बरेली: खुद उजाले को तरस रहे दूसरों का घर रोशन करने वाले, मिट्टी के दीयों के प्रति लोगों में आई कमी से मायूस हुए कुम्हार

बरेली, अमृत विचार। दिवाली पर मिट्टी के दीयों की जगह अब रंग-बिरंगी झालरों ने ले ली है। धीरे-धीरे दीयों का इस्तेमाल कम होता जा रहा है और लोग इनका सिर्फ परंपरा के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। इस कारण मिट्टी के दीये और बर्तन आदि तैयार करने वाले कुम्हारों को मुफलिसी का सामना करना पड़ रहा …
बरेली, अमृत विचार। दिवाली पर मिट्टी के दीयों की जगह अब रंग-बिरंगी झालरों ने ले ली है। धीरे-धीरे दीयों का इस्तेमाल कम होता जा रहा है और लोग इनका सिर्फ परंपरा के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। इस कारण मिट्टी के दीये और बर्तन आदि तैयार करने वाले कुम्हारों को मुफलिसी का सामना करना पड़ रहा है। इस बार तो उनकी परेशानी और बढ़ गई है, क्योंकि बीते दिनों लगातार चार दिन हुई बारिश में पहले से तैयार दीये व मिट्टी के बर्तन खराब हो गए। ऐसे में दिवाली के मौके पर दीयों से दूसरों के घरों को रोशन करने वाले कुम्हारों के सामने आर्थिक तंगी का संकट खड़ा कर दिया है। अब न तो ग्रामीण क्षेत्रों से कच्चा माल मिल पा रहा है और न ही लोगों में मिट्टी के दीयों के प्रति कोई उत्साह देखा जा रहा है।
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सुरेश शर्मा नगर चौराहे के पास ही एक झोपड़ी में दीये व मिट्टी के बर्तन तैयार करने वाले कुम्हार राम प्रसाद का कहना है कि करीब 20 दिन पहले से ही मिट्टी के बर्तन आदि सामानों की तैयारी की जा रही थी। लेकिन इस बार बारिश के चलते मिट्टी के कच्चे सामान पानी में भीगने के कारण बर्बाद हो गए। करीब 5 हजार से ज्यादा दीये, छोटे -बड़े ढक्कन और भी कई तरह की मिट्टी की झालरें तैयार की गई थीं। अब सामानों को तैयार करने के लिए पर्याप्त मात्रा में मिट्टी भी नहीं मिल रही है। क्योंकि सामानों को तैयार करने के लिए दोमट मिट्टी ही उपयुक्त रहती है। खेतों में अभी भी पानी भरा हुआ है।
सामानों को बमुश्किल बची हुई मिट्टी से तैयार कराया जा रहा है। इस बार बरसात के चलते काफी नुकसान हुआ है। दीयों व अन्य बर्तनों को तैयार करने में भी पहले से ज्यादा लागत आ रही है। इस कारण तैयार सामानों के दामों में भी बढ़ोतरी हुई है। मिट्टी के दीयों के प्रति लोगों का रुझान भी दिन प्रति दिन कम हो रहा है। इस कारण बिक्री भी औसतन ही हो रही है।- शिवम प्रजापति , दुकानदार
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