जल संसाधनों को समवर्ती सूची में लाए बिना नहीं मिलेगी बाढ़ से निजात

संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। देश के विभिन्न हिस्सों में आने वाली बाढ़ पर प्रभावी नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार काफी समय से जल संसाधन विकास को समवर्ती सूची में लाने तथा नदी थालों के एकीकृत प्रबंधन के लिए डूब क्षेत्रों के सीमांकन की पैरवी कर रहा है। लेकिन बहुत कम राज्यों ने इस …
संजय सिंह, नई दिल्ली, अमृत विचार। देश के विभिन्न हिस्सों में आने वाली बाढ़ पर प्रभावी नियंत्रण के लिए केंद्र सरकार काफी समय से जल संसाधन विकास को समवर्ती सूची में लाने तथा नदी थालों के एकीकृत प्रबंधन के लिए डूब क्षेत्रों के सीमांकन की पैरवी कर रहा है। लेकिन बहुत कम राज्यों ने इस पर अमल किया है। नतीजतन उन्हें बाढ़ की भयंकर विभीषिका का सामना करना पड़ रहा है।
पहले असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश व केरल के चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित रहने वाली बाढ़ ने अब राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब और जम्मू-कश्मीर जैसे नए क्षेत्रों को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। मौजूदा संवैधानिक व्यवस्थाएं इस नई समस्या से निपटने के लिए नाकाफी साबित हो रही हैं।
बाढ़ नित नए इलाकों में अपने पांव पसारती जा रही है उससे स्पष्ट है कि राज्य सरकारें अपनी भूमिका का उचित ढंग से निर्वाह नहीं कर रही हैं। परिणामस्वरूप नदियों के किनारे अवैध निर्माण, अतिक्रमण व मलबा निस्तारण की गतिविधियों में जबरदस्त इजाफा हुआ है। इससे नदियों के मार्ग अवरुद्ध हुए हैं और रास्ता बदलने से भारी बारिश के वक्त नदियों का पानी बाढ़ का रूप धर थाला क्षेत्रों से आगे गांवों, कस्बों और शहरों में प्रवेश करने लगा है।
जल शक्ति मंत्रालय इस स्थिति को काफी पहले भांप चुका था। उसने राज्य सरकारों को निरंतर इस बात के प्रति आगाह किया है कि यदि नदी थालों में विकासात्मक गतिविधियों को नियंत्रित नहीं किया गया तो भविष्य में बाढ़ विनाशकारी रूप ले सकती है। इससे बचने के लिए जल शक्ति मंत्रालय ने राज्यों को ‘डूब क्षेत्रों की पहचान कर उनका सीमांकन करने तथा वहां विकास कार्यों पर अंकुश लगाने को कहा था।
इस संबंध में एक विधेयक का मसौदा भी राज्यों को वितरित किया गया था। लेकिन सभी राज्यों की सहमति के बावजूद केवल उत्तराखंड, राजस्थान, जम्मू व कश्मीर तथा मणिपुर ने अपने यहां कानून पारित कराए हैं। जबकि बाकी राज्य उदासीन हैं। सूची के अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा जैसे वे राज्य शामिल हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है।
जहां तक केंद्र के स्तर पर उठाए गए कदमों का प्रश्न है तो बांध सुरक्षा बिल, 2019 को पहले ही संसद से पारित कराया जा चुका है। जबकि नदी बेसिनों के एकीकृत प्रबंधन के लिए नदी बेसिन प्रबंधन विधेयक लाने की भी तैयारी है। इसमें विभिन्न नदी बेसिनों के लिए 13 प्राधिकरणों की स्थापना का प्रस्ताव है। मौजूदा आपदा प्रबंधन अधिनियम केंद्र सरकार को बाढ़ नियंत्रण के लिए राज्यों को आवश्यक निर्देश व मदद प्रदान करने भर का अधिकार देता है। मदद के तहत ग्यारहवीं योजना से लेकर अब तक केंद्र सरकार ‘बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम’ के तहत 522 परियोजनाओं के लिए राज्यों को 13,238 करोड़ रुपये की मदद प्रदान कर चुकी है। इनमें 414 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं।
उप्र एवं उत्तराखंड में बाढ़ प्रबंधन
गंगा नदी से सटे इलाकों को बाढ़ से बचाने के लिए केंद्र सरकार ने 2017 में केंद्रीय जल आयोग के चेयरमैन की अध्यक्षता में हरिद्वार से उन्नाव के बीच के डूब क्षेत्रों की पहचान एवं सीमांकन के लिए एक समिति का गठन किया था। समिति ने सितंबर, 2019 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में गंगा के डूब क्षेत्रों को दो भागों में विभाजित करते हुए कुछ क्षत्रों में किसी भी तरह की विकासात्मक गतिविधि की अनुमति न देने, जबकि कुछ क्षेत्रों में केवल नियंत्रित व सीमित विकास की अनुमति देने का सुझाव दिया था। समिति की सिफारिशों पर उत्तर प्रदेश सरकार ने गंगा के डूब क्षेत्रों के सीमांकन की प्रक्रिया शुरू कर दी है। जबकि उत्तराखंड पहले ही कानून बनाकर उत्तरकाशी और हरिद्वार जिलों में अनुमत एवं प्रतिबंधित विकास वाले क्षेत्रों की सूची भी जारी कर चुका है।