आज यूं करें भगवान कृष्ण का नामकरण, मिलेगा शुभ फल

आज यूं करें भगवान कृष्ण का नामकरण, मिलेगा शुभ फल

भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी के छठे दिन उनकी छठी मनाई जाने की भी परंपरा है। यह पूजन बिल्कुल अपने बच्चे की छठी की तरह ही किया जाता है। जो भी लोग जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण का जन्म करवाते हैं और विधि पूर्वक लड्डू गोपाल का पूजन करते हैं वो जन्माष्टमी के छठे दिन कृष्ण …

भगवान कृष्ण की जन्माष्टमी के छठे दिन उनकी छठी मनाई जाने की भी परंपरा है। यह पूजन बिल्कुल अपने बच्चे की छठी की तरह ही किया जाता है। जो भी लोग जन्माष्टमी के दिन भगवान कृष्ण का जन्म करवाते हैं और विधि पूर्वक लड्डू गोपाल का पूजन करते हैं वो जन्माष्टमी के छठे दिन कृष्ण छठी का भी पूजन करते हैं। इस दिन लोग कढ़ी-चावल बनाया जाता हैं। लड्डू गोपाल को स्नान करवा के पीले रंग के वस्त्र पहनाते हैं और माखन-मिश्री का भोग लगाते हैं।  इस दिन भगवान का नाम करण भी किया जाता है।

छठी की पूजा
जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर लड्डू गोपाल का को पंचामृत से स्नान करना चाहिए। इसके लिए लड्डू गोपाल को एक पात्र में रख कर बारी-बारी से दूध, दही, घी, शहद और गंगा जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद उन्हें नये वस्त्र पहनाकर लाल रंग के आसन पर स्थापित करें। इसके बाद भगवान को रोली या पीले चंदन से टीका लगा कर, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। भगवान कृष्ण को माखन मिश्री का भोग लगाएं और तुलसी दल जरूर चढ़ाएं।

यूं करें नामकरण
मान्यता है कि भगवान कृष्ण का नामकरण छठी के दिन किया जाता है। परंपरा है कि भगवान कृष्ण के अंनत नामों कृष्ण, मोहन, नंदलाल, यशोदानंदन, देवकीनंदन, मुरारी आदि में से कोई एक प्रिय नाम चुन कर इस नाम से ही उन्हें बुलाना चाहिए। इस दिन घर में खाने के लिए कढ़ी चावल खाना शुभ माना जाता है। इस दिन आपको भी पीले वस्त्र ही पहनने चाहिए, भगवान कृष्ण को पीला रंग विशेष रूप से प्रिय है। भगवान कृष्ण की छठी का पूजन करने से जन्माष्टमी की पूजा पूरी होती है तथा आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

क्यों मनाते हैं छठी
श्री कृष्ण का जन्म कारगार में हुआ था और उन्हें वासुदेव ने रातों-रात की यशोदा के घर छोड़ दिया था. कंस को जब ये बात पता लगती है तो वे पूतना को मारने के लिए गोकुल यशोदा के पास भेजता है। और ये आदेश देता है कि गोकुल में जितने भी 6 दिन के बच्चे हैं उन्हें मार दिया जाए। पूतना के गोकुल पहुंचते ही यशोदा बालकृष्ण को छिपा देती हैं। श्री कृष्ण को पैदा हुए छह दिन हो गए थे, लेकिन उनकी छठी नहीं हो पाई थी। तब तक उनका नामकरण भी नहीं हो पाया था। इसके बाद यशोदा ने 364 दिन बाद सप्तमी को छठी पूजन किया और तभी से कृष्ण की छठी मनाई जाने लगी। इतना ही नहीं, तभी से बच्चों की भी छठी की परंपरा शुरू हो गई।

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