अमेठी: जायस में बना चर्म उद्योग कारखाना खंडहर में हुआ तब्दील, 80 के दशक में यूपीए सरकार में हुई थी शुरुआत

लक्ष्मण प्रसाद वर्मा/अमेठी। जिले के जायस क्षेत्र में टांडा से बान्दा राष्ट्रीय राजमार्ग पर इंड्रस्टी एरिया में 80 के दशक में आस पास के युवाओं को रोजगार मोहैया कराने के लिए चर्म उद्योग लगाया गया था। जो महज पांच साल तक ही चल सका। उसके बाद से कारखाने पर ऐसा ग्रहण लगा कि उसे चलाने के लिए सरकारी मशीनरी तंत्रों के साथ राजनैतिक दल भी काम नहीं आए। हालात यह है कि उस कारखाने में लगी मशीन गायब हो गई और करीब एक एकड़ में बने कारखाने के भवन खंडहर में तब्दील हो गया।
केंद्र में यूपीए की सरकार में 80 के दशक में बान्दा से टाण्डा राष्ट्रीय राजमार्ग पर कोतवाली क्षेत्र जायस के इंडस्ट्री क्षेत्र में युवाओं को रोजगार देने के लिए चर्म उद्योग का कारखाना खोला गया था। जिसका निर्माण कार्य सन 1985-86 में पूरा कर लिया गया था। भवन निर्माण का कार्य पूरा होते ही कारखाने को संचालित कर दिया गया था। कारखाना चालू होते ही यह रोजगार का हब बन गया था।
इस कारखाने में निर्मित जूतों को आगरा भेजा जाने लगा था। कारखाने में नगर के सैकड़ों लोग उसमें काम करते थे। सन 1991 के बाद फैक्ट्री बन्द होने से दर्जनों लोगों ने अपनी खुद की दुकान खोलकर रोजगार का माध्यम चुन लिया। पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी के निधन के बाद केंद्र में दो दशक तक यूपीए की सरकार रही, लेकिन उसकी कोई सुध लेने वाला नहीं रहा।
कारखाना चालू करवाने के लिए सरकारी मशीनरी तंत्र के साथ-साथ विकास के मुद्दों में भटकाने वाले राजनैतिक दल भी कामयाब नहीं हुए। नगर निवासी चमड़ा के व्यवसाइयों ने बताया कि जायस में पहले सिलाटर हाउस खुला था। उसमें से निकलने वाला चमड़ा इसी उद्योग कारखाने में भेजा जाता था। चर्म उद्योग बंद होने से अब तो व्यापार के लिए कानपुर से चमड़ा की खरीद फरोख्त की जाती है।

1991 में यूपीए की सरकार बनते पूर्व प्रधान मंत्री स्व. राजीव गांधी ने चर्म उद्योग में ही सेना के जवानों के लिए जूता बनवाने के लिए मंत्रालय में प्रस्ताव लाया था और वह प्रस्ताव पास भी हो गया था, लेकिन उनके असामयिक निधन हो जाने से कारखाने की सुधि लेने वाला कोई नहीं है...,अभिषेक सिंह उर्फ राजमंगल।

1985-86 में चर्म उद्योग का निर्माण हुआ था, महज पांच वर्ष ही कारखाना चल पाया, उसके बाद ऐसा ग्रहण लगा को कारखाना चालू ही नहीं हो सका, अगर आज कारखाना चालू होता तो हजारों युवावों को रोजगार के लिए इधर उधर न भटकना पड़ता...,अरविंद मोदनवाल।

करीब एक एकड़ में बना कारखाना बन्द होने से उस पर भूमाफियाओं की नजर गड़ी हुई है। कारखाना बन्द होने से उसमें लगी मशीनें तो गायब हो ही गई, बल्कि उसकी देखरेख न होने से भवन खंडहर में तब्दील होकर मलबे में बदल गया...,जितेंद्र सिंह।

सरकारी मशीनरी तंत्र तो कारखाना चालू करवाने में फेल साबित हुआ है और विकास की बात करने वाले राजनीतिक दलों के लोगों ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया। ऐसे में युवावों के लिए एक यह भी अवसर फेल साबित हुआ है...धीरज सिंह।
यह भी पढ़ें:-बाराबंकी: प्राण-प्रतिष्ठा के बाद 13 हजार रामभक्तों भाजपा फ्री में कराएगी रामलला के दर्शन