कानपुर: पॉलिटिकल वायरस चाट गया व्यापार मंडल का जुझारू तेवर, चेयरमैन सुरेंद्र सनेजा का छलका दर्द
कानपुर। व्यापारी नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने व्यापार मंडल में बिखराव की स्थिति उत्पन्न कर दी है। लगभग आधा दर्जन व्यापार मंडल हैं राजनीतिक दलों के खूंटे से बंधे हैं। आजकल ये सभी भाजपा के प्रभाव में है। व्यापारी आंदोलन सिर्फ ज्ञापन सौंपने तक सीमित रह गए हैं। काम हो न या हो, उनकी बला …
कानपुर। व्यापारी नेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं ने व्यापार मंडल में बिखराव की स्थिति उत्पन्न कर दी है। लगभग आधा दर्जन व्यापार मंडल हैं राजनीतिक दलों के खूंटे से बंधे हैं। आजकल ये सभी भाजपा के प्रभाव में है। व्यापारी आंदोलन सिर्फ ज्ञापन सौंपने तक सीमित रह गए हैं। काम हो न या हो, उनकी बला से। जीएसटी की पेचीदगी से लेकर अन्य मुद्दों पर लगभग यही रवैयार है। व्यापारियों का सर्वमान्य गैर राजनीतिक संगठन राजनीतिक हो चुका है। पहले जैसी हनक अब नहीं रही। आप किस व्यापार मंडल से आए हैं?
यह अधिकारी पूछ लेते हैं। यह पीड़ा व्यापार मंडल की नींव के पत्थर कहे जाने वाले व्यापारी नेता सुरेंद्र सनेजा की है। वह कहते हैं कि कानपुर तो व्यापार मंडल की जननी के रूप में जाना जाता है। बीते कुछ सालों में व्यापारी नेताओं ने रसातल में खड़ा कर दिया है।
सुरेंद्र सनेजा अखिल भारतीय व्यापार मंडल (बंसल गुट) के प्रदेश चेयरमैन हैं। अमृत विचार से बातचीत में उन्होंने बताया कि उन्हें वह मंजर आज भी याद है जब कि जब 26 मई 1979 को लखनऊ में विधानसभा का घिराव करने के व्यापारियों पर पुलिस ने गोलियां दागी थी जिसमें युवा व्यपारी हरीशचंद्र गुप्ता की मौत हो गयी थी।
उनकी पुण्यतिथि हम लोग आज भी मनाकर संघर्ष के दिनों की याद कर लेते हैं। वह कहते हैं कि उन दिनों की आज भी याद है जब बिक्रीकर अधिकारी हमारे ही गल्ले पर बैठकर कैश की दराज से पैसे गिनता था और कैशबुक से मिलान करके मैचिंग रकम डालकर बाकी डंके की चोट पर ले जाता था। हम लोग टापते रह जाते थे। वर्ष 1974-75 के दौरान व्यापार मंडल का गठन किया गया। कानपुर में उद्योग व्यापार मंडल के पहले अध्यक्ष स्व.श्यामबिहारी मिश्रा बने और उनके महामंत्री उनके महामंत्री सुरेंद्र मोहन अग्रवाल बने।
जब प्रदेश अध्यक्ष बने तब महामंत्री बनवारीलाल कंछल बनाए गए। बस यहीं से व्यापारियों के हित के लिए संघर्ष की राजनीति शुरू हुई। उसके बाद तो दादा अशरफीलाल शुक्ला, एसबी शर्मा, केके मेहरोत्रा मैं खुद (सुरेंद्र सनेजा) जैसे दिग्गजों ने नेतृत्व संभाला। व्यापारी आंदोलनों के आगे सरकार भी घुटने टेक देती रही।
सनेजा (थोड़ा भावुक होकर) कहते हैं कि उन्हें याद है कि बिजली कटौती, दूषित कर प्रणाली और व्यापारी उत्पीड़न के खिलाफ 1997 में कानपुर बंद का आह्वान किया था जो कि सफल रहा। रामादेवी चौराहा पर सड़क जाम कर दिया गया तो इलाहाबाद, लखनऊ, इटावा व फरुखाबाद की तरफ से आने वाला ट्रैफिक थम गया। चार बजे जाम खत्म किया गया। सनेजा चुनौती देते हैं कि अब ऐसा प्रदर्शन करके भला कोई दिखा दे। तत्कालीन सीएम राजनाथ सिंह को बिजली मंत्री नरेश अग्रवाल को हटाना पड़ गया था। उनके खिलाफ प्रदेश भर से व्यापरियों ने शिकायतें दर्ज करनी शुरू कर दी थी।
उनका कहना है कि लगातार बढ़ती समस्याएं और सत्ता की चकाचौंध से राह भटक चुके ज्यादातर प्रभावहीन नेताओं के चलते व्यापारी वहीं पर खड़ा है जहां पर व्यापार मंडल के गठन से पहले खड़ा था। वह ठगा हुआ महसूस कर रहा है। किसी नाम नहीं लेना चाहता हूं। लोग सांसद विधायक, राज्यस्तरीय दर्जा प्राप्त मंत्री तक बने सत्ता में मलाई काटते रहे और व्यापारी को क्या मिला? व्पापार मंडल गैरराजनीतिक संगठन के तौर पर काम करें तो खोया हुआ वैभव पाया जा सकता है।
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