संविदाकर्मी महिला भी समान मातृत्व अवकाश की हकदार: हाईकोर्ट ने कहा- मां, मां होती है...

संविदाकर्मी महिला भी समान मातृत्व अवकाश की हकदार: हाईकोर्ट ने कहा- मां, मां होती है...

जयपुर। राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि बच्चे की मां, मां होती है, फिर चाहे वह नियमित आधार पर कार्यरत हो या संविदा के आधार पर। संविदा कर्मचारियों के नवजात शिशुओं को भी नियमित कर्मचारियों के बच्चों के समान जीवन का अधिकार है। कोर्ट ने संविदाकर्मी महिला को केवल दो माह का मातृत्व आवकाश दिए जाने को संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन माना।

कोर्ट ने कहा कि संविदा कर्मचारी को 180 दिन का मातृत्व अवकाश न देकर उसके अधिकारों का हनन किया है। अदालत ने कहा कि समय बीतने के कारण याचिकाकर्ता को बढ़ी हुई मातृत्व अवकाश की अवधि का अवकाश देना संभव नहीं है। ऐसे में शेष अवधि के लिए उसे 9 फीसदी ब्याज सहित अतिरिक्त वेतन अदा किया जाए। जस्टिस अनूप कुमार ढंड की एकलपीठ ने यह आदेश बसंती देवी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

साल 2008 में दायर याचिका में अधिवक्ता राम प्रताप सैनी ने कहा कि याचिकाकर्ता साल 2003 में नर्स ग्रेड द्वितीय के पद पर संविदा पर नियुक्त हुई थी। साल 2008 में उसने लड़की को जन्म दिया और विभाग में आवेदन कर छह माह का मातृत्व अवकाश मांगा। इस पर विभाग ने यह कहते हुए उसका दो माह का अवकाश ही स्वीकृत किया कि वित्त विभाग के 6 नवंबर, 2007 के परिपत्र के अनुसार संविदा कर्मचारी दो माह के मातृत्व अवकाश की ही अधिकारी हैं।

इसे चुनौती देते हुए कहा किया वित्त विभाग ने नियम में संशोधन कर संविदाकर्मी को भी नियमित कर्मचारी के समान 180 दिन के मातृत्व अवकाश का हकदार माना है। ऐसे में एक बार नियम में संशोधन होने पर राज्य सरकार संविदा कर्मचारियों के साथ भेदभाव नहीं कर सकती। जिस पर सुनवाई करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता को शेष अवधि का वेतन ब्याज सहित अदा करने को कहा है।

संविधान ने दिया है मातृत्व का हक

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद-21 में जीने के मौलिक अधिकार में मां बनने का हक शामिल है। इसमें बच्चे को मां से पूर्ण प्यार और देखभाल प्राप्त करने का अधिकार भी शामिल है। मां बनने का अधिकार महिला संविदाकर्मी को समान अवसर से वंचित करने का कारण नहीं हो सकता। सरकार कामकाजी महिलाओं के बच्चे की सेहत के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराने को बाध्य है। हर मां को समान मातृत्व अवकाश मिलना चाहिए, वह चाहे संविदा पर कार्यरत हो या एडहॉक आधार पर। किसी महिला को इस अधिकार से वंचित करने का प्रयास उसके मौलिक अधिकारों के साथ ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के भी विपरीत है।

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