आतिशबाजी और प्रदूषण

दीपावली पर पटाखे जलाने से होने वाले प्रदूषण में हर वर्ष बढ़ोतरी जारी है। प्रतिबंध के बावजूद लोगों ने दिवाली की रात जमकर आतिशबाजी की। प्रदेश में दिवाली में जले पटाखों की वजह से 28 जिलों की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित रिकॉर्ड की गई है। इनमें एनसीआर के नोएडा और गाजियाबाद की हवा स्वास्थ्य के …
दीपावली पर पटाखे जलाने से होने वाले प्रदूषण में हर वर्ष बढ़ोतरी जारी है। प्रतिबंध के बावजूद लोगों ने दिवाली की रात जमकर आतिशबाजी की। प्रदेश में दिवाली में जले पटाखों की वजह से 28 जिलों की हवा सबसे ज्यादा प्रदूषित रिकॉर्ड की गई है। इनमें एनसीआर के नोएडा और गाजियाबाद की हवा स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताई जा रही है।
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लखनऊ का एयर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 180 पर पहुंच गया। ये सेहत के लिए हानिकारक है। लखनऊ में कुकरैल सबसे ज्यादा प्रदूषित रहा। यहां एक्यूआई 203 है। वहीं देश के टॉप 10 प्रदूषित शहरों में तीन यूपी के रिकॉर्ड हुए हैं। इनमें मुरादाबाद, गाजियाबाद और नोएडा है। नोएडा में मंगलवार सुबह 7 बजे का एक्यूआई 320 दर्ज किया गया है, जो सबसे खराब श्रेणी में है। मुरादाबाद में 250 था, जबकि गाजियाबाद में 212 रहा।
दिवाली से बहुत पहले जब हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों में पराली जलाने की वजह से दिल्ली की आबो-हवा चिंताजनक स्तर तक खराब हो गई, तो दिवाली पर पटाखे जलाने से पैदा होने वाली परेशानियों को लेकर आशंका जताई जाने लगी थी। इसलिए कई राज्यों ने दिवाली पर पटाखे जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया था। दिल्ली सरकार ने भी पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। आतिशबाजी के कारण वातावरण में धुएं की गहरी चादर फैल जाती है और लोगों को हवा में घुटन, आंखों में जलन और खुश्की के साथ एक-दूसरे की बात सुनने में परेशानी महसूस होती है।
आतिशबाजी चलाने से जो धुआं निकलता है उसमें चारकोल, सल्फर फ्यूल होता है जिसके कारण पार्टिकुलेट मैटर में बढ़ोतरी होती है और यही पार्टिकुलेट मैटर लोगों के फेफड़ों में जमा हो जाता है और यह उन लोगों को बहुत नुकसान पहुंचाता है जो लोग अस्थमा जैसी बीमारी से प्रभावित होते हैं। पटाखों से ध्वनि और वायु का प्रदूषण कितना बढ़ जाता है, लोगों को इस तथ्य से अनजान नहीं माना जा सकता। फिर भी अपनी क्षणिक खुशी के लिए वे लापरवाह हो जाएं तो यह जिम्मेदार नागरिकों की पहचान नहीं कही जा सकती। सब जानते-बूझते भी लोगों ने दिवाली पर पटाखे जलाए, यह उनके गैर-जिम्मेदार नागरिक होने की ही गवाही है। एक बार फिर साबित गया कि जिन समस्याओं को नागरिक बोध के जरिए हल किया जा सकता है, उनमें भी लोगों की अपेक्षित भागीदारी नहीं हो पाती।
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