बरेली: त्रिशूल के आकाश पर चील और बाज... सीएआरआई के वैज्ञानिक दिलाएंगे निजात
आईवीआरआई परिसर में वायुसेना अधिकारियों और सीएआरआई प्रबंधन के बीच बैठक, वैज्ञानिकों को जल्द कार्ययोजना बनाने के निर्देश, भारीभरकम और ऊंचाई पर उड़ने वाले पक्षियों से लड़ाकू विमानों को गंभीर खतरा
बरेली, अमृत विचार : त्रिशूल एयरबेस के आसपास अपेक्षाकृत भारीभरकम और आसमान में ऊंचाई तक उड़ने वाले चील-बाज जैसे पक्षियों की बहुतायत ने भारतीय वायुसेना की चिंता बढ़ा दी है। एयरबेस से रोज उड़ान भरने वाले लड़ाकू विमानों के लिए इन पक्षियों को गंभीर खतरा मानते हुए वायुसेना के अफसरों ने सीएआरआई के वैज्ञानिकों से मदद मांगी है।
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आईवीआरआई परिसर में शुक्रवार को इस संबंध में हुई उच्चस्तरीय बैठक में तय हुआ कि चील और बाज जैसे पक्षियों को त्रिशूल एयरबेस से दूर रखने के लिए सीएआरआई की ओर से जल्द ही कार्ययोजना बनाई जाएगी जिसे वायुसेना के सहयोग से क्रियान्वित किया जाएगा।
त्रिशूल एयरबेस के पास पक्षियों की मौजूदगी वायुसेना के लिए पहले से ही चिंता की वजह थी लेकिन पिछले कुछ समय में इस इलाके में चील और बाज जैसे भारीभरकम और आसमान में काफी ऊंचाई तक उड़ने वाले पक्षियों की संख्या बढ़ी है जो छोटे पक्षियों की तुलना में लड़ाकू विमानों के लिए ज्यादा बड़ा खतरा हैं। इनकी मौजूदगी से न सिर्फ त्रिशूल से लड़ाकू विमानों की उड़ानें प्रभावित हो रही हैं, बल्कि दूसरी गतिविधियाें पर भी असर पड़ रहा है।
खतरों से बचने के लिए ज्यादा सतर्कता भी बरतनी पड़ रही है। पिछले दिनों वायुसेना के अफसरों ने सीएआरआई प्रबंधन को पत्र लिखकर इस समस्या से छुटकारा दिलाने के लिए मदद मांगी थी। इसके बाद शनिवार को वायुसेना और सीएआरआई के प्रमुख वैज्ञानिकों के बीच उच्चस्तरीय बैठक हुई।
सूत्रों के मुताबिक इस बैठक में पक्षियों को वायुसेना के एयरबेस से दूर रखने के कई विकल्पों पर विचार किया गया। वायुसेना के अफसरों ने कहा कि पक्षियों की मौजूदगी वायुसेना की गतिविधियों में बाधा बन रही है।
यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है, पक्षियों के विमान से टकराने पर दुर्घटना भी हो सकती है। सीएआरआई सूत्रों के अनुसार बैठक में इस समस्या से निपटने के लिए विस्तृत कार्ययोजना बनाने पर सहमति बनी जिस पर एयरफोर्स और सीएआरआई प्रबंधन मिलकर काम करेंगे।
चीन से बढ़ते तनाव के साथ बढ़ रही हैं वायुसेना की चुनौतियां: वैसे तो त्रिशूल एयरबेस का मुख्य लक्ष्य सर्विलांस, दुर्घटना के दौरान राहत और बचाव कार्यों के साथ सैन्य यूनिटों को लॉजिस्टिक सपोर्ट देना है, लेकिन सबसे प्रमुख जिम्मेदारी चीन से लगी सीमाओं की निगरानी की है।
माना जा रहा है कि जिस तरह चीन के साथ लगातार तनाव बढ़ रहा है, उसकी वजह से त्रिशूल एयरबेस की चुनौती भी लगातार बढ़ रही है। उसके आगे और ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत है। ऐसे में एयरबेस के आसपास भारी पक्षियों की मौजूदगी और बड़ी समस्या साबित हो रही है।
नगर निगम की बेपरवाही की वजह से भी बढ़ीं दिक्कतें: विशेषज्ञों के अनुसार एयरबेस के नजदीक पक्षियों की मौजूदगी का बड़ा कारण आसपास के इलाकों में गंदगी के ढेर हैं। इसके अलावा आबादी के क्षेत्र में खाने-पीने और मीट की दुकानों से निकलने वाला कचरा भी पक्षियों को इधर खींच लाता है।
वैसे तो संवेदनशील इलाकों में गंदगी फैलाना दंडनीय अपराध है लेकिन नगर निगम जिसे ऐसे मामलों में कार्रवाई करनी होती है, वह इसकी परवाह नहीं करता। त्रिशूल एयरबेस की वजह से ही रजऊ परसपुर में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट स्थापित किया गया था जो कुछ ही समय चलकर बंद हो गया। कई सालों बाद भी यह प्लांट दूसरी जगह स्थापित नहीं हो पाया है।
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