रामपुर में बीता था पंडित बिरजू महाराज का बचपन

रामपुर में बीता था पंडित बिरजू महाराज का बचपन

अखिलेश शर्मा, रामपुर, अमृत विचार। सुप्रसिद्ध कत्थक नर्तक पंडित बिरजू महाराज का 83 वर्ष की उम्र में दिल्ली में निधन हो गया। उनका बचपन रामपुर में चुपशाह मियां की मजार के पास एक घर में बीता था, कत्थक सम्राट बिरजू महाराज 15 साल पहले 2006 में रजा लाइब्रेरी द्वारा आयोजित नवाब रजा अली खां के …

अखिलेश शर्मा, रामपुर, अमृत विचार। सुप्रसिद्ध कत्थक नर्तक पंडित बिरजू महाराज का 83 वर्ष की उम्र में दिल्ली में निधन हो गया। उनका बचपन रामपुर में चुपशाह मियां की मजार के पास एक घर में बीता था, कत्थक सम्राट बिरजू महाराज 15 साल पहले 2006 में रजा लाइब्रेरी द्वारा आयोजित नवाब रजा अली खां के जन्मशती समारोह में शिरकत करने आए थे। तब उन्होंने अपने बचपन की यादें इस कार्यक्रम में ताजा की थीं। बिरजू महाराज के पिता पंडित अच्छन महाराज और चाचा पंडित लच्छू महाराज रामपुर नवाब के दरबार में सुप्रसिद्ध कत्थक नर्तक थे।

रामपुर रजा लाइब्रेरी में दर्ज इतिहास इस बात का गवाह है और यहां की वह जगह गवाह हैं जहां इन महान संगीतज्ञों ने अपनी साधना की थी। रामपुर रियासत के उन नवाबीनों को यह शुक्रिया अदायगी है जिन्होंने हिन्दुस्तानी मौसिकी और कल्चर को उस नाजुक सियासी दौर में संरक्षण दिया जब 1857 के गदर के बाद लखनऊ और दिल्ली दरबार ख़त्म हो चुके थे, और संस्कृति तार-तार होने के कगार पर थी। रामपुर रियासत के नवाब यूसुफ़ अली ख़ां, नवाब कल्बे अली ख़ां, नवाब हामिद अली ख़ां और नवाब रज़ा अली ख़ां के दौरे हुकूमत में खासतौर पर फ़नकारों की हौसला अफ़ज़ाई हुई।

हिन्दुस्तानी संगीत की गुरु शिष्य परंपरा को कायम रखने में रामपुर दरबार ने अहम रोल अदा किया। पं० रवि शंकर और निखिल बनर्जी के सितार, अली अकबर ख़ां और अमजद अली ख़ां के सरोद की झंकारें ज़मीनी तौर पर रामपुर रियासत के दौर के नवाबों और उस्तादों से जुड़ी हैं। इन लोगों के गुरु उस्ताद अलाउद्दीन खां ने बरसों रामपुर में अपने गुरुओं से संगीत साधना सीखी। इसी तरह पदम विभूषण पंडित बिरजू महाराज के गुरु, पिता पं. अच्छन महाराज और चाचा लच्छू महाराज रामपुर दरबार के सुप्रसिद्ध कत्थक नृतक थे।

चाचा लच्छू और शंभू महाराज ने पाला
पंडित बिरजू महाराज का जन्म 4 फ़रवरी, 1938 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश के ‘कालका बिन्दादीन घराने’ में हुआ था। पहले उनका नाम ‘दुखहरण’ रखा गया था, जो बाद में बदल कर ‘बृजमोहन नाथ मिश्रा’ हुआ। इनके पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो ‘लखनऊ घराने’ से थे और अच्छन महाराज के नाम से जाने जाते थे। बिरजू महाराज महज तीन साल की उम्र के थे तब ही पिता अच्छन महाराज के साथ रामपुर आ गए। इसके बाद वह चाचा लच्छू महाराज के साथ रामपुर में ही चुपशाह मियां की मजार के पास एक मकान में कई साल रहे।

पिता और चाचा बचपन से ही बिरजू में प्रतिभा देखने लगे थे। इसी को देखते हुए बचपन से ही कला दीक्षा देनी शुरू कर दी। पिता की मृत्यु के बाद उनके चाचाओं, सुप्रसिद्ध आचार्यों शंभू और लच्छू महाराज ने उन्हें प्रशिक्षित किया। कला के सहारे ही बिरजू महाराज को लक्ष्मी मिलती रही। उनके सिर से पिता का साया उस समय उठा, जब वह महज नौ साल के थे। इस तरह करीब सात- आठ साल वह रामपुर में रहे। इसके बाद बिरजू महाराज ने मात्र 13 वर्ष की आयु में नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था।

जिस घर में रहे उसकी चौखट और दीवारों चूमा था…
बिरजू महाराज तीन वर्ष की आयु से करीब 10-11 वर्ष तक की उम्र तक रामपुर में ही चुपशाह मियां की ज्यारत के पास बने पुराने मकान में रहे। उन्होंने 2006 में रामपुर आगमन पर इसका खुद जिक्र किया था। वह अपने पुराने उस मकान को भी देखने गए जहां उनका बचपन बीता था। उन्होंने भरे मन और भीगी आंखों से उस मकान की टूटी दीवारों और मिट्टी को चूमा, चौखट को चूमा। कुछ वक्त वहीं बिताया। इस दृश्य को देखकर साथ में गईं आकाशवाणी की तत्कालीन कार्यक्रम अधिकारी और मौजूदा निदेशक मंदीप कौर भी भावुक हो गई थीं।

मंच कमजोर था, इसलिए नहीं दी प्रस्तुति…
रजा लाइब्रेरी के कार्यक्रम में बिरजू महाराज को अपने नृत्य की प्रस्तुति भी देनी थी। लेकिन उन्होंने पहले मंच पर चढ़कर पैर को पटककर देखा, इसके बाद प्रस्तुति देने से मना कर दिया था। लकड़ी के तख्तों से बने मंच को कमजोर बताया था, कत्थक नृत्य की प्रस्तुति से मंच टूट सकता था, इसलिए वह बिना प्रस्तुति दिए ही दिल्ली चले गए थे। रजा लाइब्रेरी के मीडिया प्रभारी हिमांशु सिंह कहते हैं, कत्थक नृत्य की प्रस्तुति नहीं होने से दर्शक निराश हुए थे।

रामपुर से देशभर के संगीतज्ञों का रिश्ता था। बिरजू महाराज के पिता पंडित अच्छन महाराज, चाचा लच्छू महाराज रामपुर दरबार के सुप्रसिद्ध नर्तक रहे थे। बिरजू महाराज का रामपुर में बचपन बीता था। रामपुर रियासत में संगीत सम्राटों को संरक्षण दिया था।
– नफीस सिद्धीकी, इतिहासकार (रामपुर दरबार का संगीत और नवाबी रस्में किताब के लेखक)