ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं
By Amrit Vichar
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ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं हो रहा हूँ मैं किस तरह बरबाद देखने वाले हाथ मलते हैं है वो जान अब हर एक महफ़िल की हम भी अब घर से कम निकलते हैं है उसे दूर का सफ़र दर-पेश हम सँभाले नहीं सँभलते हैं क्या तकल्लुफ़ करें ये …
ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं
शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं
हो रहा हूँ मैं किस तरह बरबाद
देखने वाले हाथ मलते हैं
है वो जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं
है उसे दूर का सफ़र दर-पेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं
क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं
तुम बनो रंग तुम बनो ख़ुश्बू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं
मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं
है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं
-
जौन एलिया