कासगंज: पिता की कर्मभूमि पर हैट्रिक लगाने की तैयारी कर रहे हैं कल्याण पुत्र राजवीर सिंह
मतदाताओं ने सांसद तो कई बदले, लेकिन दशक पहले से सियासत विरासत में हुई तब्दील
कासगंज, अमृत विचार। किसी ने ठीक ही कहा है कि सत्ता का सुख सिर्फ चुनिंदा लोगों को ही होता है। हालांकि इसके लिए उन्हें कड़ा परिश्रम भी करना पड़ता है। कोई सियासी जमीन तैयार करता है तो किसी को विरासत में सियासत मिलती है। ऐसा ही एटा लोकसभा क्षेत्र में हुआ है। जब पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की कर्मभूमि पर उनके पुत्र को विरासत में सियासत मिली है। हालांकि, अपने पिता की विरासत की सियासत पर खरे उतरने के लिए राजवीर सिंह ने जनता की उम्मीदों को भी पूरा करने का प्रयास किया, अब हैट्रिक लगाने के लिए प्रयासरत है।
उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में हिंदू हृदय सम्राट के रूप में पहचान रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजस्थान के पूर्व राज्यपाल स्वर्गीय कल्याण सिंह भले ही इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनके नाम से आज भी मतदाता प्रभावित हैं। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं। पिछले एक दशक से वे अपने पिता की कर्मभूमि में सांसद पद की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
बता दें कि एटा लोकसभा सीट पर मतदाताओं ने सांसद तो कई बदले। पुराने सांसदों को भी बार-बार मौका दिया, लेकिन एक दशक पहले ऐसा मौका आया जब यहां की सियासत विरासत में तब्दील हो गई। पूर्व सीएम कल्याण सिंह के पुत्र 2014 के बाद 2019 में भी चुनाव जीत गए और इस बार हैट्रिक लगाने को बेताब हैं।
इस सीट के मतदाताओं ने 17 चुनाव में कुल 8 सांसद चुने हैं। इनमें सबसे पहले सांसद बने रोहनलाल चतुर्वेदी को चार बार, महादीपक सिंह शाक्य को पांच बार मौका दिया। महादीपक सिंह शाक्य एक बार कासगंज लोकसभा सीट पर भी चुनाव जीते। लेकिन 2009 तक हुए चुनाव में एक भी सांसद ऐसा नहीं हुआ, जिसे यह पद विरासत के तौर पर मिला हो। सभी ने अपनी सियासी जमीन बनाने में कड़ी मेहनत की।
1989 में कांग्रेस से सलीम इकबाल शेरवानी चुनाव लड़े थे। जो भाजपा के महादीपक सिंह शाक्य से हार गए। इनके पिता मुस्तफा रशीद शेरवानी भी नेता थे। जो 1977 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। 2009 में यहां निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने चुनाव लड़ा। जिन्हें सपा ने समर्थन दिया था। वह आसानी से चुनाव जीत गए। उनके कार्यकाल के बाद ऐसा वक्त आया कि यहां की विरासत संभालने का मौका उनके पुत्र राजवीर सिंह को मिला।
भाजपा ने उन्हें टिकट दिया और वह सपा प्रत्याशी से बड़े अंतर से जीत भी गए। यह विरासत 2019 में भी कायम रही और फिर उन्होंने सपा के देवेंद्र सिंह को हराया। इस बार भी भाजपा ने उन पर ही भरोसा जताकर टिकट दिया है और वह एटा लोकसभा सीट पर महादीपक सिंह शाक्य के बाद दूसरी हैट्रिक लगाने के लिए ताकत लगा रहे हैं। जबकि सपा ने प्रत्याशी बदल दिया है। भाजपा के विजय रथ को रोकने के लिए सपा ने मैनपुरी के देवेश शाक्य पर दाव अजमाया है। सपा गुणा-गणित में लगी है।
बसपा पर टिकी निगाहें
भाजपा और सपा ने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं। जबकि अभी बसपा ने पत्ते नहीं खोले हैं। बसपा प्रत्याशी पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं। माना जा रहा है कि बसपा ने यदि पूरी रणनीति के साथ कोई नया चेहरा निकाला तो दूसरे दलों का समीकरण बदल सकता है।
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