अयोध्या: 20 से गूंजेगीं मातमी सदाएं, मोहर्रम की तैयारी तेज, अजाखानों में होगीं मजलिसें
अयोध्या, अमृत विचार। कर्बला के 72 शहीदों के गम में मनाये जाने वाला मोहर्रम आगामी बीस जुलाई से शुरू हो रहा है। मोहर्रम को लेकर तैयारियां शुरू हो गईं हैं। शहर के अलावा रुदौली, भदरसा, सोहावल आदि इलाकों में व्यापक स्तर पर मोहर्रम मनाया जाता है। वैसे तो मोहर्रम दो महीना आठ दिन चलता है लेकिन मुख्य रूप से पहली से दसवीं मोहर्रम तक मजलिसें, जुलूस निकाले जाते हैं। जिला प्रशासन ने भी मोहर्रम को लेकर तैयारियां शुरू कर दी हैं। ताजियादारान कमेटी से समन्वय बनाकर सहयोग किया जा रहा है।
बता दें कि मोहर्रम मुस्लिम समुदाय के लोग गम के महीने के रूप में मनाते हैं। यह इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है। मुसलमान पैगंबर हजरत मुहम्मद के नाती हजरत हुसैन इब्न अली की शहादत के तौर पर मनाते हैं। महीने के शुरूआती 10 दिनों में कर्बला की लड़ाई हुई थी, जिसमें इमाम हुसैन के पूरे परिवार को शहीद कर दिया गया था, उनको तकलीफें दी गई थी। यजीद जो अपने आप को खलीफा कहलाता था, उसकी बैयत करने से हजरत इमाम हुसैन ने इंकार कर दिया था।
जिससे नाराज होकर उस दौर के जुल्मी यजीद ने इमाम हुसैन अलैहिस्साम और उनके पूरे परिवार का पानी बंद कर दिया था और उनके खिलाफ लड़ाई शुरू कर दी थी। 680 ई. में आशूरा के दिन कर्बला की लड़ाई हुई थी, इस जंग में हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पूरे परिवार का बेरहमी के साथ कत्ल कर दिया था।
इसी के शोक में मोहर्रम मनाया जाता है। शिया समुदाय के लोग गम का इजहार कर जहरा के लाल को पुरसा देतें हैं। नगर के शिया मुस्लिम मोहल्लों इमामबाड़ा जवाहर अली खां, राठहवेली, ख्वासपुरा, मोती मस्जिद मुगलपुरा, नवगढ़ा, कश्मीरी मोहल्ला, खुर्दमहल दिल्ली दरवाजा, वजीरगंज सहित अन्य मोहल्लों में घरों की रंगाई-पुताई और अजाखानों को सजाने की तैयारियां तेजी से हो रही हैं।
शहर के अलावा रुदौली में भी बनते हैं ताजिए
गंगा जमुनी शहर रुदौली में मोहर्रम का ताजिया बनाने वाले परिवार के घरों में महिलाएं, बच्चे और बड़े सभी ताजिया बनाने में लगे हैं। रमजान से ताजिया बनाने के काम में कारीगर तेजी लाते है और मोहर्रम की दस तारीख तक ताजिया बनाने का काम कारीगर घर में करते है। आसपास के जिलों में रुदौली की पहचान ताजिया की मंडी के रूप में भी है।
आसपास के जिलों के लोग साल व छः माह पहले ताजिया के कारीगरों को साइज के अनुसार बनाए जाने का तय कर लेते है। एडवांस धनराशि मिल जाने पर ताजिया बनाना शुरू करते है। ताजिया के पुश्तैनी कारीगर मो अकील कहते है घर की सालाना आमदनी मुख्य जरिया ताजिया निर्माण है। ताजिया बनाने में भाई शकील ओर बिलाल के आलावा घर की महिलाएं भी काम करती है। नगर में भी वजीरगंज, इमामबाड़ा, राठहवेली में भी ताजिए बनाए जाते हैं।
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