी से अदा की गई आला हजरत के कुल की रस्म

बरेली, अमृत विचार। तीन रोजा 102वें उर्स-ए-रजवी के आखिरी दिन आला हज़रत के कुल शरीफ की रस्म अदा की गयी। सभी रस्में दरगाह आला हजरत और इस्लामिया मैदान में कोविड 19 की गाइडलाइन के अनुसार अदा की गयी। बुधवार को सबसे पहले फज्र की नमाज के बाद कुरानख्वानी का आयोजन किया गया। इसके बाद दरगाह …

बरेली, अमृत विचार। तीन रोजा 102वें उर्स-ए-रजवी के आखिरी दिन आला हज़रत के कुल शरीफ की रस्म अदा की गयी। सभी रस्में दरगाह आला हजरत और इस्लामिया मैदान में कोविड 19 की गाइडलाइन के अनुसार अदा की गयी। बुधवार को सबसे पहले फज्र की नमाज के बाद कुरानख्वानी का आयोजन किया गया।

इसके बाद दरगाह प्रमुख मौलाना सुब्हान रजा खान (सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती, सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी (अहसन मियां) की सदारत और उर्स प्रभारी सय्यद आसिफ मियां की देखरेख में कारी सखाबत ने तिलावत ए कुरान से महफिल का आगाज किया। निजामत (संचालन) मौलाना यूसुफ रजा संभली ने की।

मौके पर मुफ्ती अरसालान रजा खान ने कहा कि आला हजरत के उर्स पर भीड़ इकठ्ठी करना कमाल की बात नहीं बल्कि उनके बताए रास्ते पर अमल करना कमाल की बात है।

मौलाना सय्यद फुरकान रजा और मौलाना अख्तर ने अपनी तकरीर में कहा कि आला हजरत से सच्ची मोहब्बत रखना सुन्नियत की पहचान है। आप एक किताब के मुसन्निफ (लेखक) नहीं बल्कि पूरी की पूरी लाइब्रेरी का नाम आला हजरत है। मुफ्ती रिजवान नूरी ने कहा कि आला हजरत ने 4 साल की उम्र में कुरान पढ़ लिया, 6 साल में मिलाद और 8 साल की उम्र में अरबी में किताब लिख डाली। 14 साल की उम्र में मुफ्ती की डिग्री हासिल कर ली थी।

इसके बाद ठीक 2 बजकर 38 मिनट पर कुल शरीफ की रस्म शुरू हुई। दुआ मुफ्ती अहसन मियां और मौलाना हस्सान रजा खान ने की। कुल के बाद जोहर की नमाज मुफ्ती अहसन मियां ने अदा करायी।

इस मौके पर खानदान-ए-आला हजरत के तौसीफ रजा खान, खानकाह ए तहसिनिया के सज्जादानशीन हस्सान रजा खान, मौलाना सिराज रजा खान, मौलाना शीरान रजा खान, मौलाना फैज रजा खान, मुफ्ती आकिल रजवी, मुफ्ती कफील हाशमी, मुफ्ती अफरोज आलम, मुफ्ती बशीर कादरी, मौलाना जाहिद रजा, कारी अब्दुर्रहमान कादरी, मौलाना डा. एजाज अंजुम मौजूद रहे।

महिलाओं पर बढ़ते अपराध पर उलेमा ने जताई चिंता
देश में महिलाओं और बेटियों के साथ बढ़ते अपराधों पर उर्स-ए-रजवी के मंच से भी चिंता जाहिर की गई है। कुल की रस्म से पहले उलेमा और मौलाना ने बहन बेटियों को परदे में रखने के लिए कहा है। उन्होंने कहा कि पर्दा इस्लाम का अहम हिस्सा है। मुसलमान अपनी मां-बहनों और बेटियों को पर्दे की ताकीद कराएं। अपनी बेटियों की खुद हिफाजत करें। ऐसा करने से दुष्कर्म की घटना खुद व खुद देश से खत्म हो जाएंगी।

उर्स का लाइव ऑडियो प्रसारण आईटी हेड जुबैर रजा खान ने किया। इसे अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, सऊदी अरब, दुबई, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, मारीशस, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, हालैंड, नार्वे, इराक, मिस्र समेत अन्य देशों में बैठे जायरीनों ने सुना।

कलियर के सज्जादानशीन ने चादर के साथ भेजी मुबारकबाद
दरगाह कलियर शरीफ के सज्जादानशीन शाह मंसूर एजाज साबरी और नायाब सज्जादानशीन अली शाह साबरी ने बुधवार को दरगाह आला हजरत पर अपने प्रतिनिधि इमरान साबरी, यूनुस गद्दी, मेराज साबरी, अराफात कुरैशी से चादर और फूल भेजकर खिराज पेश किया। दरगाह प्रमुख मौलाना सुब्हान रजा खान (सुब्हानी मियां) और सज्जादानशीन को मुबारकबाद पेश की। उर्स प्रभारी सय्यद आसिफ मियां, मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने मजार पर पहुंचकर चादरपोशी की।

सब्र के इम्त्हिान में पास हुए रजा के दीवाने
कोरोना महामारी के चलते सरकार ने किसी भी कार्यक्रम में 100 से ज्यादा लोगों के शामिल होने पर रोक लगा दी है। इस वजह से इस्लामियां मैदान और मथुरापुर स्थित इस्लामिक स्टडी सेंटर पर बुधवार को आला हजरत के कुल का नजारा बदला सा नजर आया। इस बार मुरीदों की भीड़ नहीं थी। घरों में ही कुल की रस्म लोगों ने अदा की। दोपहर 2:38 बजे पर कुल की रस्म शुरू हुई, जिसमें रजा के दीवाने सब्र का इम्त्हिान देते हुए नाम-मात्र की संख्या में ही उर्स की रस्म में शामिल हुए।

पिछले 101 साल से हर बार उर्स ए रजवी की तारीख गवाह है कि जब उर्स का आयोजन होता है तब बरेली की सरजमीं पर रजा के चाहने वाले देश और विदेश से उर्स में शामिल होने के लिए आते थे। कुल वाले दिन सुबह से ही दरगाह और इस्लामियां मैदान के आसपास पैर रखने की जगह नहीं होती थी, मगर इस बार कोरोना वायरस का खौफ कहें या फिर दरगाह प्रमुख की तरफ से उर्स में न आने की गई अपील, 101 साल में यह पहला मौका था कि बाहर और विदेश के जायरीन उर्स में शामिल नहीं हुए। प्रशासन ने इस साल केवल 100 लोगों की मौजूदगी में ही उर्स मनाने की अनुमति दी थी।