निर्वाण आश्रय केंद्र में हत्या या हादसा... 10 दिन बीते, न कोई रिपोर्ट और न कोई दोषी

दिव्यांग बच्चों का नहीं कराया गया शारीरिक परीक्षण

निर्वाण आश्रय केंद्र में हत्या या हादसा... 10 दिन बीते, न कोई रिपोर्ट और न कोई दोषी

लखनऊ, अमृत विचार: निर्वाण आश्रय केंद्र के 5 बच्चों की मौत और 70 से अधिक के बीमार होने के मामले में बड़ी लापरवाही सामने आई है। बीमार बच्चों का इलाज तो किया गया, लेकिन भर्ती के दौरान शारीरिक परीक्षण नहीं कराया गया। इससे उनके साथ संस्था में की गई मारपीट की पुष्टि नहीं हो सकी। जबकि पूर्व में हुए घटनाओं में भी बच्चों के साथ मारपीट की घटना की पुष्टि हुई थी। अब केजीएमयू में भर्ती हुए बच्चे के शरीर पर चोट के निशान मिले हैं। जिसके बाद संस्था में बच्चों से मारपीट की घटना होने की चर्चा शुरू हो गई है। उधर घटना के 10 दिन बाद भी शुक्रवार तक इस केस में किसी को दोषी नहीं ठहराया गया है और न ही रिपोर्ट दर्ज हो सकी है। अधिकारी जांच प्रचलित होने का हवाला देकर घटना पर पर्दा डालने की जुगत में लगे रहे हैं।

मोहान रोड स्थित निर्वाण आश्रय केंद्र पीपीपी मॉडल पर संचालित होता है। मानसिक कमजोर, अनाथ और लावारिस बच्चों को यहां रखा जाता है। अभी यहां 146 बच्चे हैं। बीते 21 से 26 मार्च के बीच 70 से अधिक बच्चे संस्था उल्टी-दस्त, पेट दर्द से बीमार हो गए। 35 से अधिक बच्चों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इनमें से 5 बच्चों की मौत हुई। इनमें 3 बच्चियां थीं। एक किशोर को गंभीर हालात में केजीएमयू में भर्ती कराया गया था। जहां उसके शरीर पर चोट के निशान मिले हैं। सूत्रों का दावा है कि उसके कान के पास मुक्का मारने की गंभीर चोट है। फिलहाल बच्चे की सेहत में सुधार के बाद उसे संस्था भेज दिया गया है। इसके अलावा अन्य बच्चे लोकबंधु और बलरामपुर अस्पताल में भर्ती कराए गए थे। करीब 90 बच्चों का इलाज संस्था में ही चिकित्सकों की निगरानी में किया जा रहा था।

बच्चों में समझने और बोलने की शक्ति न होने से हुई लापरवाही

संस्था के सभी बच्चे निराश्रित हैं। इनके दिमाग को क्षमता पांच फीसदी से भी कम है। साथ ही बोलने की भी क्षमता काफी कम होने के कारण वह खुद के साथ होने वाली घटनाओं को बताने में सक्षम नहीं हैं।

बीमारी किस वजह से फैली रहस्य बरकरार

इस बीमारी फैलने का कारण शुरुआत में दूषित पानी बताया गया था। लेकिन पानी के सभी नमूने जांच में सही पाए गए। अब खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। एफएसडीए ने खाने के सैंपल जांच के लिए भेजा है। जिसकी रिपोर्ट को अभी सार्वजनिक नहीं किया गया।

शासन को भेजी गई रिपोर्ट

इस मामले में डीएम विशाख जी. की ओर से जांच कमेटी का गठन किया गया था। अफसरों का कहना है जांच पूरी हो गई है। विस्तृत रिपोर्ट शासन को भेज दी गई है। जल्द शासन स्तर से आरोपियों के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।

पौष्टिक आहार देने का दावा, फिर भी बीमारी से हुए ग्रसित

संस्था संस्थापक सुरेश धपोला और डीपीओ विकास सिंह ने सभी बच्चों को दूध, दही और अंडा सहित पौष्टिक आहार देने का दावा किया है। उनका कहना है कि मेन्यू के अनुसार सभी को नाश्ता और खाना समय पर मुहैया होता है। वहीं, जानकार चिकित्सकों का कहना है कि मेन्यू के अनुसार खाना मिलने पर किसी भी सूरत में बच्चे एनीमिया (खून की कमी) जैसी बीमारी की चपेट में नहीं आ सकते। बता दें कि संस्था के बच्चे एनीमिया, हेपेटाइटिस और टीबी जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित पाए गए।

इन घटनाओं से नहीं चेते

पिछले साल भी यहां के एक-एक करके 9 बच्चों की मौत हुई थी। इससे पहले जनवरी 2019 में भी एक किशोरी की हीटर से झुलस कर मौत हुई थी। संस्था प्रशासन ने चुपचाप उसका दाह संस्कार करा दिया था। दो दिन बाद मामला खुलने पर महिला एवं बाल कल्याण विभाग व बाल कल्याण समिति ने जांच की थी। इस लापरवाही पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।

नवंबर 2018 में बच्चों के साथ मारपीट का आया था मामला

नवंबर 2018 में संस्था में रह रहे बच्चों के साथ मारपीट का मामला सामने आया था। बाल कल्याण समिति को कुछ तस्वीरें भेजी गईं थीं जिनमें एक किशोर और एक किशोरी के शरीर चोटों के निशान थे। इस पर समिति ने 19 नवंबर 2018 को संस्था जाकर जांच की थी। जिसमें बच्चों की पिटाई की पुष्टि भी हुई थी। इसके अलावा एक किशोर की मौत की घटना को भी छिपाया गया था।

डीपीओ का दावा खुद से पहुंचा लेते हैं चोट

जिला प्रोबेशन अधिकारी (डीपीओ) विकास सिंह का कहना है कि केजीएमयू में जिस बच्चे के साथ मारपीट की घटना बताई जा रही है। उसे हम खुद लेकर गए थे। बच्चा काफी हाइपर था। कुछ भी बता नहीं पा रहा था। दरअसल ये सभी बच्चे नासमझी के कारण खुद को चोट पहुंचा लेते हैं। सिर टकरा देते हैं। इसके अलावा डॉक्टरों की टीम नियमित इनके परीक्षण के लिए संस्था जाती थी।

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