बरेली: 76 वें उर्स-ए-वामिकी का कुल की रस्म से समापन

बरेली: 76 वें उर्स-ए-वामिकी का कुल की रस्म से समापन

बरेली, अमृत विचार। दरगाह आले रसूल, खानकाहे वामिकिया निशातिया में के उर्स तीसरे और अंतिम दिन की शुरूआत सुबह कुरानख्वानी से हुई। तिलावते कुरान हाफिज मुजाहिद वमिकी ने किया। इसके बाद कमाले निशात वमिकी, जीशान वामिकी ने नातो मकबत का नजराना पेश किया और फिर उलेमा की तकरीर हुई। बदरे तरीकत मौलाना सैयद असलम मियां …

बरेली, अमृत विचार। दरगाह आले रसूल, खानकाहे वामिकिया निशातिया में के उर्स तीसरे और अंतिम दिन की शुरूआत सुबह कुरानख्वानी से हुई। तिलावते कुरान हाफिज मुजाहिद वमिकी ने किया। इसके बाद कमाले निशात वमिकी, जीशान वामिकी ने नातो मकबत का नजराना पेश किया और फिर उलेमा की तकरीर हुई।

बदरे तरीकत मौलाना सैयद असलम मियां वामिकी ने खिताब करते हुये कहा कि पैगंबरे इस्लाम के बताए हुए रास्ते पर अमल करते हुए दरगाहों और खानकाहों में सूफियों ने इंसानियत के तकाजे को समझा। उन्होनें कहा कि भूखे को खाना खिलाना बेहतरीन इबादत। हजरत वामिक मियां ने पूरी जिंदगी इस पर अच्छे से अमल किया। खुसूसी खिताब में डा. महमूद हुसैन प्रोफेसर बरेली कालेज ने कहा के खानकाह इसलिए बनाई गईं क्योंकि एक दूसरे के धार्मिक स्थलों पर कोई जाना नहीं चाहता। लोग आपस में मिलजुल कर रहे इसलिए सूफी संतों ने खानकाहें कायम की। जहां हर वर्ग का व्यक्ति जा सकता है।

वामिक मियां ने इसी खानकाह में कुरान का आसान उर्दू अनुवाद किया। इसके अलावा मुफ्ती फईम सकलैनी अजहरी ककराला ने भी तकरीर की। इसके बाद ठीक 1 बजे कुल शरीफ की रस्म अदा हुई और फिर मुल्क के लिए दुआ की गई।

मीडिया प्रभारी जावेद कुरैशी ने बताया कि इस साल मखदूम जादा सैयद जफर इकबाल अशरफी ने इंग्लैंड से आकर उर्स में शिरकत कर खुसूसी तकरीर की। इस दौरान जफर बेग, हाफिज अलाउद्दीन, फरहान चिश्ती, उस्मान चमन, सैयद चांद मियां, मीराज साबरी, कारी यासीन, शहर इमाम कालपी शरीफ मौलाना इरशाद अशरफी आदि मौजूद रहे।