Urdu poet
साहित्य 

खु़द-आगही

खु़द-आगही वो कैसी तारीक घड़ी थी जब मुझ को एहसास हुआ था मैं तन्हा हूँ उस दिन भी सीधा-सादा सूरज निकला था शहर में कोई शोर नहीं था घर में कोई और नहीं था अम्माँ आटा गूँध रही थीं अब्बा चारपाई पर बैठे ऊँघ रहे थे धीरे धीरे धूप चढ़ी थी और अचानक दिल में ये …
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साहित्य 

वो

वो वो किताब-ए-हुस्न वो इल्म ओ अदब की तालीबा वो मोहज़्ज़ब वो मुअद्दब वो मुक़द्दस राहिबा किस क़दर पैराया परवर और कितनी सादा-कार किस क़दर संजीदा ओ ख़ामोश कितनी बा-वक़ार गेसू-ए-पुर-ख़म सवाद-ए-दोश तक पहुँचे हुए और कुछ बिखरे हुए उलझे हुए सिमटे हुए रंग में उस के अज़ाब-ए-ख़ीरगी शामिल नहीं कैफ़-ए-एहसासात की अफ़्सुर्दगी शामिल नहीं वो …
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ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ

ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ ये सर्द रातें भी बन कर अभी धुआँ उड़ जाएँ वो इक लिहाफ़ मैं ओढूँ तो सर्दियाँ उड़ जाएँ ख़ुदा का शुक्र कि मेरा मकाँ सलामत है हैं उतनी तेज़ हवाएँ कि बस्तियाँ उड़ जाएँ ज़मीं से एक तअल्लुक़ ने बाँध रक्खा है बदन में ख़ून नहीं हो तो हड्डियाँ उड़ जाएँ बिखर बिखर सी …
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ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं

ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं ठीक है ख़ुद को हम बदलते हैं शुक्रिया मश्वरत का चलते हैं हो रहा हूँ मैं किस तरह बरबाद देखने वाले हाथ मलते हैं है वो जान अब हर एक महफ़िल की हम भी अब घर से कम निकलते हैं है उसे दूर का सफ़र दर-पेश हम सँभाले नहीं सँभलते हैं क्या तकल्लुफ़ करें ये …
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तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो

तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो तुम्हारा हिज्र मना लूँ अगर इजाज़त हो मैं दिल किसी से लगा लूँ अगर इजाज़त हो तुम्हारे बा’द भला क्या हैं वअदा-ओ-पैमाँ बस अपना वक़्त गँवा लूँ अगर इजाज़त हो तुम्हारे हिज्र की शब-हा-ए-कार में जानाँ कोई चराग़ जला लूँ अगर इजाज़त हो जुनूँ वही है वही मैं मगर है शहर नया यहाँ भी शोर …
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रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है एक दीवाना मुसाफ़िर है मिरी आँखों में वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है चल पड़ता है अपनी ताबीर के चक्कर में मिरा जागता ख़्वाब रोज़ सूरज की तरह घर से निकल पड़ता है रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं …
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ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है

ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है ये दौर-ए-ख़िरद है दौर-ए-जुनूँ इस दौर में जीना मुश्किल है अँगूर की मय के धोके में ज़हराब का पीना मुश्किल है जब नाख़ुन-ए-वहशत चलते थे रोके से किसी के रुक न सके अब चाक-ए-दिल-ए-इन्सानिय्यत सीते हैं तो सीना मुश्किल है इक सब्र के घूँट से मिट जाती तब तिश्ना-लबों की तिश्ना-लबी कम-ज़र्फी-ए-दुनिया के सदक़े ये …
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जॉन एलिया: जानें कैसे बने उर्दू के महान शायर, मिली दुनियाभर में अलग पहचान

जॉन एलिया: जानें कैसे बने उर्दू के महान शायर, मिली दुनियाभर में अलग पहचान लखनऊ। भारत में कई जानें माने दिग्गज शयर, साहित्कार मशहूर हुए हैं। उन्हीं में से आज हम आपको एक महान शेयर जॉन एलिया शाहब में बताने जा रहे हैं। जॉन शाहब उर्दू के महान शायर थे, जिनका जन्म 14 दिसंबर 1931 में अमरोहा यूपी में हुआ था। वर्तमान समय के शायरों में सबसे ज्यादा उन्हें …
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