जब अंग्रेज 133 साल पहले लाना चाहते थे नैनीताल में रेल योजना…

जब अंग्रेज 133 साल पहले लाना चाहते थे नैनीताल में रेल योजना…

1889 तक नैनीताल नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस का एक महत्वपूर्ण नगर बन चुका था। पर नैनीताल आने-जाने के लिये यातायात की किफायती और आरामदायक व्यवस्था अभी तक नहीं हो सकी थी। यातायात के लिये बैलगाड़ी,तांगे, और इक्कों का ही सहारा था। तब ये साधन भी ब्रेबरी तक ही उपलब्ध थे। घोड़े से या फिर पदल ही …

1889 तक नैनीताल नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेस का एक महत्वपूर्ण नगर बन चुका था। पर नैनीताल आने-जाने के लिये यातायात की किफायती और आरामदायक व्यवस्था अभी तक नहीं हो सकी थी। यातायात के लिये बैलगाड़ी,तांगे, और इक्कों का ही सहारा था। तब ये साधन भी ब्रेबरी तक ही उपलब्ध थे। घोड़े से या फिर पदल ही नैनीताल आया जा सकता था। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने आज से 133 साल पहले नैनीताल तक रेल पहुँचाने का सपना संजो लिया था। 24 अक्टूबर,1884 को काठगोदाम तक रेल आ गई थी। इससे पहले 1881 में अंग्रेज शिमला और दार्जिलिंग तक रेल पहुँचा चुके थे। दो वर्ष की अल्पावधि में सफलतापूर्वक दार्जिलिंग तक रेलवे बिछा कर ट्रेन चलाने से उत्साहित अंग्रेज अपने पसंदीदा हिल स्टेशन नैनीताल को भी रेलवे से जोड़ने के लिए आतुर थे।

जैसे के आप जानते है कि ब्रेबरी से डांडी, झम्पानी,घोड़े या फिर पैदल ही नैनीताल आया-जाया जा सकता था। इन साधनों से यात्रा करना कई लोगों के लिए बहुत तकलीफ़देह था ।सामान लाने और ले जाने के लिए कुलियों के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं था। ढुलाई की दरें बहुत ज्यादा थीं।दूसरी बड़ी समस्या सड़कों की थी। मानसून के मौसम में कार्ट रोड़ यातायात के योग्य नहीं रहती थी। बरसात में भू-स्खलन के कारण कार्ट रोड़ अक्सर बाधित हो जाती थी। यातायात की इस समस्या से निपटने के लिए अंग्रेज 1889 में शिमला और दार्जिलिंग की तर्ज पर नैनीताल में विद्युत संचालित रेलवे व्यवस्था कायम करने की दिशा में विचार करने लगे थे।

काठगोदाम से नैनीताल तक रेल की पटरियाँ बिछाने के लिए कर्नल सी.एस. थॉमसन की देख- रेख में 1889 में पहला सर्वे हुआ। अगस्त,1889 में कर्नल थॉमसन ने पहली बार नैनीताल रेल योजना का प्रस्ताव तैयार कर सरकार को दिया। कर्नल थॉमसन लोक निर्माण विभाग के पूर्व अधिकारी थे,बाद में उन्हें जनरल की पदवी दे दी गई थी।कर्नल थॉमसन की शुरुआती योजना पानी की शक्ति से उत्पादित बिजली चालित रेल चलाने की थी। योजना के अंतर्गत काठगोदाम से नैनीताल तक ढ़ाई फिट गेज की चौदह मील लंबी रेल लाइन बिछाई जानी थी। रेलवे लाइन का सर्वे हो चुका था।बाकायदा मानचित्र बन गया था। शुरुआत में इसे ट्राम -वे नाम दिया गया था।

