इतिहास के पन्नों में दर्ज शेरशाह सूरी का मकबरा क्यों है खास, जानिए

इतिहास के पन्नों में दर्ज शेरशाह सूरी का मकबरा क्यों है खास, जानिए

भारत एक ऐसा देश है जहां विविधताएं देखने को मिलती हैं और यहां की अनेक संस्कृतियां इस देश की खूबसूरती को बयान करती हैं। वहीं इस देश में कई ऐसे मशहूर और पुराने मकबरे हैं, जिन्हें देखने के लिए हर किसी को जाना चाहिए। साथ ही, ये मकबरे समय के साथ पर्यटकों के लिए पसंदीदा …

भारत एक ऐसा देश है जहां विविधताएं देखने को मिलती हैं और यहां की अनेक संस्कृतियां इस देश की खूबसूरती को बयान करती हैं। वहीं इस देश में कई ऐसे मशहूर और पुराने मकबरे हैं, जिन्हें देखने के लिए हर किसी को जाना चाहिए। साथ ही, ये मकबरे समय के साथ पर्यटकों के लिए पसंदीदा स्थल बन गये हैं। बता दें मुगलों द्वारा बनवाए गए मकबरे बहुत खास हैं इसी में ही शेरशाह सूरी का मकबरा भी आता है, जो बेहद खास है। हज़ारों लोग इस मकबरे की खूबसूरती को देखने आते हैं। यह देखने में न सिर्फ बड़ा है बल्कि खूबसूरती ऐसी है कि इसका नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। तो चलिए आज जानते हैं शेर शाह सूरी के मकबरे के बारे में कुछ रोचक बातें।

माना जाता है शेरशाह सूरी का जन्म लगभग 1472 ईस्वी में हुआ था, जिन्हें बचपन में फरीद खां के नाम से पुकारा जाता था। हालांकि इसके जन्म वर्ष और जगह दोनों को लेकर मतभेद है कोई कहता है कि इनका जन्म 1486 ईस्वी में हुआ था। वह बहुत ही कुशल सैन्य, निर्भिक, बहादुर, बुद्धिमान व्यक्ति थे। उनके दादा का नाम इब्राहिम सूरी और पिता का नाम हसन खान सूरी, जो सुल्तान बहलोल लोदी के समय 1482 ईस्वी में अफगानिस्तान के सरगरी से रोजगार की तलाश में भारत आए थे।

भारत में उन्होंने महाबत खां सूरी व जमाल खां के यहां नौकरी की। फिर 1499 ई. में जमाल खां ने हसन खां को सासाराम (सासाराम) का जागीरदार बना दिया था। शेर शाह का बचपन यहीं बीता और वहां का जागीरदार भी बना था। फिर सन 1540 में हुमायूं को पराजित कर शेरशाह ने दिल्ली की गद्दी पर बैठ हिंदुस्तान पर लगभग 5 साल तक राज किया था।

बता दें शेरशाह सूरी एक पठान योद्धा था यानि वह पठान खानदान से ताल्लुक रखता था और मुगलों का बादशाह था। शेर शाह सूरी ने लगभग पांच साल 1540 से लेकर 1545 तक शासन किया था और साल 1545 में उनकी मृत्यु हो गई थी। अपनी हुकूमत के दौरान उन्होंने बिहार में शेरशाह सूरी नाम से एक मकबरा बनवाया था, जिसका वास्तुकार (बनाने वाला) अलीवाल खान है।

अलीवाल खान ने लाल बलुआ पत्थर से इस मकबरे का निर्माण किया था। यह मकबरा भारतीय-इस्लामिक शैली में निर्मित किया गया है, जो झील के बीचो-बीच स्थित है। इस मकबरे की यही खूबसूरती लोगों को काफी आकर्षित करती है। इसलिए लोग दूर-दूर से इस मकबरे को देखने आते हैं।

मुगल साम्राज्य ने भारत के मुस्लिम लोगों को क़ब्रों की निर्माण शैली से परिचित भी कराया। इसलिए मुगल साम्राज्य में बनवाए गए तमाम मकबरे में कब्रें भी बनाई गई हैं। इस मकबरे के भीतर भी लगभग 24 कब्रें हैं और बादशाह शेर शाह सूरी की कब्र मकबरे बीच में है। इतिहास के अनुसार कालिंजर से बादशाह के शव को लाकर मकबरे के ठीक बीच में दफनाया गया था। तभी से लेकर आजतक वहां बादशाह की कब्र मौजूद है। इसके अलावा, इसकी कब्र के पास ही उसके करीबी अधिकारियों और परिवार के सभी सदस्यों की कब्र मौजूद है। बता दें हजारों लोग इस मकबरे की खूबसूरती को दूर-दूर से देखने आते हैं।

अगर हम इसकी खूबसूरती के साथ वास्तुकला की बात करें, तो यह मकबरा तीन मंजिला बना हुआ है और यह ऊपर से कंगूरेदार मुंडेर से घिरा है। मकबरे के अंदर दक्षिण-पूर्वी दिशा के गलियारे से सीढ़ियां भी बनाई गई हैं ताकि आसानी से ऊपर नीचे किया जा सके। इसके अलावा, मकबरे के मुख्य गुम्बद के चारों ओर अष्टभुज के किनारों पर आठ स्तंभ वाले गुम्बद बनाए गए हैं। दीवारों और गुम्बद के भीतरी भाग को कुरान के शिलालेखों से भी उकेरा गया है।

साथ ही, उन्हें सुंदर और रुचिपूर्ण पुष्प डिजाइनों से भी सजाया गया है। अगर इस मकबरे की ऊंचाई की बात करें तो इस मकबरे की ऊंचाई चबूतरे के ऊपर से कुल 120 फीट है और पानी से इसकी ऊंचाई लगभग 150 फीट है। साथ ही, इस मकबरे की नक्काशी व शिल्पकला पर्यटकों को अफगान स्थापत्य कला की जानकारी देती है।

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