रायबरेली: चुनावी रण में पिता के बिना अदिति के सामने है बड़ी चुनौती, जानें क्या…

रायबरेली। विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और चुनावी रण क्षेत्र में सियासी रणबांकुरे एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकने को तैयार हैं। प्रदेश में रायबरेली की सदर सीट भी महत्वपूर्ण हो गई है। कारण पूर्व कांग्रेस विधायक अदिति सिंह भाजपा से उतर रही हैं, वहीं भाजपा को महिला मतदाताओं के बीच चेहरा बनाने में …
रायबरेली। विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया है और चुनावी रण क्षेत्र में सियासी रणबांकुरे एक-दूसरे के खिलाफ ताल ठोंकने को तैयार हैं। प्रदेश में रायबरेली की सदर सीट भी महत्वपूर्ण हो गई है। कारण पूर्व कांग्रेस विधायक अदिति सिंह भाजपा से उतर रही हैं, वहीं भाजपा को महिला मतदाताओं के बीच चेहरा बनाने में लगा है। हालांकि अदिति की धुर विरोधी कांग्रेस ने उनके पति का नवांशहर से टिकट काटकर अदिति को मनोवैज्ञानिक झटका देने की कोशिश की है।
साथ ही सदर सीट पर अदिति की जीत पिछले चुनाव में उनके पिता और पांच बार के विधायक अखिलेश सिंह के कारण हुई थी। इस बार अखिलेश सिंह की चुनावी अखाड़ेबाजी अदिति के साथ नहीं होगी। ऐसे में चुनाव अदिति के लिए चुनौती सरीखा होगा।
जिला रायबरेली की बात की जाए तो यह कांग्रेस का गढ़ रहा है लेकिन पहली बार बिना किसी विधायक के कांग्रेस मैदान में होगी। रायबरेली में पिछले 20 सालों से गांधी परिवार से इतर यदि किसी शख्स का जिले की राजनीति में दबदबा रहा तो वह स्व अखिलेश सिंह का था।
राबिनहुड जैसी छवि वाले अखिलेश सिंह ने अपने राजनीतिक सफर में रिकार्ड बनाए। पांच बार विधायक रहे तो साथ ही लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव, वोटर टर्न आउट में उनका अहम रोल रहता था। पीली कोठी सियासत का केंद्र बिंदु रहती थी।
2017 के विधानसभा चुनाव में अदिति सिंह ने कांग्रेस की टिकट से चुनाव लड़ा था और उस दौरान भाजपा की लहर चल रही थी लेकिन सदर सीट पर भाजपा तीसरे स्थान पर रही थी। असल में अदिति के पिता स्व अखिलेश सिंह सदर सीट के जातिगत वोटबैंक की थ्योरी को समझते थे। यही कारण रहा कि 2007 और 2012 में अखिलेश बिना कांग्रेस की टिकट के चुनाव जीते थे।
2017 के चुनाव में बसपा के शहनवाज खान ने अदिति को टक्कर देने की कोशिश की थी। मुस्लिम प्रत्याशी होने के बाद भी शहनवाज को मुस्लिम का कम वोट मिला था और अखिलेश की सियासी चालों ने अदिति को विधायक बना दिया था। सदर सीट पर एससी, मुस्लिम और ठाकुर वोट बैंक खासा अहम होता है। अब अदिति भाजपा से हैं तो मुस्लिम वोटबैंक को साधने में चुनौती होगी। उनके पिता अखिलेश सिंह इस वोटबैंक को अपने पाले में करने की कुव्वत रखते थे। अखिलेश सिंह ने टीएमडी के फार्मूले को अपनाया और लगातार जीत हासिल की।
अखिलेश को कोई नहीं दे सका चुनौती
अखिलेश सिंह को कोई पार्टी, कोई नेता चुनौती नहीं दे सका। विपक्षियों के कोई दांव पेंच कभी अखिलेश सिंह के सामने नहीं चल सका। यही वजह रही कि गांधी परिवार भी अखिलेश सिंह की सियासत को रायबरेली में मात नहीं दे सका।
रायबरेली का प्रमुख जातीय समीकरण
ब्राह्मण – 11 फीसदी
ठाकुर – 9 फीसदी
यादव – 7 फीसदी
एससी – 34 फीसदी
मुस्लिम – 6 फीसदी
लोध – 6 फीसदी
कुर्मी – 4 फीसदी
अन्य – 23 फीसदी
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