प्रस्तावित रेल की न्यूनतम वहन क्षमता प्रतिदिन पचास टन सामान, अपर क्लास में तीस और लोअर क्लास में एक सौ यात्रियों की क्षमता तय की गई थी।रेल की औसत रफ़्तार आठ मील प्रतिघंटा निर्धारित की गई थी।काठगोदाम से ब्रेबरी वाया चढ़ता होते हुए रेल लाइन बिछाई जानी थी।गांजा और नैकाणा गाँव में एक लाख चार हजार रुपए लागत से दो सुरंगें बनाने का प्रस्ताव था।रेल को ऊपर चढ़ने में सहायता करने के लिए तीन लिफ्टें बननी थीं।लिफ्टों में प्रतिभार के लिए पानी का उपयोग किया जाना प्रस्तावित था।

24 मई,1890 को कर्नल सी.एस. थॉमसन ने भाप से चलने वाली रेल का प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेजा। लेकिन सरकार ने इस प्रस्ताव को तवज्जो नहीं दी। 11अक्टूबर,1890 को कुमाऊँ के तत्कालीन कमिश्नर कर्नल जी.एस. एरस्काइन ने कर्नल थॉमसन को पत्र भेजकर फ़िलहाल काठगोदाम से नैनीताल रेलवे योजना को सरकार से आर्थिक सहायता प्रदान करने में असमर्थता व्यक्त कर दी थी।

1नवंबर,1890 को नैनीताल प्रोपराइटर्स एसोसिएशन ने फ्लीडवुड विलियम्स की अध्यक्षता में बैठक की। बैठक में नैनीताल रेलवे योजना को लटकाने की तीखी आलोचना की गई। कहा गया कि कश्मीर में रेलवे योजना स्वीकृत हो गई है, लेकिन नैनीताल प्रतीक्षा कर रहा है। एसोसिएशन का कहना था कि भारत में नैनीताल ही एक ऐसी जगह है, जहाँ साल में छह महीने अंग्रेज सकून के साथ रह सकते हैं।

नैनीताल प्रोपराइटर्स एसोसिएशन का दबाव काम आया। नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेज एंड अवध (इलाहाबाद) के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने नैनीताल रेलवे योजना पर पुनर्विचार करने पर सहमति व्यक्त कर दी।इसी बीच नैनीताल- काठगोदाम रेल लाइन बिछाने के लिए ‘रुहेलखंड एंड कुमाऊँ रेलवे कंपनी’ बन गई।नैनीताल रेलव योजना के लिए 1892 में तांगा पड़ाव (दो गाँव) में स्थानीय निवासी नंदन सिंह, खड़क सिंह और लछम सिंह की साढ़े अठ्ठारह नाली जमीन अधिगृहित कर रुहेलखंड एंड कुमाऊँ रेलवे कंपनी को दे दी गई। इससे पहले भी दो गाँव में नैनीताल रेलवे के लिए कंपनी को पौने तीन एकड़ जमीन दी जा चुकी थी।

काठगोदाम से नैनीताल तक बिजली संचालित रेलवे योजना पर मेजर जनरल सी.एस. थॉमसन की रिपोर्ट के आधार पर नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेज एंड अवध के पीडब्ल्यूडी सचिव जे.जी.एच. ग्लास ने 7 जुलाई,1893 को प्रोविंसेज के लेफ्टिनेंट गवर्नर को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजी। रिपोर्ट में कहा गया कि रेलवे योजना के पीछे विचार यह है कि दार्जिलिंग और शिमला की तर्ज पर यहाँ भी रेल लाइन बिछाई जाए।

तत्कालीन ब्रिटिश सरकार का मत था कि नैनीताल के आसपास असीमित पानी उपलब्ध है, इसे बिजली उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। भाप के बजाय नैनीताल के लिए विद्युत संचालित रेल चलाई जा सकती है।सुझाव दिया गया कि चड़ता गाँव में बिजली प्रौद्योगिकी स्कूल खोला जा सकता है। चड़ता की जलवायु रुड़की से कहीं बेहतर है। योजना थी कि इस स्कूल को सहायता प्राप्त सरकारी स्कूल के रूप में थॉमसन कॉलेज से संबद्ध किया जाए।स्कूल की मुख्य शाखा नैनीताल में हो। चड़ता गाँव में विद्युत कार्यशाला खोली जाए। किताबी ज्ञान नैनीताल में और तकनीकी एवं व्यावहारिक ज्ञान चड़ता गाँव की प्रस्तावित विद्युत कार्यशाला में दिया जाए।

