Asian Games 2023 : कौन हैं अर्जुन-सुनील? जिन्होंने केनोए में पदक के 29 साल के सूखे को किया खत्म
हांगझोऊ। मछुआरे के बेटे सलाम सुनील सिंह और कारखाने में काम करने वाले के बेटे अर्जुन सिंह एक दूसरे से लगभग 2000 किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं लेकिन जलक्रीडा (वाटर स्पोर्ट्स) के जुनून ने विषम परिस्थितियों में दोनों को आगे बढ़ने और एक साथ मिलकर देश के लिए पदक जीतने के लिए प्रेरित किया। चौबीस साल के सुनील मणिपुर के मोइरंग के हैं जबकि 16 साल के अर्जुन रुड़की में रहते हैं। अर्जुन और सुनील ने एशियाई खेलों में मंगलवार को पुरुषों की केनोए 1000 मीटर युगल स्पर्धा में ऐतिहासिक कांस्य पदक जीता। भारतीय जोड़ी ने 3 : 53 . 329 सेकंड का समय निकालकर तीसरा स्थान हासिल किया।
एशियाई खेलों के इतिहास में केनोए में भारत का यह दूसरा ही पदक है। भारत के सिजि सदानंदन और जॉनी रोमेल ने इससे पहले 1994 में हिरोशिमा खेलों में इसी स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था। सुनील और अर्जुन के लिए यह पदक उनके जीवन में कठिन परिस्थितियों के बावजूद की गई कड़ी मेहनत का परिणाम है।
🥉🚣♂️ Medal Alert 🚣♂️🥉
— SAI Media (@Media_SAI) October 3, 2023
Huge cheers for Arjun Singh and Sunil Singh Salam! 🙌🇮🇳.
The duo has clinched a well-deserved Bronze in the Men's Canoe Double 1000m event with a timing of 3.53.329 at the #AsianGames2022! 🚣♂️
🇮🇳 Let's cheer out loud for our champs🥳#Cheer4India… pic.twitter.com/sYMxuCqHLL
सुनील ने हांगझोउ में कांस्य पदक जीतने के बाद कहा, मेरे पिता (इबोयिमा सिंह) एक मछुआरे हैं। वह हर सुबह और शाम अपनी नाव चलाते हैं और लोकतक झील में मछलियां पकड़ते हैं। यही हमारे परिवार की आय का स्रोत है। मेरी मां (बिनीता देवी) एक गृहिणी हैं। उन्होंने कहा, जब मैंने इस खेल को शुरू किया था तो यह काफी मुश्किल था। नाव और दूसरे उपकरण काफी महंगे है। पैडल का खर्च कम से कम 40,000 रुपये और नाव की कीमत चार से पांच लाख रुपये है।
सेना में हवलदार पद पर कार्यरत इस खिलाड़ी ने कहा, शुरुआत में परिवार और रिश्तेदारों ने मेरी आर्थिक मदद की लेकिन 2017 में भारतीय सेना से जुड़ने के बाद मैं अपना खर्च खुद उठा रहा हूं। सुनील का जन्म लोकतक झील के पास हुआ है ऐसे में जलक्रीडा के प्रति उनका जुनून स्वाभाविक है। लोकतक पूर्वोत्तर भारत की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है। सुनील ने केनोए का अपना पहला सबक इसी झील में सीखा था। वह इसके बाद अपनी चाची की सलाह पर 2013 में हैदराबाद चले गए।
सुनील की चाची डिंगी कोच है। सुनील को 2015 में राष्ट्रीय शिविर के लिए चुना गया और वह अगले वर्ष राष्ट्रीय चैंपियन बने। उन्होंने इसके बाद रुड़की में सेना के केन्द्र में अभ्यास किया और फिर भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) के भोपाल केंद्र में कोच पीयूष बोराई की देखरेख में अपने कौशल को निखारा। अर्जुन भी पहले रुड़की में ही थे। वह बोराई की सलाह पर भोपाल में प्रशिक्षण लेने लगे। अर्जुन और सुनील की जोड़ी हाल ही में बनी है। दोनों ने अगस्त में जर्मनी में केनोए स्प्रिंट विश्व चैम्पियनशिप में पहली बार जोड़ी के तौर पर भाग लिया था।
भारतीय जोड़ी फाइनल में पहुंचने के बाद नौवें स्थान पर रही थी। अर्जुन का परिवार उत्तर प्रदेश के बागपत से है लेकिन बाद में रुड़की में बस गया। साइ के भोपाल केंद्र में प्रशिक्षण लेने वाले अर्जुन ने कहा, मेरे पिता का निधन हो गया है और मेरी मां दवा कारखाने में काम करती है। वह महीने में आठ से 10 हजार रुपये ही कमा पाती हैं। उन्होंने कहा, हम किराये के मकान में रहते हैं। इतनी कम कमाई के साथ गुजारा करना काफी मुश्किल है। मेरी मां ने काफी परेशानियों का सामना किया है।
कक्षा 12 के छात्र अर्जुन ने कहा, मैं भोपाल के साइ केंद्र में हूं और अब चीजें बेहतर हैं। वहां अच्छे से मेरा ख्याल रखा जाता है। अर्जुन ने जीवन में आये बदलाव का श्रेय अपने चाचा अजीत सिंह को दिया। अजीत अंतरराष्ट्रीय स्तर के केनोए खिलाड़ी रहे है। अजीत ने ही 2017 में 12 साल के अर्जुन को रुड़की जाकर सेना की सुविधा का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया था।
अर्जुन ने कहा, मैं बचपन से ही जलक्रीड़ा के प्रति जुनूनी हूं। मेरे चाचा ने इस खेल में आगे बढ़ने के लिए मेरा प्रोत्साहन किया। मैं जल क्रीड़ा के प्रति इतना जुनूनी हूं कि सपने में भी इसे ही देखता हूं। बीती रात को भी मैंने पदक जीतने का सपना देखा था। अर्जुन का अगला लक्ष्य पेरिस ओलंपिक है। उन्होंने कहा, पेरिस ओलंपिक मेरा लक्ष्य है और हम वहां पहुंचने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे।
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