65 साल के वकीलों को खुली अदालत में बहस से रोकने का विरोध
प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं कांस्टीट्यूशन एण्ड सोसल रिफार्म के अध्यक्ष अमर नाथ त्रिपाठी ने कहा है कि 65 साल से अधिक आयु के अधिवक्ताओं को उच्च न्यायालय परिसर में प्रवेश की अनुमति न/न देना अनुच्छेद 14 ,अनुच्छेद 19(1)जी एवं अनुच्छेद 21 के मूल अधिकारों के विपरीत है। ऐसा करना आयु के …
प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता एवं कांस्टीट्यूशन एण्ड सोसल रिफार्म के अध्यक्ष अमर नाथ त्रिपाठी ने कहा है कि 65 साल से अधिक आयु के अधिवक्ताओं को उच्च न्यायालय परिसर में प्रवेश की अनुमति न/न देना अनुच्छेद 14 ,अनुच्छेद 19(1)जी एवं अनुच्छेद 21 के मूल अधिकारों के विपरीत है। ऐसा करना आयु के आधार पर वकीलों के बीच भेदभाव करना है।
त्रिपाठी ने कहा कि केन्द्र सरकार की गाइड लाइन के पैरा सात में स्वास्थ्य एवं आवश्यक सेवाओं को छूट दी गई है। वादकारी को न्याय आवश्यक सेवाओं में शामिल है। जिसको आयु के आधार पर नियंत्रित नहीं किया जा सकता। जिस वादकारी के लिए न्याय व्यवस्था है,उसे और उसके प्रतिनिधि को अदालत में जाने से रोकना उचित नहीं है।
उन्होंने मुख्य न्यायाधीश से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया है। त्रिपाठी ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को अपनी मर्जी से व्यवसाय करने, बिना भेदभाव के गरिमामय जीवन जीने का अधिकार है। जिसे प्रतिबंधित नही किया जा सकता। गौरतलब है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आठ जून से खुली अदालत में सुनवाई की व्यवस्था की है, जिसमें 65 वर्ष की आयु से अधिक के वकीलों के कोर्ट परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी है।
उन्हें वीडियो कान्फ्रेन्सिंग से बहस की सुविधा दी गयी है। अन्य आयु के वकीलों को कोर्ट में आकर बहस करने अथवा वीडियो कान्फ्रेन्सिंग से बहस की अनुमति दी गयी है। इस प्रकार से आयु के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। अध्यक्ष ने कहा कि वीडियो कान्फ्रेन्सिंग कार्यपालिका के लिए उपयोगी हो सकता है। इसे न्याय व्यवस्था में अपनाना न्याय के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करना है।