बरेली में बुलडोजर गरजा! मिशन मार्केट की दुकानें 15 मिनट में बन गईं मलबा
बरेली, अमृत विचार: मिशन मार्केट के पास नाले पर अवैध रूप से बनी तीन पक्की दुकानों को बृहस्पतिवार को नगर निगम की टीम ने ध्वस्त कर दिया। सुबह दुकानें खुलने से पहले ही भारी पुलिस फोर्स की मौजूदगी में बमुश्किल 15 मिनट के अंदर बुलडोजर चलाकर यह कार्रवाई निपटा दी गई। खबर मिलने पर दुकानदार पहुंचे, तब तक तीनों दुकानें उसमें भरे सामान सहित मलबे में तब्दील हो चुकी थीं। इन दुकानों का केस लंबे समय से हाईकोर्ट में चल रहा था। मिशन मार्केट में 55 दुकानें और हैं, उन्हें भी जल्द ही गिराने की संभावना जताई जा रही है।
मिशन मार्केट सिविल लाइंस के नाले पर अवैध रूप से बनी तीन दुकानों को गिराने के लिए नगर निगम की टीम सुबह करीब 11 बजे मौके पर पहुंची। नगर निगम के अधिकारियों के अनुसार लीज खत्म हो चुकी थी। निगम की टीम ने दो जेसीबी चलाकर तीनों दुकानों के अवैध निर्माण को कुछ ही देर में ध्वस्त कर दिया। अतिक्रमण निरोधी अभियान के प्रभारी राजवीर सिंह ने बताया कि दुकानदारों की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी लेकिन वे केस हार गए थे। दुकान की लीज 2020 में समाप्त हो चुकी थी इसलिए वे अवैध थीं। दुकान खाली करने का नोटिस देने के बाद उन्हें ध्वस्त करने की कार्रवाई की गई है।
मिशन मार्केट में इन तीन दुकानों को छोड़कर अभी 55 दुकानें और हैं। इन्हें भी गिराने की संभावना जताई जा रही है। अतिक्रमण विरोधी अभियान के प्रभारी राजवीर सिंह ने बताया कि जिन दुकानों पर बुलडोजर चलाया गया है, उनमें सिर्फ फर्नीचर रखा था। कुछ सामान भी रखा था जिसे जब्त कर लिया गया है। मलबा गिरने से नाला बंद न हो, इसके लिए उसे मौके से कुछ दूरी पर फेंका गया है। उन्होंने कहा कि जल्द ही पूरी मिशन मार्केट को हटाने का आदेश आने वाला है। उसके बाद सारी दुकानें हटा दी जाएंगी।
प्रोफेसर पिता के निधन के बाद आवंटित हुई थीं दुकानें, कार्रवाई गलत
किला निवासी अनुपमा राघव ने बताया कि उनके प्रोफेसर पिता नरेंद्र सिंह इम्फाल में डीएम कालेज में नौकरी करते थे। उस समय मृतक आश्रित कोटे से नौकरी की बात आई तो उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से आग्रह किया कि वह पिता की अकेली संतान हैं, उन्हें नौकरी नहीं चाहिए। इसके बाद वर्ष 1995 में नगर निगम ने भूमि आवंटित कर दी थी जिसका उन्होंने 864 रुपये का किराया 31 दिसंबर तक के लिए सिविल कोर्ट में जमा किया है।
एक बार और दुकानों को गिराया गया था, इसके बाद नगर निगम को 2012 में खुद दुकानें बनवाकर देनी पड़ी थीं। उन्होंने कहा अगर उनकी लीज समाप्त हो गई थी तो उसे बढ़वाने का मौका देना चाहिए था। दुकानें खाली करने के लिए एक भी नोटिस उन्हें नहीं दिया गया। उनके अलावा यहां और भी 55 दुकानें हैं। उन पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई। मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन होने के बावजूद कार्रवाई करना अन्यायपूर्ण है। हाईकोर्ट में मामला चल रहा था, नगर निगम ने तथ्य छिपाकर पक्ष रखा है।
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