नज़ीर अकबराबादी
साहित्य 

चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी

चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी सुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी बनी है गो कि नादिर ख़ूब हर सरदार की राखी सलोनों में अजब रंगीं है उस दिलदार की राखी न पहुँचे एक गुल को यार जिस गुलज़ार की राखी अयाँ है अब तो राखी भी चमन भी …
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