Auraiya News: गेंदालाल ने जलाई थी चंबल के डकैतों में आजादी की अलख, उन्हें पकड़ न सकी थी

गेंदालाल ने जलाई थी चंबल के डकैतों में आजादी की अलख।

Auraiya News: गेंदालाल ने जलाई थी चंबल के डकैतों में आजादी की अलख, उन्हें पकड़ न सकी थी

गेंदालाल ने जलाई थी चंबल के डकैतों में आजादी की अलख। 21 दिसंबर 1920 को अस्पताल में प्राण त्याग दिए थे।

औरैया, [गौरव चतुर्वेदी]। गेंदालाल दीक्षित यह एक ऐसा नाम था जिसका नाम लेने मात्र से ही अंग्रेजी हुकूमत कांपने लगती थी। गेंदालाल दीक्षित  को क्रांतिकारियों का द्रोणाचार्य कहा जाता है। यह अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने को ऐसा चक्रव्यूह रचते थे जिसे कोई भेद नहीं पाता था।

इन्होंने अपने साहसिक कारनामों से उस वक्त की अंग्रेजी हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। इस क्रांतिवीर ने न सिर्फ सैकड़ों छात्रों और नवयुवकों को स्वतंत्रता की लड़ाई से जोड़ा, बल्कि बीहड़ों के दस्यु (उस समय बागी पुकारा जाता था) सरदारों में राष्ट्रीय भावना जगाकर उन्हें आजादी की लड़ाई के लिये तैयार कर लिया था। 

गेंदालाल दीक्षित औरैया के एबी इंटर कॉलेज ( तिलक इंटर कॉलेज) में प्रधानाचार्य के पद पर नियुक्त हुए थे। वह क्रांतिकारी दल ‘मातृवेदी’के कमांडर-इन-चीफ थे और एक वक्त उन्होंने देश के अलग-अलग हिस्सों में काम कर रहे क्रांतिकारियों रासबिहारी बोस, विष्णु गणेश पिंगले, करतार सिंह सराभा, शचीन्द्रनाथ सान्याल, प्रताप सिंह बारहठ, बाघा जतिन आदि के साथ मिलकर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ उत्तर भारत में सशस्त्र क्रांति की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन अपने ही एक साथी की गद्दारी की वजह से उनकी सारी योजना पर पानी फिर गया था।

इनका जन्म 30 नवंबर, 1888 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले की तहसील बाह के ग्राम मई में हुआ था। 3 वर्ष की आयु में इनकी माता का निधन हो गया। बिना मां के बच्चे का जो हाल होता है, वही इनका भी हुआ। हमउम्र बच्चों के साथ निरंकुश खेलते-कूदते कब बचपन बीत गया पता ही न चला परंतु एक बात अवश्य हुई कि बालक के अंदर प्राकृतिक रूप से अप्रतिम वीरता का भाव प्रगाढ़ होता चला गया।

1905 में बंगाल के विभाजन के बाद जो देशव्यापी स्वदेशी आंदोलन चला, उससे आप भी अत्यधिक प्रभावित हुए।आपने डाकुओं में देश भक्ति की भावना जागृत कर उनका हृदय परिवर्तन कर उन्हें आजादी का सिपाही बना दिया था और शिवाजी समिति के नाम से एक संगठन बना कर शिवा जी की भांति छापामार युद्ध करके अंग्रेजी राज के विरुद्ध उत्तर प्रदेश में एक अभियान प्रारंभ किया।

1916 में चंबल के बीहड़ में ‘मातृवेदी’ दल की स्थापना की जिसमें बाद में प्रसिद्ध क्रांतिकारी राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, देवनारायण भारतीय, श्रीकृष्ण दत्त पालीवाल, ब्रह्मचारी लक्ष्मणानंद, शिवचरण लाल शर्मा और सरदार पंचम सिंह भी शामिल हुए।

ऐसे हुआ इस समूह का पतन

1918 के अंत में मातृवेदी दल ने मैनपुरी में एक व्यवसायी को अपनी गतिविधियों के लिए लूटने की योजना बनाई लेकिन बोली विफल रही और समूह का विघटन हुआ। शाह आलम ने अपनी किताब में 'क्रांति के मंदिर में (1929)' और 'मैनपुरी षड्यंत्र केस फाइल (1919)' के संदर्भों का हवाले देते हुए मातृवेदी समूह के पतन की कहानी सुनाई है। उन्होंने कहा कि दिसंबर 1918 में इस दल से जुड़े एक सदस्य हिंदू सिंह ने पुरस्कार राशि के लिए अंग्रेजों से मुखबरी कर दी थी, जिसके बाद अंग्रेजों ने धीरे-धीरे दल को समाप्त कर दिया था।

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