लखनऊ : 'ढोंग' में दिखी शादियों को लेकर पिता की दोहरी सोच

अमृत विचार, लखनऊ। नाट्य संस्था मंचकृति द्वारा आयोजित 30 दिवसीय हास्य नाट्य समारोह की चौथी संध्या पर नाटक ढोंग का मंचन किया गया। संगीत नाटक अकादमी के संत गाडगे सभागार में मंचित नाटक ढोंग का लेखन रमेश मेहता ने और निर्देशन संगम बहुगुणा ने किया।
नाटक ढोंग में हकीम साहब का एक बेटा नरेश और बेटी मीना है। वह चाहते हैं कि उनकी बेटी की शादी किसी बड़े घर में हो जाए और दहेज़ भी न देना पड़े जबकि लड़के की शादी ऐसे घर में हो जहां खूब दहेज़ मिले। हकीम साहब की पत्नी जमुना चाहती है कि उसके बच्चों की शादियां उनकी मर्जी से हो।
हकीम साहब अपनी बेटी को दिखाने के लिए एक पंडित को घर बुलाते हैं लेकिन उनकी पत्नी अपनी बिटिया की शादी को तैयार नहीं होती। हकीम साहब शादी तय कर देते हैं और उधर उनका बेटा अपनी प्रेमिका को और बेटी अपने प्रेमी को शादी के मंडप में बुला लेते हैं। शादी की प्रक्रिया चल रही है और सभी लोग बहुत खुश नजर आ रहे हैं लेकिन अचानक से जब रहस्योद्घाटन होता है तो हकीम साहब ठगे से रह जाते हैं।
इस नाटक में परिस्थितियां जिस तेजी से बदलती हैं वह लोगों को ठहाके लगाने को मजबूर करती हैं। नाटक में संगम बहुगुणा, अर्चना शुक्ला, रविकांत शुक्ला, अंकुर सक्सेना, गरिमा, कीर्ति सिंह, अभिजित सिंह और हरीश वडोला ने सराहनीय भूमिकाएं अदा कीं। प्रकाश व्यवस्था गोपाल सिन्हा की थी।
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