कभी सभाओं में भीड़ तो अब हो रहा ऑनलाइन प्रचार

अविक ठाकुर/अमृत विचार। 80 के दशक के आसपास चुनाव प्रत्याशी के व्यक्तित्व और ईमानदारी की मिसाल पर हुआ करता था। जब समर्थक प्रत्याशी के बारे में बताकर जनता के बीच पार्टी का प्रचार-प्रसार करते थे। उस दौर में भी प्रत्याशी चिकित्सा और शिक्षा को अपना चुनावी एजेंडा बनाते थे। जिसके बाद जनता उनके इस एजेंडे …
अविक ठाकुर/अमृत विचार। 80 के दशक के आसपास चुनाव प्रत्याशी के व्यक्तित्व और ईमानदारी की मिसाल पर हुआ करता था। जब समर्थक प्रत्याशी के बारे में बताकर जनता के बीच पार्टी का प्रचार-प्रसार करते थे। उस दौर में भी प्रत्याशी चिकित्सा और शिक्षा को अपना चुनावी एजेंडा बनाते थे। जिसके बाद जनता उनके इस एजेंडे के ऊपर मतदान करती थी। इसके बाद वह कहीं जाकर अपनी कुर्सी को हासिल कर पाते थे।
अमृत विचार से बातचीत में गिरीश मंडूला ने बताया कि 1995 में वह महज 22 वर्ष के थे। जब उन्होंने पहली बार अपने मत का प्रयोग किया। कहा कि पहले के समय में नुक्कड़ सभाओं का प्रत्याशियों में ज्यादा उत्साह हुआ करता था। उस समय प्रत्याशी गली-मोहल्लों में जाकर नुक्कड़ सभाओं में अपनी आवाज को बुलंद कर जनता को चिकित्सा व शिक्षा जैसी सुविधा देने की बात किया करते थे। यह नुक्कड़ सभाएं लोग दरी पर ही बैठकर गौर से सुन लिया करते थे। इस बीच प्रत्याशी भी जनता से उनकी समस्याओं को जानते थे। उन्होंने बताया कि प्रत्याशी अपना प्रचार लाउडस्पीकर, पर्चे, बिल्ले और दीवार लेखन से किया करते थे। जिसके बाद जनता पर अपना विश्वास जमा पाते थे और चुनाव में कामयाब होते थे।
इन जगहों पर हुआ करती थीं नुक्कड़ सभाएं : 35 साल पहले तक शहर के सब्जी मंडी, तहसील स्कूल, इंदिरा चौक, गलशहीद, अमरोहा गेट, मंडी बांस और कटरा नाज जैसे स्थानों पर नुक्कड़ सभा हुआ करती थी। यह दौर आजादी के बाद से 1990 तक चला। करीब 1992 में टीएन शेषन ने चुनाव आयोग को मजबूत किया। जिसके बाद चुनाव आयोग ने प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार पर कुछ पाबंदियां लगा दी गई। जबकि इससे पहले चुनाव प्रचार 48 घंटे पहले बंद हुआ करता थे। उस समय में सभी प्रत्याशी ठेलों पर थर्माकोल से चुनाव चिह्न बना कर मुस्लिम कॉलेज से होते हुए कंपनी बाग तक अपना शक्ति प्रदर्शन करते हुए जुलूस निकाला करते थे। इस जुलूस के आधार पर ही प्रत्याशी के वोट भी तय हो जाया करते थे। इस जुलूस को निकालने के लिए प्रत्याशी भी अधिक से अधिक भीड़ एकत्र करने की कोशिश करते थे।
अब इस तरह होता है चुनाव प्रचार : बदलते वक्त के साथ-साथ चुनाव प्रचार का तरीका भी बदल गया है। अब प्रत्याशियों के एजेंडे भी कई तरह के रहते हैं और प्रचार भी अलग-अलग तरीके से होता है। कोई गीतों से तो कोई बड़ी-बड़ी जनसभाओं में अपने काम गिनाते हैं। जबकि पहले ऐसा नहीं हुआ करता था। हालांकि इस बार कोरोना के चलते चुनाव आयोग ने दलों को चुनाव का तरीका बदलने के लिए कहा है। यही वजह है कि इस बार पार्टी सोशल मीडिया पर अपना अधिकतम प्रचार करने में जुटी हुई हैं।