Behmai Kand: उम्र कैद की सजा पर बेहमई गांव में मनी दीवाली... मुंह मीठा कराकर लोगों ने जताई खुशी

उम्र कैद की सजा पर बेहमई गांव में मनी दीवाली

Behmai Kand: उम्र कैद की सजा पर बेहमई गांव में मनी दीवाली... मुंह मीठा कराकर लोगों ने जताई खुशी

कानपुर देहात, अमृत विचार। बेहमई गांव में बुधवार की सुबह नरसंहार कांड की 43 बरसी मनाई जा रही थी। तभी जानकारी मिली कि नरसंहार कांड के आरोपी डकैत जनपद जालौन के मलहान पुर्वा थाना रामपुरा निवासी श्यामबाबू मल्लाह को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। इसपर गांव में खुशियों का माहौल छा गया।
 
बेहमई नरसंहार कांड में मारे गए लोगों की याद में बने शहीद स्मारक स्थल में ग्रामीणों ने इकठ्ठा होकर स्मारक स्थल पर मोमबत्ती जलाकर एक दूसरे को मिठाई खिलाकर कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई। वहीं नरसंहार कांड के बाद से फरार चल रहे तीन आरोपियों को सजा न सुनाए जाने का लोगों में मलाल दिखा। 
 
14 फरवरी 1981 में राजपुर के बेहमई गांव में डकैत फूलन देवी ने अपने गिरोह के साथियों के साथ धाबा बोलकर 20 लोगों की हत्या कर दी थी। जिसकी गूंज देश विदेशों में सुनाई दी थी। इस हत्याकांड में गांव के राजाराम सिंह ने सिकंदरा थाने में डकैत फूलन देवी, पोसा, भीखा, विश्वनाथ, श्याम बाबू मल्लाह, मान सिंह समेत 35 डकैतों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।
 
मुकदमे की सुनवाई के दौरान मुख्य आरोपी डकैत फूलन देवी समेत 32 डकैतों की मौत हो गई थी। 43 वर्षाे से कोर्ट में मुकदमा विचाराधीन था। बुधवार को हत्याकांड के आरोपी जनपद जालौन के मलहान का पुर्वा थाना रामपुरा निवासी श्याम बाबू मल्लाह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा की जानकारी मिलते ही बेहमई गांव में खुशी का माहौल छा गया।
 
गांव के लोग स्मारक स्थल पर एकत्रित हुए और स्मारक स्थल पर रौशनी की। इसके बाद पीड़ित परिजनों ने एक दूसरे का मुंह मीठा कराया। गांव के बाबूजी सिंह, पूर्व प्रधान जयवीर सिंह, गांधी सिंह, देवेंद्र चंदेल, लल्लन सिंह, रामकेश सिंह, बादाम सिंह, तख्त सिंह मुन्नी देवी, गुटकन देवी, सुनीता देवी समेत सभी ग्रामीणों ने बेहमई गांव के बाहर बने स्मारक स्थल पर पहुचकर एक दूसरे का मुंह मीठा कराकर खुशी जाहिर की।
 
तीन साल में गवाही पूरी और तीन बार अंतिम बहस
 
बेहमई कांड में वर्ष 2012 में आरोप तय होने के बाद मुकदमे की कार्रवाई आगे बढ़ी और सिर्फ तीन सालों में अभियोजन ने 15 गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज कराकर गवाही खत्म करा दी। बयान और बहस के बाद मुकदमा फैसले की दहलीज तक पहुंच गया। लेकिन कुछ कानूनी पेंचीदगियों में फैसला उलझ गया। बचाव पक्ष के अधिवक्ता गिरीश नारायण दुबे ने बताया कि मुकदमे में तीन बार अंतिम बहस हुई।
 
जब फैसले की घड़ी आती तो न्यायाधीश का स्थानांतरण हो जाता और कानून के अनुसार नए न्यायाधीश के आने पर दोबारा बहस सुनानी पड़ती। दिसंबर 2019 में फिर फैसला आने की उम्मीद थी, लेकिन केस डायरी का पेंच फंस जाने के कारण फैसला फिर से अटक गया था। वहीं आरोपी विश्वनाथ के घटना के समय नाबालिग होने के प्रार्थना पत्र पर फाइल किशोर न्याय बोर्ड भेजने के चलते फैसले में देरी हुई।