मानवता की खातिर

विश्व में मानव सभ्यता बचाने के लिए इससे बड़ा कदम दूसरा नहीं हो सकता कि कोई स्वस्थ व्यक्ति खुद को कोरोना से इसलिए संक्रमित करा ले ताकि उस पर कोरोना वायरस की वैक्सीन का परीक्षण किया जा सके। मानवता बचाने को खुद की जिंदगी खतरे में डालने वाली महिला वाशिंगटन के सीएटल शहर की 43 …

विश्व में मानव सभ्यता बचाने के लिए इससे बड़ा कदम दूसरा नहीं हो सकता कि कोई स्वस्थ व्यक्ति खुद को कोरोना से इसलिए संक्रमित करा ले ताकि उस पर कोरोना वायरस की वैक्सीन का परीक्षण किया जा सके। मानवता बचाने को खुद की जिंदगी खतरे में डालने वाली महिला वाशिंगटन के सीएटल शहर की 43 साल की जेनिफर हॉलर हैं। जहां दुनियाभर में कोरोना वायरस का मुकाबला करने के लिए वैश्विक प्रयास जारी हैं, वहीं अमेरिका में हुए इस परीक्षण के बाद यह बात साबित हुई है कि दुनिया बचाने के लिए मानवीयता के नाते लोग खुद को खतरे में भी डाल सकते हैं।

दूसरों को बचाने के लिए खुद को मौत की दहलीज तक ले जाना कोई मामूली बात तो नहीं है। मानवता के लिए इससे बड़ा त्याग क्या हो सकता है? जेनिफर हॉलर के अलावा तीन और लोगों को इस परीक्षण का इंजेक्शन लगाया जाना है। इसके अलावा 45 अन्य लोगों को भी इसका हिस्सा बनाया जाएगा और इन्हें एक महीने के बाद दो और डोज दिए जाएंगे। यानी परीक्षा आगे भी चलेगा। 46 साल के नील ब्राउनिंग भी इस परीक्षण टीम के सदस्य हैं।

इस रिसर्च पर काम कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर परीक्षण कामयाब रहता है तो 12 से 18 महीने में वैक्सीन दुनियाभर में इस्तेमाल की जा सकेगी। तमाम अन्य देशों में भी कोरोना वैक्सीन को लेकर काम हो रहा है। मगर वैक्सीन का मानव पर परीक्षण अमेरिका में ही हुआ और उसके लिए जिन मानवों ने अपना जीवन खतरे में डाला है, पूरी मानवता को उनके सामने नतमस्तक होना ही चाहिए।

इधर कोरोना संक्रमण के बाद मानव-इतिहास में पूरी दुनिया इस तरह कभी बंद नहीं हुई। यह भी एक विडंबना है कि महामारी का अंतिम छोर विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश भारत में है। इसमें सरकार भी ख़ास मदद नहीं कर सकती। कोई घर से निकले ही नहीं, मिले ही नहीं, बाजार ही न जाए, ट्रेन-बस में न चढ़े, यह हमारे देश में असंभव है। देश में इसका प्रभाव उन्हीं स्थानों से शुरू हुआ, जहां विदेशी आवागमन अधिक है, जैसे मुंबई, पुणे, बंगलुरु, केरल, दिल्ली।

आज के जो हालात हैं इसमें जरूरी है कि हम खुद को तैयार करें। सभी निजी स्वास्थ्य-केंद्र सहयोग दें। याद रहे यह बीमारी वृद्ध और पहले से बीमार लोगों के लिए ही ज्यादा घातक है, जिनकी संख्या देश में करोड़ों में है। युवक स्वास्थ्य वालंटियर बनने के लिए भी तैयार रहें। क्योंकि विश्व भर में युवक लगभग इस बीमारी से सुरक्षित हैं। तमाम स्वास्थ्य-कर्मी काम कर ही रहे हैं, और स्वस्थ भी हैं। और हां वैक्सीन का खुद पर प्रयोग करा रहे महामानव भी हमारे बीच के ही हैं।

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