नैनीताल के रेलवे की मीटर गेज लाइन में दस लाख रुपए खर्च होने का अनुमान था। रेलवे लाइन में तीस हजार रुपये प्रति मील का खर्च आ रहा था, जबकि मोटर मार्ग के निर्माण की लागत बारह हजार रुपए प्रति मील आ रही थी।

नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंसेज एंड अवध के आला अधिकारियों का मानना था कि नैनीताल के लिए विद्युत संचालित रेल सेवा, ब्रिटिश सरकार की एक उपलब्धि होगी।प्रस्ताव था कि नैनीताल की झील को किसी किस्म की पर्यावरणीय क्षति पहुँचाए बिना बिजली उत्पादन के लिए झील से पानी लिया जाएगा। पानी के मूल्य का भुगतान रेलवे करेगी। तेज गर्मियों के दिनों भीमताल और सातताल झील का पानी सिचाई के लिए भाबर को दिया जाएगा।आवश्यकता पड़ने पर बाकी दिनों रेलवे भीमताल और सातताल की झीलों के पानी का भी उपयोग कर सकती है।

नैनीताल की झील से एक सीमा तक ही पानी लिया जाना संभव था।वैज्ञानिकों की राय थी कि नैनी झील का जल स्तर एक सीमा से अधिक कम होना नैनीताल की पहाड़ियों की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है। नैनीताल रेलवे के लिए काठगोदाम के पास खालसा नदी में पुल बनाने का प्रस्ताव था।रुहेलखंड एंड कुमाऊँ रेलवे बोर्ड भी इस प्रस्ताव पर सहमत हो गया था।

जनरल थॉमसन की राय थी कि चड़ता गाँव में रेलवे कर्मचारियों के लिए आवासीय कॉलोनी बनाई जाए। 11जुलाई,1893 को जनरल सी.एस. थॉमसन ने सरकार को भेजी अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि नैनीताल रेलवे की मूल योजना विद्युत संचालित रेल की है। योजना 1से 17 ग्रेडेंट में बनाई गई है। झील से हजारों फीट नीचे बेलुवाखान गाँव में बिजली स्टेशन बनाना प्रस्तावित है। कहा गया कि नैनीताल की झील से प्रति सेकेंड पाँच घन फिट यानी प्रति मिनट तीन सौ घन फिट पानी का निकास होता है।रेलवे को आठ घंटे काम करने के लिए प्रतिदिन साढ़े तीन सौ हॉर्स पावर बिजली की आवश्यकता होगी। इतनी बिजली इस पानी से आसानी से उत्पादित की जा सकती है।

1895 में नगर पालिका बोर्ड ने नैनीताल रेलवे योजना के लिए रुहेलखंड एंड कुमाऊँ रेलवे कंपनी को नैनीताल झील से पानी लेने की अनुमति दे दी थी। जनरल थॉमसन रेलवे योजना को लेकर नित नई रियायतों की माँग करते चले जा रहे थे। सरकार थॉमसन को मनमाफिक रियायतें देने को राजी नहीं थी।जनरल थॉमसन की जिद के चलते 1895 में नैनीताल रेलवे योजना ठंडे बस्ते के हवाले हो गई।

1908 में काठगोदाम- नैनीताल रेलवे का यह मुद्दा फिर उठा। इंग्लैंड के एक नागरिक मिस्टर शौ ने मार्च,1908 को इस संबंध में नगर पालिका को पत्र भेजा।नगर पालिका ने मिस्टर शौ के पत्र में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।इसके बाद वैश्विक स्तर पर राजनीतिक हालात बदले। 1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू हो गया।प्रथम विश्व युद्ध के बाद बदले वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में नैनीताल रेलवे योजना अंग्रेजों की प्राथमिकता में नहीं रहा।आजादी के बाद इस दिशा में सोचने की किसी को फुर्सत ही नहीं मिली।

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