पीलीभीत: 45 मिनट भटकता रहा परिवार, स्वास्थ्य कर्मियों ने नहीं की मदद...चली गई नवजात की जान  

पीलीभीत: 45 मिनट भटकता रहा परिवार, स्वास्थ्य कर्मियों ने नहीं की मदद...चली गई नवजात की जान  

पीलीभीत, अमृत विचार: गणतंत्र दिवस की रात बिलसंडा क्षेत्र में झोपड़ी में लगी आग की चपेट में आकर जान गंवाने वाली वृद्धा के शव को घर तक ले जाने के लिए शव वाहन न मुहैया कराने का मामला अभी पूरी तरह से शांत नहीं हुआ था कि जनपद में स्वास्थ्य विभाग की एक और लापरवाही ने व्यवस्था पर सवाल उठा दिए हैं।

 नवजात की मौत के बाद एक दूसरे की लापरवाही बताकर टालमटोल की जा रही है, लेकिन परिवार की मानें को करीब 45 मिनट तक प्रसूता तड़पती रही। परिवार की मदद की गुहार लगाता रहा लेकिन कोई नहीं पसीजा। सिर्फ टालमटोल चलती रही और नवजात की जान चली गई। फजीहत के बाद हर बार की तरह जांच कराकर दोषियों पर कार्रवाई की बात कहकर साख बचाई जा रही है।

बताते हैं कि सुमन नौ माह की गर्भतवी थी। वह दो दिन पहले ही परिवार के साथ देवीपुरा गांव आई हुई थी। जब उसे प्रसव पीड़ा हुई तो पहले परिजन एंबुलेंस से लेकर आने की तैयारी कर रहे थे। मगर जल्दी लाने के चक्कर में उसे ई-रिक्शा से लेकर अस्प्ताल के लिए निकल पड़े।

उसके साथ सास मुन्नी देवी, ससुर कृष्णपाल और कृष्णपाल के बहनोई पप्पू आए थे। वह ई-रिक्शा से दोपहर करीब 2.10 बजे मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी के पास आ गए थे। ई-रिक्शा चालक ने उन्हें इमरजेंसी के बाहर उतार दिया। परिवार ने महिला अस्पताल तक छोड़ने के लिए कहा भी। मगर ई-रिक्शा चालक ये कहकर चलता बना कि उधर तक जाने का रास्ता बंद है।

ससुर ने बताया कि महिला अस्पताल के पुराने भवन पर पहुंचे, तो गेट बंद मिला। इसके बाद कई लोगों से जानकारी की, मगर किसी ने सही जानकारी नहीं दी। 2.35 बजे वह इमरजेंसी वार्ड में गए और ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर व अन्य स्टाफ से महिला को प्रसव पीड़ा की बात बताकर भर्ती करने की गुहार लगाई। लेकिन डॉक्टर  ने उनकी बात अनसुनी कर दी और महिला अस्पताल ले जाने को कह दिया। जब महिला

अस्पताल पहुंचवाने की व्यवस्था करने के लिए कहा तो टालमटोल करने लगे। करीब दस मिनट तक बहस चली और फिर परिजन वापस बाहर आ गए। किसी तरह की कोई मदद नहीं की गई। महिला की चीख पुकार सुनकर परिसर में बने पार्क में बैठी कुछ महिलाएं मदद के लिए आ गई। फिर उनकी मदद से बेंच पर ही प्रसव कराया।

नॉर्मल प्रसव के दौरान महिला ने नवजात (पुत्र) को जन्म दिया। करीब दस मिनट के बाद नवजात की मौत हो गई। उनका कहना है कि चीख पुकार मची रही लेकिन उसके बाद भी जिम्मेदार बेसुध बने रहे। महिला स्टाफ तक मौके पर नहीं आई। बाद में सड़क पर हुए प्रसव के दौरान नवजात की मौत का शोर सोशल मीडिया पर मचा तो सीएमएस महिला अस्पताल डॉ. राजेश अन्य स्टाफ संग आ गए। फिर आनन-फानन में प्रसूता को महिला विंग में भर्ती कराया गया। चेकअप के बाद बताया कि उसकी हालत ठीक है। मगर नवजात की मौत पर लापरवाही को लेकर चुप्पी साध गए।

108 एंबुलेंस के कर्मचारी भी बने रहे मूकदर्शक
महिला को प्रसव पीड़ा के दौरान परिवार महिला अस्पताल पहुंचाने के लिए स्वास्थ्य कर्मी और स्टाफ से मदद की गुहार लगाता रहा। मगर किसी ने नहीं सुनी। उनका कहना है कि चंद कदम की दूरी पर ही 108 एंबुलेंस व उसके कर्मचारी भी मूदकर्शक बने हुए थे। किसी ने भी कोई मदद नहीं की।  कुछलोगों ने एंबुलेंस से प्रसूता को महिला अस्पताल तक छोड़ने की बात भी कही लेकिन इनकार कर दिया गया।

शिफ्ट किए गए अस्पताल की परिसर में कोई सूचना चस्पा नहीं
संयुक्त चिकित्सालय को मेडिकल कॉलेज का दर्जा मिलने के बाद वहां की व्यवस्थाओ को बदल दिया गया है। जिस स्थान पर महिला अस्पताल और प्रसव कराए जाते थे। वहां ओपीडी शिफ्ट कर दी गई है। जबकि महिला अस्पताल को एमसीएच विंग में शिफ्ट कर दिया है।

मगर, महिला अस्पताल वहां शिफ्ट किए जाने की कोई सूचना पुराने भवन पर चस्पा नहीं की गई है। शायद यही वजह रही कि जब परिजन महिला अस्पताल के पुराने भवन को बंद देखकर वापस आ गए तो उन्हें नए भवन के बारे में जानकारी नहीं हो सकी।

टूटी सड़क और अस्पताल में बने ब्रेकर भी बने रोड़ा
गर्भवती समुन को जब प्रसव पीड़ा हुई थी तो परिवार वाले उसे ई- रिक्शा से लेकर आ रहे थे। सास मुन्नी देवी के अनुसार नौ माह पूरे होने में सिर्फ एक दिन शेष रह  गया था। इससे पहले किसी भी तरह की कोई जांच और इलाज नहीं कराया गया।

बुधवार को ही प्रसव पीड़ा हुई थी। वह माधोटांडा रोड से होते हुए मेडिकल कॉलेज पहुंची। देवीपुरा से मेडिकल कॉलेज की दूरी करीब पांच किलोमीटर होगी। आलम यह है कि माधोटांडा रोड पर गहरे गड्ढे हो रखे हैं। जो आए दिन हादसे का भी कारण बनते हैं।

साथ ही गर्भवती महिलाओं को ई-रिक्शा में लेते वक्त काफी झटके लगे थे। जिस वजह से प्रसव पीड़ा और बढ़ गई। इतना ही नहीं नियम है कि अस्पताल कैंपस के भीतर ब्रेकर नहीं होना चाहिए। मगर अस्पताल कैंपस में ही दो स्थान पर ब्रेकर बने हुए हैं।  जिनके ऊपर से जब वाहन गुजरते हैं तो गर्भवती को दिक्कत होती है। कहीं न कही टूटी सड़क, गड्ढे और ब्रेकरों ने भी गर्भवती महिलाओं के लिए मुसीबत बनी।

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