पीएम मोदी लेकर आएंगे पूरब में तरक्की और खुशहाली का ‘मंगल’ सवेरा
गोरखपुर। पिछड़ेपन और बीमारू क्षेत्र की छवि से बाहर निकलने को बेताब पूर्वांचल के बाशिंदों के लिये मंगलवार की सुबह उम्मीद की किरण लेकर आयी है। जहां अब से कुछ देर बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों गोरखपुर खाद कारखाना और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) समेत करीब दस हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का …
गोरखपुर। पिछड़ेपन और बीमारू क्षेत्र की छवि से बाहर निकलने को बेताब पूर्वांचल के बाशिंदों के लिये मंगलवार की सुबह उम्मीद की किरण लेकर आयी है। जहां अब से कुछ देर बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों गोरखपुर खाद कारखाना और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) समेत करीब दस हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं का लोकार्पण किया जायेगा। वहीं, आधा दशक पहले तक पूर्वी उत्तर प्रदेश पिछड़े और बीमारू क्षेत्र के तौर पर देश दुनिया में जाना जाता था।
गोरखपुर-बस्ती मंडल के लोगों के इलाज के लिए उम्मीद की एकमात्र किरण बीआरडी मेडिकल कॉलेज सात जिलों की इतनी बड़ी आबादी का बोझ संभालते- संभालते खुद बीमार हो चला था। पर ये बातें अब अतीत के पन्नों में सिमट चुकी हैं। वर्ष 2017 से चिकित्सा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में इस अंचल में आया परिवर्तन कभी-कभी अकल्पनीय सा लगता है। इन दो मंडलों में अब चार मेडिकल कॉलेज जनता की सेवा में हैं, एक का शिलान्यास हो चुका है जबकि बाकी दो जिलों के लिए भी कार्ययोजना बन रही है और सबसे बड़ी बात कि विश्व स्तरीय व विशेषज्ञ चिकित्सा सुविधा वाले एम्स की भी सौगात के साथ पूरब में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं का नया सूर्योदय हुआ है। एम्स के अलावा प्रधानमंत्री पिछले तीन दशकों से बंद पड़े गोरखपुर खाद कारखाने का उदघाटन करेंगे।
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करीब 8600 करोड़ रुपये की लागत से तैयार खाद कारखाने के अस्तित्व में आने से देश में खाद की कमी को दूर करने के साथ ही आयात पर भी निर्भरता कम होगी और हजारों लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के अवसर मिलेंगे। वर्ष 1969 में भारतीय खाद निगम लिमिटेड की गोरखपुर इकाई को शुरू किया गया था। मगर लगातार घाटा, तकनीकी व वित्तीय समस्याओं और नेप्था की बढ़ती कीमतों का हवाला देते हुये 1990 में यह कारखाना बंद कर दिया गया था। वहीं, मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर खाद कारखाने के पुनरूद्धार का मुद्दा उठाया था और सत्ता संभालने के बाद इस कारखाने को फिर से चालू कराने की पहल करते हुये 2016 में इस कारखाने का शिलान्यास किया था।
महज पांच साल की अल्प अवधि में उत्पादन के लिये तैयार खाद कारखाना पूर्वांचल की तस्वीर बदलने को उतावला दिख रहा है। खाद कारखाने पूर्वांचल के अलावा पड़ोसी राज्य बिहार में भी खाद की कमी को पूरा करेगा। संयंत्र छोटे और मझोले उद्योगों के विकास में मदद करने के साथ घरेलू बाजार में खाद की उपलब्धता और कीमतों के स्थायित्व में अहम योगदान देगा। देश में यूरिया की वार्षिक मांग करीब 350 लाख टन है। जबकि घरेलू उत्पादन 250 लाख टन प्रति वर्ष है, जिसके चलते हर साल लगभग 100 लाख टन यूरिया का आयात करना पडता है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में सत्ता सभालने के बाद इस दिशा में अहम पहल करते हुये गोरखपुर, बिहार में बरौनी, झारखंड में सिंदरी, तेलंगाना में रामागुनदाम और उड़ीसा में तलझेर में खाद कारखानों के पुनरूद्धार का बीड़ा उठाया था। जिससे 60 लाख टन यूरिया की कमी पूरी हो सकेगी और आयात पर निर्भरता में कमी लाने के साथ विदेशी मुद्रा की भी बचत हो सकेगी।