बरेली: कोविड मरीजों की न केवल भूख मिटाई, बल्कि जीने की ललक भी जगाई

बरेली, अमृत विचार। बुजुर्ग दंपत्ति और उसके दिव्यांग बच्चे के संक्रमित होने के बाद भूख से तड़प रहे इस परिवार की आह जब महानगर में रहने वाले मुनेंद्र गंगवार तक पहुंची तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने न केवल इस परिवार की मदद की, बल्कि इस महामारी में जूझ रहे सैकड़ों और परिवारों की मदद …
बरेली, अमृत विचार। बुजुर्ग दंपत्ति और उसके दिव्यांग बच्चे के संक्रमित होने के बाद भूख से तड़प रहे इस परिवार की आह जब महानगर में रहने वाले मुनेंद्र गंगवार तक पहुंची तो उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने न केवल इस परिवार की मदद की, बल्कि इस महामारी में जूझ रहे सैकड़ों और परिवारों की मदद का भी जिम्मा उठाया। उन्होंने ऐसे जरूरतमंदों के लिए हाथ बढ़ाया तो उनके साथ कारवां बढ़ता ही चला गया।
करीब दो महीने तक वे और उनसे जुड़े लोग बगैर किसी स्वार्थ के कोरोना मरीजों की मदद करते आ रहे हैं। अब तक करीब 2500 खाने की थाल लोगों तक पहुंचा चुके हैं। उनका कहना है कि वे मरीजों को फोन कर उनसे सकारात्मक बातें करते थे, ताकि उनके अंदर किसी तरह की घबराहट पैदा न हो। महामारी के भयंकर प्रकोप के बीच जब बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होकर होम आइसोलेशन में थे तो तमाम ऐसे भी परिवार थे, जिनके घर के सभी लोग पॉजिटिव हो जाने से उनके सामने खाने-पीने का संकट पैदा हो गया। खुद के संक्रमित होने के डर से पड़ोसी, रिश्तेदार भी उनकी मदद को आगे नहीं आ रहे थे।

बकौल, मुनेंद्र गंगवार कोरोना की दूसरी लहर फैलने के बाद आलमगिरीगंज में रहने वाले एक परिवार के बारे में जब उन्हें जानकारी मिली कि वहां एक बेहद बुजुर्ग दंपत्ति हैं। उनके साथ रहने वाला उनका दिव्यांग बेटा भी संक्रमित हो गया है। इस परिवार ने दो दिन से कुछ भी खाया नहीं है। इस घटना ने उन्हें अंदर से हिला कर रख दिया। उनका कहना है कि उन्होंने खुद जाकर इस परिवार को खाने खिलाने का जिम्मा लिया। इसके बाद उन्होंने अपने घर खाना बनाने के लिए दो महिला भी रखी। जिनसे उन्होंने होम आइसोलेशन में रहने वाले जरूरतमंद परिवारों के खाने का इंतजाम करना शुरू किया।
मुनेंद्र गंगवार ने जब अपनी फेसबुक पर इसको लेकर पोस्ट डाली तो पहले ही दिन से इसे लेकर काफी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। मुनेंद्र गंगवार की यह पहल शुरूआत में छोटी थी लेकिन बाद में संजीव जिंदल, प्रतीक पटेल, हरेंद्र सिंह रानू सहित तमाम लोग उनके साथ जुड़ते चले गए।
उन्होंने भी खाने की व्यवस्था करने सहित कोविड पीड़ित परिवारों के दरवाजे तक थाल पहुंचाने में पूरा सहयोग किया। करीब दो महीने की इस सेवा के दौरान उनके व उनके साथियों ने 2500 थाल की सेवा मरीजों के लिए की है। इसमें अकेल उन्होंने अपने घर से करीब 700 खाने की थाल बनवाकर भिजवाई हैं।
छोटी-छोटी मदद से हो गया बड़ा काम
कहते हैं कि छोटी मदद बहुत लोग मिलकर करें तो उसका बड़ा और सकारात्मक नतीजा सामने आता है। मुनेंद्र गंगवार व उनके साथियों का इस पूरी कोशिश में सामूहिक जुड़ाव बहुत ही प्रेरक रहा है। इस पहल की शुरूआत में जब मुरेंद्र गंगवार ने अपने आरिफ नाम के एक साथी से कई साइज की थालियां मंगवाई तो वह कई गत्ते भरकर एक दुकान से ले आया लेकिन जब उसे इस कोशिश के बारे में पता चला तो उन्होंने इसके पैसे ही नहीं लिए। इसी साइकिल बाबा के नाम से पहचान रखने वाले संजीव जिंदल ने मरीजों के घर तक खाना पहुंचाने का जिम्मा उठाया। इस तरह तमाम अन्य साथियों ने भी इसी तरह की सहायता की।
चुनाव ड्यूटी के साथ दंपति शिक्षक की भी मदद की
मरीजों की मदद कर रहे मुरेंद्र व उनके साथी को जब पता चला कि बेसिक शिक्षा विभाग के दंपत्ति शिक्षक कोरोना संक्रमित हो गए हैं। उनके साथ छोटे-छोटे बच्चे भी हैं तो इस परिवार को भी मदद देकर उनके दोनों समय के खाने का इंतजाम किया। इसी तरह वे तमाम परिवारों की संकट की घड़ी में मदद करते रहे, जिनके सभी सदस्य पॉजिटिव हो गए थे।
इस प्रयास का मिले अच्छे नतीजे : साइकिल बाबा
मुनेंद्र गंगवार की मुहिम से जुड़े संजीव जिंदल व साइकिल बाबा कहते हैं कि उन्होंने होम आइसोलेशन में रहने वाले कोविड मरीजों को साइकिल से उनके घरों तक खाना पहुंचाया। सहायता की इस राह से प्रेरित होकर शाहजहांपुर, लखनऊ सहित कई जगहों पर लोगों ने भी इसी तरह की मदद देनी शुरू की। इस बड़ी संख्या में उन मरीजों को राहत मिली, जिनका पूरा परिवार संक्रमित हो गया था।