फिर से पलायन

कश्मीर में हालत खराब हैं। एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ने लगी हैं और आतंकी कश्मीरी पंडितों को निशाने पर ले रहे हैं। 1990 में कश्मीर में बड़े पैमाने पर हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं के पलायन का दृश्य एक बार फिर सामने दिखने लगा है। आतंकवादियों के बढ़ते टारगेट किलिंग के मद्देनजर दक्षिण …
कश्मीर में हालत खराब हैं। एक बार फिर से जम्मू-कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढ़ने लगी हैं और आतंकी कश्मीरी पंडितों को निशाने पर ले रहे हैं। 1990 में कश्मीर में बड़े पैमाने पर हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं के पलायन का दृश्य एक बार फिर सामने दिखने लगा है। आतंकवादियों के बढ़ते टारगेट किलिंग के मद्देनजर दक्षिण कश्मीर के शोपियां जिले के 10 कश्मीरी पंडित परिवार डर और तनाव के कारण अपने घर छोड़कर जम्मू आ गए हैं।
गौरतलब है कि कश्मीरी पंडित पूरन कृष्ण भट की 15 अक्तूबर को शोपियां जिले के चौधरीगुंड गांव में उनके घर के बाहर आतंकवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। वहीं, शोपियां जिले में 18 अक्तूबर को आतंकवादियों द्वारा किए गए ग्रेनेड हमले में मोनीश कुमार और राम सागर मारे गए थे।
चौधरीगुंड के एक निवासी ने कहा कि 10 कश्मीरी पंडित परिवार यानी समुदाय के 35 से 40 लोग डर और तनाव के कारण गांव छोड़कर जा चुके हैं। गांव अब खाली हो गया है। ये लोग 1990 के दशक से कश्मीर में रह रहे हैं, लेकिन मुश्किल से मुश्किल समय में उन्होंने अपने घर कभी नहीं छोड़े।
हालांकि बढ़ती आतंकवादी घटनाओं के चलते अब वे कश्मीर छोड़ने पर विवश हो रहे हैं। 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 वापस लेने का ऐतिहासिक फैसला केंद्र सरकार ने लिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग किया गया और दोनों को केंद्र शासित राज्य बना दिया गया। दावा था कि इससे जम्मू-कश्मीर में शांति, स्थिरता और विकास के नए रास्ते खुलेंगे।
धारा 370 हटाने के बाद से कश्मीर में शांति बहाली और जनजीवन को सामान्य बनाने के कवायदें तेज हो गईं। इन सबके बीच कश्मीरी पंडितों की चुन-चुनकर की जा रही हत्याओं ने मनोबल गिराने का काम किया है। नतीजतन कश्मीरी पंडितों ने पलायन शुरू कर दिया है। जो शांति प्रयासों का तगड़ा झटका तो है ही, वहीं इस ओर भी संकेत करता है कि कश्मीर में आंतक की जड़ें काफी गहरी और स्थानीय स्तर पर फैली हुई हैं।
पिछले चार साल से कश्मीर में कोई चुनी हुई सरकार नहीं है। यहां का शासन केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त किए गए गवर्नर चला रहे हैं। ऐसे में सवाल है कि केंद्र सरकार कश्मीर से पलायन को कैसे रोक पाएगी? यह आतंकवाद और उसकी शैली भी नई है। हत्यारों को स्थानीय स्तर पर पनाह मिलने के खेल को तोड़ना और नष्ट करना पड़ेगा। उनसे कोई हमदर्दी या इस पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए।