बरेली: कुल की रस्म के साथ उर्स-ए-रजवी का समापन, अकीदतमंदों का उमड़ा सैलाब

बरेली, अमृत विचार। आज 105वें उर्स-ए-रज़वी के आखिरी दिन आज आला हज़रत फ़ाज़िले बरेलवी के कुल शरीफ की रस्म लाखों के देश-विदेश के अकीदतमंदों, उलेमा, सज्जादगान की मौजूदगी में अदा की गई। इस मौके विश्व के नामचीन उलेमा ने दुनियाभर के मुसलमानों के नाम खास पैगाम जारी किया। कुल शरीफ के बाद तीन रोज़ा उर्स का समापन हो गया। सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां ने मुल्क-ए-हिंदुस्तान समेत दुनियाभर में अमन-ओ-सुकून व खुशहाली की ख़ुसूसी दुआ की।
आज की महफ़िल का आगाज़ दरगाह प्रमुख हज़रत मौलाना सुब्हान रज़ा खान(सुब्हानी मियां) की सरपरस्ती, सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रज़ा क़ादरी(अहसन मियां) की सदारत व सय्यद आसिफ मियां और उर्स प्रभारी राशिद अली खान की देखरेख में हुआ। वहीं निजामत कारी यूसुफ रज़ा ने संभाली। कारी स्वालेह रज़ा मंजरी ने कुरान की तिलावत की। इसके बाद उलेमा की तक़रीर का सिलसिला शुरू हुआ।
मेहमाने खुसूसी आला हज़रत के पीरखाने के सज्जादानशीन हज़रत सय्यद नजीब मियां साहब ने कहा की बरेली हमारा कल भी मरकज था और आज भी है। अल्लाह इसकी मरकजियत को सलामत रखे। 14वीं सदी के मुजद्द्दीद आला हज़रत और 15वीं सदी के मुफ्ती आजम हिंद हैं। नबीरे आला हज़रत अल्लामा तौसीफ रज़ा खान(तौसीफ मियां) बरेली और कछौछा को जो रूहानी फैज़ हासिल हुआ वो मारहरा शरीफ की सरजमीं है। मेरा पैगाम है बुजुर्गों से अकीदत व मोहब्बत करें। मसलक ए आला हजरत पर सख्ती से कायम रहें।
अपनी तकरीर में मुफ्ती सलीम नूरी ने कहा आज हिंदुस्तान भर में मीडिया व सोशल मीडिया पर साजिश के तहत पैगाम दिया जा रहा है कि हिंदुस्तानी मुसलमानों के पूर्वज हिन्दू थे। मैं इस जिम्मेदार स्टेट से कहना चाहता हूं कि हिंदुस्तानी मुसलमानों के पूर्वज मुसलमान थे। हमारा डीएनए हज़रत आदम अलेहअस्सलाम का है। हम कुरान और हदीस के मानने वाले हैं।
हिंदुस्तानी मुसलमान गौर से सुन लें हमारे पूर्वज हिन्दू नहीं मुसलमान थे। मुसलमान इस मुल्क में किरायेदार नहीं बल्कि मालिक की हैसियत से है। हम इस मुल्क में खैरात में नहीं रह रहे हैं। हमारा मुल्क एक जम्हूरी(लोकतांत्रिक)मुल्क है,ये मुल्क जितना गैर मुस्लिमों का है उतना ही मुसलमानों का भी है। जो जितना सच्चा मुसलमान होगा उतना वो अपने मुल्क का वफादार होगा। मुसलमानों ने भी मुल्क की आज़ादी में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अब्दुल हमीद, टीपू सुल्तान,अल्लामा खैराबादी समेत हजारों मुसलमानों ने अपने लहू से कुर्बानी दी। सियासी पार्टियां अपने सियासी फायदे के लिए देश में हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई पैदा करने का काम कर रही हैं। मुसलमान नफरत का जवाब फूलों से दे। मुल्क भर में हिंदू मुसलमान कमेटियां बनाकर इस नफरत की खाई को पाटने की कोशिश करे।
नबीरे आला हज़रत सय्यद सैफ मियां ने भी शायराना अंदाज में खिराज पेश किया। नबीरे आला हज़रत मुफ्ती अरसालान रज़ा खान ने कहा कि दुनिया भर से आने वाले अकीदतमंद यहां से जो पैगाम लेकर जाएं उस पर अमल भी करें। हर सदी में एक मुजद्दिद पैदा होता है। 14वीं सदी के मुजद्दीद इमाम अहमद रज़ा खान हैं।
मौलाना जाहिद रज़ा ने सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां का पैगाम देते हुए कहा की मुसलमान अपने बच्चों की शादी में डीजे और बाजा न बजवाएं। निकाह सादगी के साथ करें। फिजूलखर्ची से बचें। जिन शादियों में गैर शरई काम होते हो इमाम उनके निकाह हरगिज़ ने पढ़ाएं। बेटियों को दहेज़ नही विरासत(संपत्ति) में हिस्सा दें। आधा पेट खाएं अपने बच्चों को तालीम(शिक्षा) जरूर दें।
कारी नेमतुल्लाह ने कहा की आला हजरत की नातिया कुरान और हदीस का मिश्रण है। आला हजरत फरमाते हैं कि मैने नातगोई कुरान से सीखी। नातिया शायरी करना तलवार पर चलने के बराबर है। मुफ्ती इमरान हनफी ने अपनी तकरीर में कहा कि आला हज़रत ने सारी जज दुनिया ने मेरे देश का नाम रोशन कर दिया है। आज मुस्लिम ही नहीं बल्कि गैर मुस्लिम भी आला हजरत पर दुनिया भर की यूनिवर्सिटी में पीएचडी हो रही है। मौलाना मुख्तार बहेड़वी व कारी सखावत हुसैन ने जुलूस मोहम्मदी में बजते डीजे पर सख्त मज़म्मत करते हुए आने वाले जुलूस-ए-मोहम्मदी पर डीजे पर सख्ती से रोक लगाने को कहा। उन्होंने कहा कि ऐसी अंजुमनों का बहिष्कार करें जो डीजे बजाएं।
नात-ओ-मनकबत आसिम नूरी, महशर बरेलवी आदि ने पढ़ी। फातिहा कारी रिज़वान रज़ा शजरा दरगाह प्रमुख के पोते सुल्तान रज़ा खान शजरा व सय्यद मुस्तफा रज़ा ने दुरूद ताज पढ़ा। आखिर में मुफ्ती अहसन मियां ने दुआ की। हजारों लोग दरगाह प्रमुख हज़रत सुब्हानी मियां से बैत हुए।
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