‘रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का 22 जनवरी से अच्छा मुहूर्त हो ही नहीं सकता’ - डॉ. रमेश चिंतक

इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंसेज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष से खास बातचीत

‘रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का 22 जनवरी से अच्छा मुहूर्त हो ही नहीं सकता’ - डॉ. रमेश चिंतक

अमृत विचार, कानपुर। इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंसेज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ.रमेश चिंतक ने बताया कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा सर्वथा उचित दिवस एवं श्रेष्ठ मुहूर्त पर होगी। उन्होंने ज्योतिषीय महत्व पर चर्चा करते हुए बताया कि इस दिन सोमवार को मृगशिरा नक्षत्र है और दिन के मध्यान्ह में अभिजित मुहूर्त मूर्ति की स्थापना के लिए शुभ समय है। साथ ही ऐंद्र योग चल रहा होगा। योगों में ऐंद्र योग की विशिष्ट महत्ता मानी गयी है। 

राम जन्मभूमि मंदिर तीर्थ ट्रस्ट का विहिप के माध्यम से पीले चावल व मंदिर का चित्र देकर अयोध्या आने के जनआमंत्रण का सघन अभियान के दौरान अमृत विचार ने 22 जनवरी 2024 के दिन ही प्राण प्रतिष्ठा का दिन के ज्योतिषीय महत्व पर डॉ.रमेश चिंतक से विशेष बातचीत की। प्रमुख अंश इस प्रकार हैं।

दिन के मध्यान्ह काल में जो लग्न होगी उसका ही प्रभाव मुहूर्त में महत्व का है। इस समय मेष लग्न होगी जिसका जिसका स्वामी मंगल धनु राशि में नवम भाव में होगा। और नवम भाव का स्वामी गुरु लग्न में होगा। यहां गुरु और मंगल का राशि परिवर्तन है जोकि ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत विशेष योग बनाता है। नवम धर्म का भाव होता है और उससे मुहूर्त लग्न का परिवर्तन धर्म को बढ़ाने और धार्मिक भावनाओं की वृद्धि करने वाला है। साथ ही सूर्य दशम भाव में है जो कुंडली को और सकारात्मक पुष्टि प्रदान कर रहे हैं। दशम भाव ठीक सिर के ऊपर का भाव है और यही अभिजीत् मुहूर्त है उस समय सूर्यदेव दशम भाव में बैठकर उस स्थान विशेष के ठीक ऊपर होते हैं। भगवान राम सूर्यवंशी है उनका जन्म भी इसी मुहूर्त में हुआ था l इसलिए इस मुहूर्त में सूर्यदेव की विशेष कृपा रहेगी।

इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि मुहूर्त में तिथि और योग का विशेष महत्व है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है और अमृत सिद्धि योग भी है। सबसे महत्व की बात यह है कि इस दिन कूर्म द्वादशी है। कूर्मचक्र  वास्तु और मेदनीय ज्योतिष में विशेष महत्व है इससे स्थान विशेष केबोध के लिए  प्रयोग किया जाता है सनातन संस्कृति में भगवान कूर्म पूज्यनीय है। 

वाराहमिहिर ने स्थान विशेष के भविष्यफल जानने के लिए भारतवर्ष के भूभाग पर एक कूर्म (कच्छप) आकार को आरोपित कर फिर कृतिका नक्षत्र से प्रारंभ कर दाहिने क्रम में सभी नक्षत्रों को स्थान देते हुए एक कूर्म चक्र बनाया था जो आज भी मेदनीय ज्योतिष में मौसम जलवृष्टि, भूकंप इत्यादि में प्रयोग किया जाता है। मृगशिरा नक्षत्र का के स्थानों में वारहमीहीर ने अयोध्या क्षेत्र भी लिया है l हमारे यहाँ गृह प्रारंभ करते समय कूर्म (कच्छप) को नींव में रखने का विधान है।  शास्त्रों के अनुसार कूर्म अवतार सारी पृथ्वी के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत को कूर्म(कच्छप) के रूप में संभाला था। कूर्म जयंती और कूर्म द्वादशी के दिन गृह संबंधी कार्य शुभ माने जाते हैं। भूमि भवन के कार्य और स्थापना के लिए तो यह अत्यंत शुभ मुहूर्त है।

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