लखीमपुर-खीरी: अफसरों की अनदेखी, फाइलों में कैद होकर रह गईं ग्राम सुरक्षा समितियां

लखीमपुर-खीरी: अफसरों की अनदेखी, फाइलों में कैद होकर रह गईं ग्राम सुरक्षा समितियां

लखीमपुर-खीरी, अमृतविचार। अपराधों पर अंकुश लगाने और अपराधियों की निगरानी के लिए पुलिस के लिए बेहतर अस्त्र बनी ग्राम सुरक्षा समितियां अफसरों की अनदेखी के कारण परवान नहीं चढ़ सकीं। यह समितियां अफसरों की अनदेखी के कारण थानों की फाइलों में कैद होकर रह गई हैं। इन समितियों के क्रियाशील न होने से गांवों में …

लखीमपुर-खीरी, अमृतविचार। अपराधों पर अंकुश लगाने और अपराधियों की निगरानी के लिए पुलिस के लिए बेहतर अस्त्र बनी ग्राम सुरक्षा समितियां अफसरों की अनदेखी के कारण परवान नहीं चढ़ सकीं। यह समितियां अफसरों की अनदेखी के कारण थानों की फाइलों में कैद होकर रह गई हैं। इन समितियों के क्रियाशील न होने से गांवों में होने वाले छोटे-छोटे अपराध बड़ा रूप ले रहे हैं। आज से दो दशक पहले गांवों में पुलिस का मुखबिरों का जाल होता था। इससे पुलिस को छोटे-छोटे अपराधों और अपराधियों के बारे में जानकारी मलती थी और वह अपराधियों को समय रहते पकड़ लेती थी।

इतना ही नहीं गांव में आने वाले संदिग्ध और अपराधी भी पुलिस की नजर में रहते थे। इससे पुलिस का अपराधों पर काफी हद तक अंकुश रहता था, लेकिन पुलिस व्यवस्था हाईटेक होते ही धीरे-धीरे पुलिस और पब्लिक के बीच दूरी बढ़ने लगी और पुलिस का गांवों से मुखबिरों का जाल भी कम होता चला गया।

हालांकि मुखबिरों के कम होने के पीछे अन्य भी कई वजहें भी रहीं। मसलन कुछ पुलिसकर्मयों ने अपने आर्थिक लाभ के लिए कहीं मुखबिरों के नाम का खुलासा कर दिया तो कहीं जरूरत करने पर मुखबिर की मदद नहीं की, बल्कि उसे भी पुलिस के उत्पीड़न का शिकार बनना पड़ा। इससे मुखबिरों का विश्वास पुलिस से उठ गया और उन्होंने पुलिस के लिए काम करना बंद कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि गांवों से लेकर शहरों तक पुलिस का अपना कोई मुखबिर तंत्र नहीं है।

पुलिस-पब्लिक के बीच दूरियां कम करने की थी पहल
पब्लिक से बढ़ी दूरियां कम करने के लिए डीजीपी स्तर से कम्युनिटिंग पुलिसिंग पर काफी जोर दिया जा रहा है। इसी को लेकर करीब चार साल पहले सभी थानों पर ग्राम सुरक्षा समितियों का गठन किया गया था। इसके पीछे शासन की मंशा यह थी कि इससे पुलिस-पब्लिक के बीच जो दूरी बढ़ी है। वह कम होगी और पुलिस का गांव में अपना नेटवर्क होगा। इससे अपराधों और अपराधियों पर अंकुश लग सकेगा। गांव में छोटे-छोटे विवाद और अपराधिक गतिविधियों पर भी पुलिस की नजर रहेगी, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण यह समितियां कागजों में ही कैद होकर रह गई हैं।

अब नहीं होती हर महीने बैठक
दो साल पहले तत्कालीन एसपी पूनम ने कंम्युनिटिंग पुलिसिंग पर जोर दिया था और ग्राम सुरक्षा समितियों को सक्रिय किया था। डीजीपी स्तर से आदेश थे कि इन समितियों की पर माह थानों पर बैठक होगी, जिसमें सुरक्षा को लेकर विचार-विमर्श होगा और आने वाले सुझावों पर पुलिस अमल करेगी, लेकिन थाना स्तर पर अपेक्षित सहयोग न मिलने और हर महीने बैठक न होने के कारण यह समितियां कुछ ही दिन सक्रिय रहीं थीं। तब से किसी अफसर ने कोई सुधि नहीं ली।

गंभीर मसलों पर रहती थी पुलिस की नजर
ग्राम सुरक्षा समितियां जब गठित हुई तो शुरुआती दौर में अच्छे परिणाम भी सामने आए थे। समितियां छोटे-छोटे मामलों पर होने वाली रंजिश के बारे में जानकारी रखती थीं और इसकी सूचना भी पुलिस को देती थीं। समय से मामला संज्ञान में आने पर पुलिस या तो मामले को आपसी सुलह समझौते से निपटा देती थी या फिर काबू कर लेती थी। इससे बड़ी वारदात होने से बच जाती थी, लेकिन ग्राम सुरक्षा समितियों के क्रियाशील न होने के कारण अब घटना की संभावित सूचना और न ही घटना के तत्काल बाद कोई सूचना पुलिस को आसानी से नहीं मिल पाती है।

ग्राम सुरक्षा समितियों की समीक्षा की जाएगी। यदि ग्राम सुरक्षा समितियां निष्क्रिय हैं तो उन्हें सक्रिय किया जाएगा। -संजीव सुमन एसपी