प्रयागराज : जौहर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार कुरैशी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज

अमृत विचार, प्रयागराज । मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार रोशन अली कुरैशी द्वारा दाखिल अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिला न्यायालय को निर्देश दिया है कि वह याची की जमानत के आवेदन पर शीघ्रता से निर्णय करें। वर्ष 2019 में याची के खिलाफ आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत थाना-कोतवाली, जिला-रामपुर में कृष्ण गोपाल मिश्रा द्वारा प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी, जिसमें यह बताया गया की ग्राम सींगनखेड़ा, जिला रामपुर में स्थित शत्रु संपत्ति को गलत तरीके से विश्वविद्यालय द्वारा हड़पा गया है।
विवादित जमीन पर कब्जे को लेकर नगर पालिका परिषद, रामपुर के अधिशासी अधिकारी के हस्ताक्षर द्वारा मसूद खान को एक नोटिस जारी की गई, जिसमें निर्देशित किया गया कि उक्त संपत्ति को तत्काल कब्जा मुक्त कर दें, अन्यथा नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी। मसूद खान ने नोटिस को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और कोर्ट से स्टे आदेश प्राप्त कर लिया। नगर पालिका परिषद, रामपुर को उक्त नोटिस निर्गत करने का कोई अधिकार नहीं था, क्योंकि विवादित संपत्ति नगर पालिका की संपत्ति नहीं है और ना ही नगरपालिका में अवस्थित थी। ऐसी स्थिति में यह अनुमान लगाया जा सकता है कि जौहर विश्वविद्यालय को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत नगर पालिका परिषद द्वारा नोटिस जारी करवाया गया, जिससे नोटिस को आधार बनाकर कोर्ट से स्टे आदेश प्राप्त किया जा सके। मालूम हो कि सर्वप्रथम विश्वविद्यालय द्वारा विवादित भूमि को शत्रु संपत्ति के रूप में स्वीकार करते हुए लीज पर प्राप्त करने की कार्यवाही कराई गई थी और जब जिलाधिकारी की आख्या पर तत्काल लीज निरस्त कर दी गई तो मसूद खान ने सुनियोजित षड्यंत्र रचकर कोर्ट से स्टे आदेश प्राप्त कर लिया।
उपर्युक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि तत्कालीन अधिशासी अधिकारी सैयद मोहम्मद तारीक और मसूद खान ने तत्कालीन रजिस्ट्रार रोशन अली कुरैशी और चांसलर आजम खान के साथ मिलकर उन्हें लाभ पहुंचाने की नीयत से सरकारी कागजों में हेराफेरी की थी। उपरोक्त मामले को लेकर रजिस्ट्रार, अली जौहर विश्वविद्यालय ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उपरोक्त आवेदन में इस न्यायालय द्वारा दिनांक 06 जनवरी 2020 को एक अंतरिम आदेश पारित किया गया था, लेकिन अभियोजन पक्ष के अभाव में अग्रिम जमानत आवेदन खारिज कर दिया गया।
इस बीच याची के खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। याची के अधिवक्ता का तर्क है कि याची के विरुद्ध आईपीसी की धारा 420 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है, क्योंकि पुलिस रिपोर्ट के साथ लगे कागजात से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि शुरुआत से ही आवेदक की ओर से धोखा देने का इरादा था। उन्होंने दूसरा निवेदन किया कि आईपीसी की धारा 120 बी के तहत एक अपराध परीक्षण साक्ष्य के अधीन है। उपरोक्त तथ्य के अलावा यह भी ध्यान देने योग्य है कि याची लगभग 83 वर्ष की आयु का एक वृद्ध व्यक्ति है। अतः जमानत का हकदार है। इसके विपरीत अपर महाधिवक्ता ने अग्रिम जमानत का विरोध करते हुए कहा कि याची के खिलाफ शुरू में 6 अक्टूबर 2020 को जमानती वारंट जारी किया गया था, जो 08 मई 2023 तक लागू रहा, लेकिन याची जिला अदालत द्वारा जारी वारंट का सम्मान करने में विफल रहा,इसीलिए याची के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया।
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