Bareilly: फेल होने से हताश नहीं होना चाहिए, परीक्षा को खेल की तरह लें- डॅाक्टर सुविधा शर्मा

विकास यादव, बरेली, अमृत विचार। परीक्षा में असफल होने का अर्थ निराश हो जाना नहीं है। सफलता में भले ही भीड़ साथ होती है। लेकिन असफलता आपको अकेला कर देती है। लेकिन निराश होने की बजाए इस एकांत का लाभ खुद को पहले से बेहतर तैयार करने के लिए किया जा सकता है। कई महान लोग ऐसे ही नहीं हमारे मार्गदर्शक बने। उन्होंने भी जीवन में कई बार असफलता का स्वाद चखा लेकिन हार नहीं मानी। जिस तरह से एक तिनके को उठा कर दीवार पर चढ़ने के दौरान चीटी कई बार दीवार से गिरती है। लेकिन वह निराश, हताश नहीं होती और अंत में उस तिनके को अपने साथ ले जाती है। ऐसे एक नहीं कई उदाहरण हैं।
अंग्रेजी के महान लेखक आर के नारायण हाईस्कूल की परीक्षा में अंग्रेजी विषय में ही फेल हो गए थे। लेकिन वह हताश नहीं हुए और अंग्रेजी के महान लेखक बन गए। अगर वह हताश हो जाते तो शायद ऐसा नहीं होता। वहीं जाने माने वैज्ञानिक थॉमस ऐल्वा एडीसन जिन्होंने हमें नई रोशनी बल्व के रूप में दी। अपने इस अविष्कार में कई बार फेल हुए। लेकिन उन्होंने एक दिन इस अविष्कार को कर दिखाया। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं।
जो बच्चे परीक्षा में फेल हो जाते हैं उन्हें समझना चाहिए कि यह जीवन में निरंतर चलने वाली प्रकिया है। एक बार फेल होने से हताश नहीं होना चाहिए। परीक्षा को खेल की तरह लेना चाहिए, जैसे खेल में हार जीत लगी रहती है। अगर वह फेल हो गया है तो उसे पूर्ण लगन और मेहनत से लक्ष्य की ओर उन्मुक्त होकर तैयारी करना चाहिए। कभी-कभी कड़ी मेहनत के बाद भी परीक्षा का परिणाम विद्यार्थी के अनुकूल नहीं रहता। ऐसे में उसे कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहिए जिससे उसके जीवन को खतरा हो। वह अपने माता-पिता के साथ बैठकर इस पर चर्चा करें।
अगर विद्यार्थी असफल हुआ है तो उसका कारण जानें
फेल होने वाले छात्र को निराश नहीं होना चाहिए अगर वह फेल हो गया है तो इसका कारण जानने का प्रयास करें और आने वाले समय में सफलता प्राप्त करें। जो उसकी कमजोरी है उसे ताकत बना कर अपनी तैयारी करें। आने वाले समय में उसे सफलता मिलेगी।
अभिभावक दें सहयोग
कई बार देखा गया है कि बच्चे जब फेल हो जाते है तो उसके परिवार वाले उसे इस बात का ताना देने लगते हैं। यह बच्चे पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। अभिभावक को बच्चे के इमोशन को समझना चाहिए। ऐसे में बच्चे के साथ लगातार संवाद बनाते रहना चाहिए। बच्चे को कहें वह हर स्थिति में उनके साथ हैं। उसके साथ सकारात्मक व्यवहार बना कर रखें। बच्चा परेशान है तो उसे हौसला प्रदान करें अलग-थलग न रहने दें। परीक्षा को लेकर ज्यादा बात नहीं करें। छात्र को दूसरे रचनात्मक कार्य में व्यस्त रखें
परीक्षा को खेल की तरह लेना चाहिए, जैसे खेल में हार-जीत लगी रहती है वैसा ही परीक्षा में होता है। कई सफल व्यक्तियों ने असफलता का स्वाद चखा। लेकिन वह निराश और हताश नहीं हुए। और अन्त में लोगों के लिए मार्गदर्शक बने।- डॅाक्टर सुविधा शर्मा, मनोविज्ञान विभाग प्रभारी, बरेली कॉलेज बरेली