कासगंज: एनपीएस में करोड़ों का घोटाला, लेखाकार के विरुद्ध एफआईआर दर्ज

कासगंज, अमृत विचार। माध्यमिक शिक्षा विभाग में करोड़ों रुपये का घोटाला खुलकर सामने आया है। नई पेंशन स्कीम के तहत मिलने वाले फंड को विभागीय लेखाकार ने नियम विरुद्ध प्राइवेट कंपनी में निवेश कर दिया। लगभग चार करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। जब मामला खुलकर सामने आया है तो कल खलबली मची है। माध्यमिक शिक्षा निदेशक के निर्देश पर डीआईओएस ने लेखाकार के विरुद्ध एफआईआर कराई है।
जनपद कासगंज में सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों में एक अप्रैल 2005 के बाद नियुक्त एवं कार्यरत शिक्षकों के एनपीएस फण्ड को विभागीय नियमों के विपरीत प्राइवेट कम्पनियों में निवेश के मामले में जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालय के बाबू नेम सिंह के खिलाफ सोरों कोतवाली में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420 एवं सूचना प्रौद्योगिकी( संशोधन) अधिनियम की धारा 66सी के तहत जिला विद्यालय निरीक्षक कासगंज द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराई गई है ।
इस सम्बध में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ एकजुट के प्रदेशीय प्रवक्ता श्रवण कुशवाहा ने बताया कि संगठन द्वारा यह मामला जिला विद्यालय निरीक्षक के समक्ष 30 अक्टूबर को उजागर करते हुए कार्रवाई की मांग की गयी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।
नियम अनुसार शासन द्वारा निर्धारित बीमा कंपनी में ही निवेश किया जाता है, लेकिन बाबू ने नियम विरुद्ध निवेश एचडीएफसी बैंक में कर दिया।मामले ने प्रदेश स्तर पर तूल पकड़ा तो शिक्षा निदेशक माध्यामिक ने 18 नवम्बर को पत्र जारी करते हुए दोषी पटल सहायक एवं सम्बंधित अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने एवं विभागीय अनुशासनात्मक कार्रवाई का निर्देश दिया था। शिक्षा निदेशक के निर्देश पर डीआईओएस प्रदीप कुमार मौर्य ने घोटाले के दोषी लेखाकार के विरुद्ध एफआईआर कराई है।
आंकड़े की नजर से
38 शिक्षकों के निवेश में हुआ है घोटाला
98 शिक्षकों के निवेश में घोटाले का आरोप लगा रहा है शिक्षक संघ
4 करोड रुपए लगभग प्राइवेट कंपनी में किया गया निवेश
10 प्रतिशत अंशदान कर्मचारी के वेतन से कटता है फंड
10 प्रतिशत अंशदान देती है सरकार
लगाया गया यह भी आरोप
शिक्षक संघ के प्रदेश प्रवक्ता श्रवण कुशवाह ने आरोप लगाया है कि इस मामले में तत्कालीन अधिकारी को बचाते हुए केवल लेखाकार को दोषी बनाया गया है जो ठीक नहीं है, इसमें तत्कालीन जिला विद्यालय निरीक्षक सूर्य प्रकाश सिंह के खिलाफ भी मामला दर्ज होना चाहिए, क्योंकि बिना अधिकारी की सहमति के अकेले लेखाकार इतने बड़े पैमाने पर करोड़ों रुपये का निवेश नहीं कर सकता ।
इस सम्बन्ध में शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर तत्कालीन अधिकारी के खिलाफ भी मामला दर्ज कराने की मांग की जायेगी । इस मामले में अधिकारी भी उतने ही दोषी हैं किन्तु आधिकारियों द्वारा कार्रवाई पक्षपात पूर्ण की गई है ।
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