पाकिस्तान चुनाव में आतंकी

पाकिस्तान चुनाव में आतंकी

पाकिस्तान की चुनावी राजनीति में आतंकवाद का प्रवेश हो चुका है। 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के नए राजनीतिक संगठन ने पाकिस्तान में 8 फरवरी को होने वाले आम चुनाव के लिए अधिकांश राष्ट्रीय और प्रांतीय विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। कुख्यात आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का संस्थापक हाफिज सईद का बेटा तल्हा सईद एक बार फिर पाकिस्तान में  चुनाव लड़ रही हैं। 

हाफिज का बेटा और दामाद 2018 में हुए चुनाव में भी किस्मत आजमा चुके हैं। अमेरिका का कहना है कि यह नहीं भूलना चाहिए कि सईद मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड है और उस पर एक करोड़ डॉलर का इनाम है। संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका, दोनों ने सईद को आतंकी घोषित किया है। यह ऐसा ग्रुप है, जिसे अमेरिकी सरकार आतंकी गुट मानती है। पिछले दिनों उसे नजरंबद किया गया था। पाकिस्तान ने उसे नरजबंदी से रिहा कर दिया और अब वह चुनाव लड़ेगा। 

इसका एक साथी साल 2012 में अमेरिका में पकड़ा गया था, जहां से उसकी बातचीत के टेप भी बरामद हुए थे जिनमें उसने आतंकवादी गतिविधियों की बात की थी। यह बात अलग  है कि तल्हा सईद को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने में चीन ने अड़ंगा लगा दिया था, जिसके चलते तल्हा को अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी घोषित नहीं किया जा सका था। 

सईद ने कुछ दिन पहले कहा था कि उसका संगठन जमात-उद-दावा पाकिस्तान में अगले साल होने वाले चुनावों में हिस्सा लेगा। वह मिल्लि मुस्लिम लीग (एमएमएल) के बैनर तले चुनाव लड़ेगा। हालांकि, एमएमएल का इलेक्शन कमीशन के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। हाफिज सईद अलग-अलग तरह से पाकिस्तान की राजनीति में सक्रियता दिखाता रहा है। पाकिस्तान का चुनाव आयोग आतंकवाद के हाथों की कठपुतली बना हुआ है। 

राजनीति व प्रशासनिक हालात दिन-प्रतिदिन बदतर होते जा रहे हैं। जिन आतंकवादियों के लिए अब तक पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जवाब देना पड़ता था, उनको संसद में ले जाना देश के लिए खतरनाक साबित होगा। एक साजिश के तहत चुने हुए सांसद जेलों में जा रहे हैं व आतंकवादी सांसद बन कानून बनाएंगे। परमाणु हथियारों से संपन्न देश की कमान आतंकवादियों के हाथ आने से नई समस्या पैदा होगी। 

 इससे पहले 2018 के चुनाव में पाकिस्तान के मतदाताओं ने चरमपंथी या प्रतिबंधित समूहों से जुड़े उम्मीदवारों को खारिज कर दिया था और मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने के उनके कदम को विफल कर दिया था। हालांकि यह पाकिस्तान का अंदरूनी मामला है लेकिन वहां की राजनीति में इस तरह का पतन भारत के लिए भी चिंता की बात है। 

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