High Court का बड़ा फैसला, SC/ST एक्ट के अधीन कार्यवाही को दी जा सकती है चुनौती 

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एससी/ एसटी एक्ट के तहत दर्ज एक मामले पर महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि इस अधिनियम के तहत दर्ज मामले की पूरी कार्यवाही पर न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के अनुसार अपने अधिकार क्षेत्र के तहत विचार कर सकती है। ऐसे मामलों में हस्तक्षेप के संबंध में कोई कठोर नियम नहीं है। अगर कोर्ट को लगता है कि किसी विशेष मामले में हस्तक्षेप करके वह न्यायालय या कानून के दुरुपयोग को रोक सकती है, तो वह हस्तक्षेप कर सकती है।

 कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के गुलाम मुस्तफा मामले का हवाला देते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत जब कोर्ट संपूर्ण कार्यवाही का संज्ञान लेती है तो वह समन आदेश आदि की सत्यता और वैधता की जांच भी कर सकती है, लेकिन जब संपूर्ण कार्यवाही धारा 482 के तहत चुनौती के अधीन नहीं होती तो अभियुक्त के लिए एकमात्र रास्ता एससी/एसटी अधिनियम की धारा 14 ए के तहत अपील दाखिल करना होता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने अभिषेक अवस्थी उर्फ भोलू अवस्थी सहित दर्जनों याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पारित किया। 

कोर्ट के समक्ष यह मुद्दा था कि क्या कोई व्यक्ति किसी भी अंतरिम आदेश का विरोध किए बिना एससी/एसटी अधिनियम के तहत पूरी कार्यवाही को सीआरपीसी की धारा 482 के तहत हाईकोर्ट में चुनौती दे सकता है, जिस पर कोर्ट ने तथ्यों की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि कोर्ट सीआरपीसी की धारा 482 के तहत संपूर्ण कार्यवाही पर संज्ञान लेते समय समन आदेश की वैधता को भी परखती है। अंत में कोर्ट ने याचिका को विचार कर यथोचित आदेश पारित करने के लिए संबंधित पीठ के समक्ष भेज दिया।

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